लंदन की पुलिस उन कैदियों की तलाश में है, जिसे एक हफ्ते के अंदर वेंड्सवर्थ जेल से ‘गलती से’ रिहा कर दिया गया था। इस घटना के बाद ब्रिटेन का जेल प्रशासन सवालों के घेरे में है।
29 अक्टूबर 2025 को ‘गलती’ से छूटा पहला कैदी 24 साल का ब्राहिम कद्दौर-चेरिफ था, जो एक अल्जीरियाई यौन अपराधी था। कुछ दिन बार 3 नवबंर को उसी जेल से दूसरा कैदी विलियम स्मिथ भी ‘गलती’ से रिहा हो गया।
ऐसी ही ‘गलती’ एक और हुई है। इथियोपियाई नागरिक और सजायाफ्ता यौन अपराधी हादुश केबातु को एसेक्स की एक जेल से ‘गलती’ से रिहा कर दिया गया। इन ‘गलतियों’ की वजह से न्याय सचिव डेविड लैमी की देशभर में आलोचना हो रही है। वे राजनीतिक आलोचनाओं के केन्द्र में हैं। हालाँकि उन्होंने केबातु के मामले के बाद भविष्य में ऐसी घटना नहीं होने देने की बात कही थी।
संसद में सवाल और राजनीतिक बवाल
यह मुद्दा इस हफ्ते प्रधानमंत्री से पूछे गए सवालों (पीएमक्यू) में भी था। हालाँकि प्रधानमंत्री कीर स्टारमर की जगह डेविड लैमी से घटना को लेकर सवाल पूछा गया। सांसद ये जानना चाहते थे कि क्या केबातु के मामले के बाद से किसी शरण माँगने वाले अपराधी को गलती से रिहा किया गया है। हालाँकि, लैमी ने इस सवाल का सीधा जवाब नहीं दिया।
संसद सत्र के समापन के बाद मेट्रोपॉलिटन पुलिस ने पुष्टि की कि 29 अक्टूबर को एक विदेशी कैदी को ग़लती से हिरासत से रिहा कर दिया गया था। इसकी सूचना उन्हें लगभग एक हफ्ते बाद मिली।
मेट्रोपॉलिटन पुलिस ने उस व्यक्ति की पहचान कद्दौर-शेरिफ के रूप में की, जिसके लंदन के टावर हैमलेट्स और वेस्टमिंस्टर से संबंध हैं।
नवंबर 2024 में उसे एक नग्न प्रदर्शन करने के मामले में दोषी ठहराया गया था। और 18 महीने जेल की सजा के साथ साथ यौन अपराधियों की सूची में पाँच साल के लिए शामिल कर दिया गया।
रिपोर्टों के अनुसार, कद्दूर-शेरिफ 2019 में विज़िट वीजा पर कानूनी तरीके से यूके आए थे, लेकिन वीजा की अवधि समाप्त होने के बाद भी वे नहीं गए। अधिकारियों ने उन्हें 2020 में ही ‘ निर्धारित समय से ज्यादा समय तक रहने वाले’ के रूप में पहचान की थी।
बीबीसी ने बाद में बताया कि वे शरणार्थी नहीं हैं और डेविड लैमी को रातोंरात उनकी ‘गलती’ से हुई रिहाई के बारे में सूचित कर दिया गया था। न्याय सचिव लैमी ने इस गलती को ‘अस्वीकार्य’ बताया। पुलिस के बयान को लेकर लैमी ने प्रतिक्रिया देते हुए इसे ‘बेहद अपमानजनक और भयावह’ करार दिया। उन्होंने कहा कि दोषियों को सजा मिलनी चाहिए और ऐसी गलतियाँ ‘पूरी तरह से अस्वीकार्य’ हैं।
लैमी ने डेम लिन ओवेन्स के नेतृत्व में एक स्वतंत्र जाँच की घोषणा की। उन्होंने कहा, “मैंने पहले ही कड़ाई से जाँच शुरू कर दी है, लेकिन यह स्पष्ट है कि इन गलतियों को हमेशा के लिए रोकने के लिए और भी कुछ किया जाना चाहिए।”
हालाँकि, विपक्षी दल इससे सहमत नहीं थे। कंजर्वेटिव से जुड़े गृह सचिव क्रिस फिलिप ने कहा, “यह चौंकाने वाला है कि एक बार फिर एक विदेशी अपराधी को गलती से रिहा कर दिया गया। इससे लैमी के दावे की मजाक उड़ रही है। उन्होंने ‘अब तक की सबसे कड़ी जाँच’ शुरू करने की बात कही थी।
दूसरे कैदी को भी गलती से रिहा कर दिया गया
कद्दौर-शेरिफ़ की गलत रिहाई की जब पुलिस ने पुष्टि की, उसके कुछ ही घंटों बाद सरे पुलिस (surrey police) से एक और चौंकाने वाली जानकारी सामने आई। उन्होंने खुलासा किया कि विलियम स्मिथ को भी इसी हफ्ते उसी जेल वैंड्सवर्थ से, गलती से रिहा कर दिया गया।
स्मिथ को सोमवार, 3 नवंबर को धोखाधड़ी से जुड़े विभिन्न अपराधों के लिए 45 महीने की जेल की सजा सुनाई गई थी, लेकिन उसी दिन वह गलती से रिहा कर दिया गया।
बीबीसी की पड़ताल में सामने आया है कि ऐसा तब हुआ, जब अदालत के कर्मचारियों ने अनजाने में उसे हिरासत में लेने के बजाय छोड़ दिया गया। हालाँकि थोड़ी देर बाद गलती सुधारने की कोशिश की गई। लेकिन जानकारी गलत अधिकारी को दे दी गई, जिसने उसे वापस पकड़ा नहीं जा सका।
पुलिस ने स्मिथ को गोरा, गंजा और क्लीन शेव बताया है। उसे आखिरी बार सफ़ेद नाइकी लोगो वाला नेवी ब्लू जम्पर, नेवी ब्लू ट्रैक पैंट और काले रंग के स्नीकर्स पहने देखा गया था। अधिकारियों ने ऐसे व्यक्ति को देखने पर तुरंत पुलिस को सूचित करने की लोगों से अपील की है।
आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, मार्च 2025 तक इंग्लैंड और वेल्स में 262 कैदियों को गलती से रिहा कर दिया गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 128% अधिक है। वैंड्सवर्थ के कर्मचारियों ने बीबीसी को बताया कि इन हालिया गलतियों के बाद से जेल में दहशत फैल गई है। वैंड्सवर्थ में सुरक्षा संबंधी चिंताएँ नई नहीं हैं।
पिछले साल की रिपोर्ट में भी व्यापक अराजकता और कैदियों की खराब ट्रैकिंग का उल्लेख किया गया था। साल 2023 में भी इसी जेल ने तब सुर्खियाँ बटोरीं जब ईरान के लिए जासूसी करने के मुकदमे का इंतजार कर रहे डैनियल खलीफ भाग गया था।
यौन अपराधी हदुश केबातु का मामला
हदुश केबातु एक इथियोपियाई शरणार्थी है, जिसे एसेक्स में एक किशोरी और एक महिला के यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराया गया था। उसे 1 साल जेल की सजा हुई थी। लेकिन एक महीने बाद ही वह गलती से रिहा कर दिया गया।
इस मामले में डेम लिन ओवेन्स की अध्यक्षता में एक जाँच पहले से ही चल रही है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि इतनी गंभीर गलती कैसे हुई।
हदुश केबातु (फोटो साभार- इंडिपेंडेंट)
दो दिनों तक तलाशी अभियान चलाया गया और केबातु को 26 अक्टूबर को उत्तरी लंदन के फिन्सबरी पार्क में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। वह चेम्सफोर्ड से वहाँ आया था। दो दिन बाद उसे निर्वासित कर दिया गया, लेकिन निर्वासन प्रक्रिया में बाधा डालने की धमकी देने पर अधिकारियों ने उसे £500 दिए।
14 वर्षीय पीड़िता के पिता ने आईटीवी न्यूज़ को बताया कि सरकार पूरी तरह फेल रही। अपराधी को पकड़ा गया, फिर उसे निर्वासित कर दिया गया। जिस तरह से इस मामले को हेंडल किया गया, उससे उनका परिवार काफी निराश है।
उन्होंने गहरी निराशा व्यक्त करते हुए कहा, “हमें बस असफलता के बाद असफलता ही हाथ लग रही है। मैं नाराज नहीं हूँ, मैं निराश हूँ।”
उस युवती ने आईटीवी को लिखित बयान साझा किया। बयान में उसने कहा था कि वह ‘सो नहीं पा रही है’ क्योंकि उसे डर था कि वह मुझे ढूँढ़ने के लिए एपिंग वापस आ जाएगा”।
केबातु प्रकरण के बाद शरणार्थियों के होटलों के बाहर विरोध प्रदर्शन हुए। इस दौरान कई हिंसक झड़पें भी हुई।
उन्होंने कहा कि केबातु की गिरफ्तारी से लेकर उसके निर्वासन तक की पूरी प्रक्रिया में सिर्फ़ 17 हफ्ते लगे। परिवार का मानना है कि इससे उनके बेटी के साथ ‘न्याय’ नहीं हुआ।







