
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा के क्षेत्रों को लेकर हाल ही में एक विवाद खड़ा हो गया है। इस एक क्षेत्र पर दोनों देश अपना दावा करते हैं। सांस्कृतिक रूप से दोनों ही देशों के लिए ये जगह काफी अहम है। यहां 900 साल पुराना एक प्राचीन हिंदू मंदिर स्थित है, जिसमें एक शिवलिंग स्थापित हैं। यह मंदिर प्रीह विहियर प्रांत में स्थित है।
दोनों देशों के बीच लंबे समय से बढ़ते तनाव के बीच 28 मई 2025 की सुबह कंबोडियाई और थाईलैंड के सैनिकों के बीच गोलीबारी हुई। मोराकोट कम्यून के चोम क्सान जिले में स्थित टेक्चो मोराकोट गाँव में हुई इस झड़प में एक कंबोडियाई सैनिक की मौत हो गई।
कंबोडिया के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि ये उकसाने वाला हमला नहीं था। मंत्रालय के अनुसार, थाईलैंड के सैनिकों ने उस जगह पर हमला किया, जहाँ पर कंबोडियाई सेना का अधिग्रहण लंबे समय से था। वहीं, रॉयल थाई आर्मी ने अपने बयान में कहा कि गोलीबारी की शुरुआत कंबोडियाई सैनिकों ने की थी और उन्होंने जवाबी कार्रवाई की।
थाईलैंड के रक्षा मंत्री फुमथाम वेचयाचाई ने कहा, “मुझे बताया गया है कि जवाबी गोलीबारी हमारी आत्मरक्षा और थाईलैंड की संप्रभुता की रक्षा के लिए जरूरी थी। मैंने सतर्कता बरतने के निर्देश दिए हैं। हालाँकि युद्धविराम (सीजफायर) लागू है, फिर भी दोनों पक्ष अब भी आमने-सामने हैं।”
थाईलैंड ने इस पर दावा किया कि उनकी सेना पर तब हमला किया गया जब वे कंबोडियाई सैनिकों को विवादित क्षेत्र में पोस्ट न बनाने को लेकर समझा रहे थे। थाई सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल विंथाई सुवारी ने कहा, “कंबोडियाई सेना ने स्थिति को गलत समझा और हथियार चलाने लगे। इसके बाद थाई सेना ने जवाबी कार्रवाई की।”
कंबोडिया के रक्षा मंत्रालय ने कहा, “कंबोडिया इस तरह का संघर्ष नहीं चाहता है। हम थाई रक्षा मंत्रालय के साथ बातचीत जारी रखेंगे ताकि एक आपसी समाधान निकाला जा सके ताकि स्थिति जल्द से जल्द सामान्य हो और इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके।”
कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन मानेट ने 29 मई 2025 को राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा कि वह कंबोडियाई और थाई सेना के बीच युद्ध नहीं चाहते। उन्होंने एक लिखित बयान में कहा कि लोगों को “किसी भी अप्रमाणित सूचना से घबराना नहीं है।”
उन्होंने आगे कहा, “इसी कारण, मुझे उम्मीद है कि कंबोडियाई और थाई सेना के कमांडरों के बीच आगामी बैठक सकारात्मक परिणाम लाएगी ताकि स्थिरता बनी रहे और दोनों देशों के बीच सैन्य बातचीत पहले की तरह ही बेहतर हो।”
उन्होंने यह भी कहा, “हालाँकि मैं जापान में हूं, फिर भी सैनिकों की तैनाती जैसे प्रमुख सैन्य अभियानों की पूरी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री के तौर पर मेरे पास है।”
यह संघर्ष लगभग 10 मिनट तक चला, जब तक स्थानीय कमांडरों ने एक-दूसरे से बातचीत कर सीजफायर का आदेश नहीं दिया। इसके बाद, दक्षिण-पूर्व एशियाई पड़ोसी देशों ने क्षेत्र से सैनिकों को वापस बुलाने का फैसला लिया।
अगले दो सप्ताह में एक संयुक्त सीमा समिति (ज्वाइंट बाउंड्री कमेटी) का गठन किया जाएगा ताकि “सीमा विवाद की समस्या का हल निकाला जा सके।” रॉयल कंबोडियन आर्मी के अनुसार, कमांडरों ने ‘विवाद को हल करने के लिए मौजूदा तंत्र का इस्तेमाल करने’ पर सहमति व्यक्त की, हालाँकि कंबोडिया ने अपने सैनिकों को संघर्ष क्षेत्र से वापस नहीं लेने की बात भी जोड़ी है।
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच 800 किलोमीटर यानी लगभग 500 मील से अधिक की लंबी सीमा है। इसे मुख्य रूप से फ्रांसीसी उपनिवेशवाद के दौरान बनाया गया था। यह सीमा लंबे समय से विवादों में रही है और दोनों देशों की सेनाओं के बीच कई सशस्त्र संघर्ष हुए हैं।
2008 में इस ऐतिहासिक मंदिर को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता मिलने के बाद भी सीमा पर संघर्ष हुआ था। 2011 में एक बार फिर सीमा पर संघर्ष हुआ था, जिसमें मंदिर के पास कई लोगों की मौत हुई और कई लोग घायल हो गए। वर्षों से जारी हिंसा के कारण अब तक कम से कम 28 लोगों की मौत हो चुकी है।
हाल में हुआ तनाव फरवरी में शुरू हुआ जब कंबोडियाई सैनिकों और उनके परिवारों ने अपने देश का राष्ट्रगान प्रसात ता मोआन थॉम मंदिर के अंदर गाना शुरू कर दिया। वहाँ तैनात थाई सैनिकों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, जिसके बाद दोनों पक्षों के बीच तीखी बहस हुई।
पूरी घटना का वीडियो एक थाई नागरिक ने रिकॉर्ड कर सोशल मीडिया पर डाल दिया। कुछ ही समय में यह वीडियो वायरल हो गई।
वैसे तो कंबोडिया की प्राथमिकता शांतिपूर्ण तरीके से हल निकालना है फिर भी प्रधानमंत्री हुन मानेट ने मार्च में चेतावनी दी थी कि अगर थाई सैनिक कंबोडियाई संप्रभुता का उल्लंघन करते हैं तो देश अपने सैन्य बल का उपयोग करने के लिए तैयार रहेगा।
मई में हुई एक बैठक के बाद थाईलैंड और कंबोडिया के सैन्य प्रतिनिधियों ने ये फैसला लिया कि वे अपने सैनिकों को मौजूदा स्थानों पर ही रखेंगे और भविष्य के संघर्षों को कम करने के लिए मंदिर स्थल के आसपास दोनों देशों से पाँच-पाँच सैनिक ही तैनात रहेंगे।
11वीं सदी का प्राचीन मंदिर
कंबोडिया में स्थित प्रीह विहयर आधुनिक दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से कहीं आगे हैं। इस मंदिर के अधिकांश संरक्षित भाग ख्मेर साम्राज्य के स्वर्ण युग, 11वीं और 12वीं शताब्दी के समय के हैं। आधुनिक कंबोडियाई खुद को ख्मेर कहते हैं, वे सीधे ख्मेर लोगों के वंशज हैं। ख्मेर साम्राज्य ने 9वीं से 15वीं शताब्दी तक दक्षिण-पूर्व एशिया पर शासन किया था, जिसमें वर्तमान थाईलैंड भी शामिल था। इस थाईलैंड को पहले सियाम कहा जाता था। इसी साम्राज्य ने प्रसिद्ध अंकोर वाट परिसर का भी निर्माण किया था।
ख्मेर मंदिर अपनी अद्भुत वास्तुकला के लिए मशहूर हैं। ख्मेर राजाओं का प्रमुख धर्म हिंदू धर्म था। इसका प्रभाव इन मंदिरों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इसके अलावा, इन मंदिरों में बौद्ध धर्म के तत्व भी शामिल हैं, जो बाद में यहाँ पर लोकप्रिय हुए।
प्रीह विहियर ख्मेर विरासत का हिस्सा होने के बावजूद हमेशा से कंबोडिया के शासन में नहीं रहा। सियामी साम्राज्यों और आधुनिक थाई राज्यों ने समय समय पर उस जगह पर अपना आधिपत्य जमाया जहाँ पर वर्तमान में ये स्थित है।
‘प्रसात ता मोआन थॉम’ या ‘ता मोआन’ भी थाईलैंड के सुरिन प्रांत और कंबोडिया के ओडर मीन्चे प्रांत को बाँटने वाली सीमा पर स्थित है। इस पर भी विवाद चल रहा है। डांगरेक पर्वत श्रृंखला में स्थित होने के कारण दोनों देशों के बीच अक्सर तनाव देखने को मिलता रहता है।
यह मंदिर एक हिंदू तीर्थस्थल के रूप में बनाया गया था और भगवान शिव को समर्पित है। इसके आसपास बने अन्य दो मंदिरों, प्रसात ता मुएन और प्रसात ता मुएन टोट से ये काफी पुराना है। इसकी धार्मिक महत्ता इस बात से ही सिद्ध हो जाती है कि इसके गर्भ गृह में एक प्राकृतिक शिवलिंग मिला था।
यह हिंदू मंदिर अपने आसपास स्थित तीन मंदिरों में सबसे बड़ा है। यह डांगरेक पर्वत श्रृंखला के एक मार्ग पर स्थित है, जो कंबोडियाई मैदानों को थाईलैंड के खोराट पठार से अलग करता है। आयताकार में बने इस मंदिर में मुख्य रूप से लेटराइट (एक कठोर लाल मिट्टी) का उपयोग किया गया है। इसके कुछ हिस्से बलुआ पत्थर के भी हैं।
एक दिलचस्प बात ये है कि अधिकांश ख्मेर मंदिरों का मुख्य द्वार पूर्व दिशा की ओर होता है, लेकिन इस मंदिर का प्रवेश द्वार दक्षिण दिशा में है। यह मंदिर ऐसे क्षेत्र में स्थित है जहाँ थाईलैंड और कंबोडिया की सीमा अब तक स्पष्ट नहीं है। इसके कारण दोनों देश इस पर अपना दावा करते है। इसीलिए यहाँ अक्सर सेनाओं के बीच छिटपुट हिंसा देखी जाती रही है।
ऐतिहासिक विवाद
थाईलैंड ने जापान के साथ सैन्य गठबंधन के तहत 1941 में प्रीह विहियर और आसपास के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था। 1953 में फ्रांसीसी औपनिवेशिक सेना की हार के बाद यह क्षेत्र फिर से फ्रांस को लौटा दिया गया। 1954 में, जब कंबोडिया स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर स्थापित हुआ, तो फ्रांसीसी सैनिकों ने वापसी की और थाई सेना ने इस क्षेत्र ने दोबारा इस पर अपना आधिपत्य दर्ज कराया। 5 साल बाद, कंबोडिया ने इस पर आपत्ति जताई और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में इस पर मामला दर्ज कराया।
प्राह विहियर मंदिर थाईलैंड-कंबोडिया के सीमा विवाद के बीचोबीच में स्थित है।
थाईलैंड ने लगभग 50 वर्षों तक फ्रांसीसी सीमा निर्धारण को स्वीकार किया था। इस निष्कर्ष के आधार पर 1962 में ICJ ने 9-3 के फैसले के तहत कंबोडिया के पक्ष में निर्णय दिया।
प्रीह विहियर मंदिर के 1963 में देश को सौंपे जाने के बाद भी कई वर्षों तक बंद रहा, क्योंकि वहाँ बारूदी सुरंगें बिछाई गई थीं और ख्मेर रूज गुरिल्लाओं समेत अलग अलग समूहों के बीच इसके आधिपत्य को लेकर लगातार संघर्ष जारी था।
1990 के दशक के अंत में ख्मेर रूज संगठन के विघटन हुआ । इसके बाद यह स्थल पर्यटकों के लिए खोला गया। पर्यटकों और तीर्थयात्रियों की सुगमता और सुविधाओं के लिए थाईलैंड और कंबोडिया की सरकारों ने मिलकर इस जगह को बेहतर करने की योजना बनाई।
हालाँकि, जब 2008 में कंबोडिया ने प्रीह विहियर को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में पंजीकृत करने का प्रयास किया, तो एक बार फिर स्वामितव को लेकर पुराना विवाद सामने आ गया। थाई सरकार ने यह तर्क देकर आपत्ति जताई कि प्रस्ताव में मंदिर के आसपास के थाई-अधिकृत क्षेत्र का उल्लेख किया गया था।
इसके बाद संशोधित कंबोडियाई आवेदन को प्रधानमंत्री समक सुंदरावेज की सरकार ने स्वीकार कर एक संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किए। हालाँकि, अंदरूनी आलोचना के कारण समक सरकार को अपना समर्थन वापस लेना पड़ा। यूनेस्को ने जैसे-जैसे आवेदन की समीक्षा की, स्थिति और भी बिगड़ती चली गई।
थाईलैंड के विदेश मंत्री नोपाडोन पट्टामा के खिलाफ विपक्षी सदस्यों ने मुकदमा दायर किया। दावा किया गया कि उन्होंने कंबोडिया के साथ जो समझौता किया था, वह अवैध था। थाई संवैधानिक न्यायालय ने इस आरोप को सही ठहराया, पर अगले ही दिन यूनेस्को ने कंबोडिया के आवेदन को मंजूरी दे दी।
इसके बाद तनाव चरम पर पहुंच गया। नोपाडोन के इस्तीफे के बाद कंबोडियाई जनता ने जश्न मनाया, जबकि थाईलैंड में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। इसके चलते कंबोडिया ने प्रीह विहियर की सीमा को बंद कर दिया। सैकड़ों थाई और कंबोडियाई सैनिक मंदिर के पास एक बार फिर विवादित क्षेत्र में तैनात कर दिए गए।
इसी तरह 2011 में, इस विवाद के कारण थाई और कंबोडियाई सेनाओं के बीच कई दिनों तक संघर्ष हुआ। इसमें 12 से अधिक लोग मारे गए, कई घायल हुए और लगभग 1,00,000 ग्रामीणों को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। एक बार फिर दोनों देशों ने एक-दूसरे पर आरोप लगाए।
कंबोडिया ने दावा किया कि थाई सैनिकों ने कंबोडिया अधिकृत क्षेत्र में जबरन प्रवेश किया और हथियारों तथा रॉकेट्स से हमला किया। इसके बाद उन्होंने जवाबी कार्रवाई की। थाईलैंड ने कहा कि उनके सैनिक नियमित गश्त पर थे और कंबोडिया के सैनिकों ने पहले हमला किया।
अप्रैल 2011 में कंबोडिया ने ICJ से अनुरोध किया कि कोर्ट 1962 के फैसले की व्याख्या करे ताकि ये स्पष्ट हो सके कि थाईलैंड मंदिर पर कंबोडिया की संप्रभुता को स्वीकार करता है, लेकिन मंदिर के आसपास के क्षेत्र पर नहीं। 2013 में, कोर्ट ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया कि थाईलैंड को प्रीह विहियर क्षेत्र से अपनी सेना हटानी होगी, क्योंकि कंबोडिया को पूरे क्षेत्र पर अधिकार प्राप्त है।
इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी पुष्टि की कि यह मंदिर धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से स्थानीय जनता के लिए महत्वपूर्ण है। थाईलैंड और कंबोडिया, दोनों ही विश्व धरोहर संधि के पक्षधर हैं। उन्हें एक विश्व धरोहर स्थल के रूप में इस स्मारक को संरक्षित करने पर मिलकर काम करना होगा।
कोर्ट ने यह भी कहा कि हर देश को ऐसे स्थलों को जानबूझकर नुकसान पहुँचाने वाले कदम उठाने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस विरासत को नुकसान पहुँच सकता है।
इस खबर को मूल रूप से रुकमा राठौर ने अंग्रेजी में लिखा है और अनुवाद किया है रामांशी मिश्रा ने