गृह युद्ध की मार झेल रहे अफ्रीकी देश माली से फिर एक बुरी खबर आई है। पश्चिमी माली के कोबरी इलाके में गुरुवार (6 नवंबर 2025) को अज्ञात बंदूकधारियों ने 5 भारतीय कामगारों का अपहरण कर लिया। शक है यह हरकत अल-कायदा और ISIS से जुड़े आतंकवादी समूहों ने की है। माली में अल-कायदा से जुड़ा आतंकी संगठन जमात नुसरत अल-इस्लाम वल-मुसलमीन (JNIM) सक्रिय है।
यह कोई पहला मौका नहीं है जब वहाँ भारतीयों का अपहरण हुआ हो, वहाँ आए दिन ऐसी घटनाएँ आम हो गई हैं। बीते जुलाई में माली में 3 भारतीयों का अपहरण हुआ था। तब इसकी जिम्मेदारी जमात नुसरत अल-इस्लाम वल-मुसलमीन (JNIM) ने ही ली थी।
इस आतंकी संगठन की माली में मौजूदगी का असर समझने के लिए ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ की 30 अक्टूबर 2025 की एक रिपोर्ट पढ़िए। यह रिपोर्ट कहती है, “अल-कायदा के आतंकवादी माली की राजधानी बमाको पर कब्जा करने के और करीब पहुँच रहे हैं। अगर माली पर कब्जा हो जाता है, तो यह अमेरिका द्वारा घोषित आतंकवादी समूह द्वारा शासित दुनिया का पहला देश बन जाएगा।” इस्लामी कट्टरपंथ ने कैसे माली में अपनी जड़े जमाईं वो जानने से पहले समझते हैं कि आखिर JNIM है क्या?
क्या है जमात नुसरत अल-इस्लाम वल-मुसलमीन?
अमेरिकी न्याय विभाग से जुड़ी एक आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, माली, नाइजर और बुर्कीना फासो में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने वाले जमात नुसरत अल-इस्लाम वल-मुसलमीन (JNIM) ने खुद को माली में अल-कायदा की आधिकारिक शाखा बताया है। वेबसाइट पर बताया गया है कि 2017 में अल-कायदा इन द इस्लामिक मगरिब की सहारा शाखा (AQIM), अंसार अल-डाइन और मकीना लिबरेशन फ्रंट (FLM) ने साथ मिलकर JNIM का गठन किया गया था। अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया जैसे कई देशों ने इसे आतंकी घोषित किया हुआ है।
आस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय सुरक्षा की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, JNIM सलाफी-जिहादी संगठन है जो पश्चिम अफ्रीका में एक सलाफी-इस्लामी राज्य बनाने की कोशिश में लगा है। JNIM का लक्ष्य यहाँ पश्चिमी प्रभाव को कम करना था और यह United Nations Multidimensional Integrated Stabilization Mission in Mali (MINUSMA) के साथ भिड़ गया। पिछले एक दशक में JNIM के हमलों में MINUSMA से जुड़े 300+ सैनिक मारे गए हैं।
पश्चिम अफ्रीका में JNIM की गतिविधियों ने इसे वहाँ सक्रिय इस्लामिक स्टेट (IS) के गुटों के साथ टकराव की स्थिति में ला दिया है। 2017 से 2019 के बीच दोनों के बीच संबंध सामान्य रूप से सहयोगात्मक थे। इसे ‘साहेल अपवाद’ कहा जाता था क्योंकि दुनिया के बाकी हिस्सों में अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट के गुट आपस में लड़ रहे थे लेकिन साहेल क्षेत्र (अफ्रीका का एक इलाका) में दोनों मिलकर काम कर रहे थे। हालाँकि, 2019 के बाद से इन दोनों संगठनों के रिश्ते बिगड़ गए। अब दोनों गुट लगातार एक-दूसरे से इलाके पर कब्जे के लिए लड़ रहे हैं। 2019 के मध्य से शुरू हुई इस लड़ाई में हजारों आतंकी मारे जा चुके हैं।
कौन चलाता है JNIM?
इयाद अग गली ने 2017 में JNIM बनने के बाद इसके मुख्य अमीर यानी मुखिया के रूप में काम करना शुरू किया था और वही इसका कर्ता धर्ता है। इयाद अग गली माली के किडाल क्षेत्र के रहने वाले तुआरेग समुदाय से है। 1990 के दशक में हुए तुआरेग विद्रोह में उसने भाग लिया था और 2006 में उसने एक छोटा सा विद्रोह भी चलाया लेकिन वह ज्यादा समय तक नहीं चला। 2007 में वे माली सरकार की सलाहकार संस्था हाई काउंसिल ऑफ टेरिटोरियल कलेक्टिविटीज का सदस्य बन गया।
2010 तक अग गली माली सरकार के लिए बंधक वार्ताकार (hostage negotiator) के तौर पर काम करता रहा। इस दौरान उसने AQIM (अल-कायदा इन द इस्लामिक मघरेब) के कई नेताओं से नजदीकी संबंध बना लिए। बाद में AQIM के कुछ लोगों ने उसे अंसार अल-दीन नाम का संगठन बनाने के लिए कहा ताकि AQIM उत्तरी माली में अपनी गतिविधियाँ बढ़ा सके। 25 फरवरी 2013 को UN ने अग गाली को प्रतिबंधित सूची में डाला। अमेरिका ने भी उसे वैश्विक आतंकी घोषित कर दिया था। कभी रॉक म्यूजिक का शौकीन रहे गली अब कट्टर इस्लामी नेता बन चुका है और उसने अपने कब्जे वाले इलाकों में संगीत पर प्रतिबंध लगा दिया है।
इयाद अग गली (फोटो: AFP)
इयाद अग गली ने अमादू कूफा के साथ मिलकर JNIM बनाया था। अमादू कूफा अब JNIM का डिप्टी है। माली के निआफुंके इलाके में जन्मे अमादू कूफा ने 2015 में FLM बनाया था और बाद में JNIM में शामिल हो गया। JNIM बनने के बाद से कूफा के FLM गुट ने सबसे अधिक हिंसक घटनाएँ की हैं और इनके हाथों सबसे ज्यादा लोगों की मौतें हुई हैं। इसका गुट दूसरे गुटों की तुलना में अधिक आम नागरिकों को निशाना बनाता है। 4 फरवरी 2020 को UN ने कूफा का नाम आईएसआईएल (दाएश) और अल-कायदा से जुड़े प्रतिबंधित लोगों की सूची में शामिल किया था।
अमादू कूफा (JNIM का डिप्टी)
आस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय सुरक्षा की वेबसाइट के मुताबिक, JNIM के करीब 2000 लड़ाके माली के मध्य और उत्तरी इलाकों में सक्रिय हैं। यह संगठन स्थानीय लोगों से जुड़ने की कोशिश करता है और उन समुदायों की नाराजगी का फायदा उठाता है जो खुद को हाशिए पर या उपेक्षित महसूस करते हैं। यह संगठन खुद को पश्चिम अफ्रीकी सरकारों के विकल्प के तौर पर पेश करता है।
JNIM अपनी फंडिंग के लिए फिरौती के लिए अपहरण, जबरन वसूली और टैक्स (जैसे जकात) वसूलने जैसे तरीकों का इस्तेमाल करता है। बताया जाता है कि JNIM उन तस्करों और अपराधियों से भी टैक्स वसूलता है जो इसके कब्जे वाले इलाकों से गुजरते हैं। इसके अलावा, JNIM ने हथियार भी उन सैन्य ठिकानों और स्थानीय सशस्त्र समूहों से हासिल किए हैं, जिन पर उसने हमला किया था।
JNIM द्वारा किए गए आतंकी हमले (फोटो: Australian National Security)
माली में हिंसा की शुरुआत
कभी अपेक्षाकृत शांत देश माने जाने वाला माली 2011 के आखिर से लगातार बढ़ती हिंसा और आतंकी हमलों की चपेट में है। हालात इतने बिगड़े कि देश दो अलग-अलग लेकिन आपस में जुड़े संघर्षों में उलझ गया, इसमें एक तरफ थे तुआरेग अलगाववादी तो वहीं दूसरी तरफ थे अल-कायदा से जुड़े इस्लामिक आतंकी संगठन। नवंबर 2011 में लीबिया के तानाशाह मुअम्मर गद्दाफी के लिए लड़ चुके तुआरेग योद्धा हथियारों के साथ माली लौटे और ‘मूवमेंट फॉर द लिबरेशन ऑफ अजावाद’ (MNLA) नाम का संगठन बनाया। उनका मकसद था ‘अजावाद’ नाम का अलग तुआरेग देश बनाना। यह माली में नए और हिंसक दौर की शुरुआत थी।
2012 में राष्ट्रपति अमादू तौमानी तुरे को सेना ने तख्तापलट में हटा दिया, जिससे देश में सत्ता का खालीपन पैदा हुआ। इसी मौके का फायदा उठाकर तुआरेग विद्रोहियों ने सरकार के खिलाफ हथियार उठा लिए। इसी समय अल-कायदा से जुड़े दूसरे संगठन MUJAO और अंसार दिने भी अपनी खुद की इस्लामी शासन व्यवस्था लागू करने की माँग को लेकर हिंसा फैला रहे थे। शुरुआत में तुआरेग और इस्लामिक गुटों ने मिलकर सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ी लेकिन बाद में दोनों के रास्ते अलग हो गए।
वजह साफ नहीं थी लेकिन माना जाता है कि MNLA का सेक्युलर रुख और इस्लामी गुटों द्वारा आम लोगों पर बढ़ती हिंसा इसका कारण बना। जब दोनों के बीच झड़पें बढ़ीं, तो उत्तरी माली के बड़े हिस्सों पर इस्लामिक गुटों का नियंत्रण हो गया। माली की सेना के पास विद्रोहियों से मुकाबले के लिए पर्याप्त हथियार नहीं थे। हालात संभालने के लिए माली सरकार ने फ्रांस से मदद माँगी। 2013 में फ्रांस ने सैन्य कार्रवाई कर गाओ, किदाल और टिंबकटू जैसे इलाकों से आतंकियों को खदेड़ दिया लेकिन उन्हें पूरी तरह खत्म नहीं कर सका।
स्थिति सामान्य करने के लिए चुनाव कराए गए और 2015 की शुरुआत में शांति समझौता भी हुआ लेकिन आतंकी हमले रुक नहीं पाए। आज भी माली की सरकार कमजोर है और अब तो कई विशेषज्ञय दावा कर रहे हैं कि अल-कायदा से जुड़ा JNIM इस पर कब्जा करने के लिए तैयार बैठा है।
क्या JNIM का होगा माली पर कब्जा?
अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स में JNIM के माली पर कब्जा करने से जुड़े दावे किए जा रहे हैं। द टेलीग्राफ से लेकर वॉशिंगटन पोस्ट जैसे अखबारों ने भी इस विषय पर विस्तार से लिखा है। द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट बताती है कि JNIM अब राजधानी बमाको तक अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है। आतंकियों ने ईंधन की सप्लाई रोक दी है और शहरों की नाकेबंदी कर दी है। इससे डर बढ़ गया है कि कहीं माली अल-कायदा के सीधे शासन वाला पहला देश न बन जाए।
बीते कुछ हफ्तों से JNIM ने राजधानी बमाको की ओर जाने वाले ईंधन काफिलों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। माली की सेना, जो 2021 के तख्तापलट के बाद से सत्ता में है, अब तक इस संकट को काबू में नहीं कर पाई है। स्कूल बंद कर दिए गए हैं, पेट्रोल पंप सूख चुके हैं और राजधानी की सड़कों पर लंबी लाइनें लग रही हैं।
माली की सेना-नेतृत्व वाली सरकार पहले से ही अंतरराष्ट्रीय दबाव और आंतरिक अस्थिरता से जूझ रही है। संयुक्त राष्ट्र, फ्रांस और अमेरिका के सैनिक पहले ही देश छोड़ चुके हैं। अब रूस और तुर्की ही माली की मुख्य सुरक्षा ताकत हैं। लेकिन हालात यह संकेत दे रहे हैं कि देश धीरे-धीरे एक और बड़े संकट की ओर बढ़ रहा है। जहाँ आतंकवादी न सिर्फ हथियारों से बल्कि ईंधन और अर्थव्यवस्था पर पकड़ बनाकर पूरे माली को अपने कब्जे में लेने की कोशिश कर रहे हैं।







