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कहीं आजादी के बाद पहली बार तो कहीं 20 साल बाद हुई वोटिंग: जाने बिहार में ‘नीली स्याही’ ने कैसे ‘लाल आतंकवाद’ को दिया मुँहतोड़ जवाब, हिंसा से सुरक्षा तक बिहार चुनाव का सफर

बिहार विधानसभा चुनाव में मतदान शांतिपूर्ण रहा है। राज्य में कई ऐसे गाँव और कस्बे हैं जहाँ पहली बार वोटिंग हुई। नक्सलप्रभावित इन क्षेत्रों में पहले कोई पोलिंग बूथ नहीं बनाया जाता था। गाँव के लोग नक्सलियों से डर कर वोट डालने दूसरी जगह जाते भी नहीं थे, लेकिन इस बार नजारा बदला दिखा। इन क्षेत्रों में जमकर वोट पड़े और लोगों की लंबी कतारें सुबह से ही देखी गई।

बिहार चुनाव के पहले चरण में मुँगेर का भीमबाँध, तारापुर, लखीसराय का सूर्यगढ़ा, कछुआ, बाँसकुंड जैसे इलाकों में कई ऐसे बूथ रहे, जो कभी नक्सल प्रभावित हुआ करते थे, वहाँ दशकों बाद मतदाताओं ने अपने मत का प्रयोग किया।

दूसरे चरण में जमुई के चोरमारा, गया के पिछुलिया और रोहतास के रेहल गाँव ऐसे ही क्षेत्र थे, जहाँ पहली बार लोगों ने अपने गाँव में ही वोट डाला। जाहिर है लोगों में उत्साह भी गजब का था। इन क्षेत्रों में पहली बार पोलिंग बूथ बनाया गया। गाँव में पार्टियों के समर्थक भी दिखे, जो पहले नक्सली बायकॉट की वजह से गायब रहते थे।

जमुई, गया के कई गाँव में बने पहली बार पोलिंग बूथ

जमुई के बरहट क्षेत्र के चोरमारा गाँव में 1011 एससी-एसटी मतदाता हैं। इनमें 523 महिला और 488 पुरुष वोटर हैं। इनलोगों ने इस बार वोट डाला।

गयाजी के इमामगंज विधानसभा क्षेत्र का पिछुलिया और तारचुआ गाँव भी नक्सलियों का केन्द्र रहा है। तारचुआ गाँव में तो 2024 लोकसभा चुनाव के वक्त पोलिंग बूथ बनाए गए और वोटिंग प्रक्रिया अपनाई गई, लेकिन पिछुलिया गाँव के लोगों ने पहली बार अपने गाँव में वोट डाला।

औरंगाबाद जिले के मदनपुर का बादाम क्षेत्र भी नक्सल प्रभावित रहा है। यहाँ पहली बार बूथ बनाया गया। यहाँ 894 मतदाता हैं। वोट डालने के लिए इनकी लंबी लाइनें सुबह से ही देखी गई। बुजुर्ग से लेकर पहली बार वोट डालने वाले युवा भी काफी उत्साहित थे। गाँव में सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए थे।

चुनाव के दौरान नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में वोटिंग का टाइम बदला गया। दूसरे चरण में ऐसे 402 मतदान केन्द्र थे। यहाँ सुबह 7 बजे से शाम 4 बजे तक वोट पड़े। जबकि दूसरे क्षेत्रों में शाम 6 बजे तक वोट डाले गए।

रोहतास जिले के रेहल गाँव में 20 साल बाद 11 नवंबर 2025 को वोटिंग हुई। यहां वोटिंग के दौरान की कई तस्वीरें भी सामने आई। सुरक्षा के कड़े इंतजाम के बीच शांतिपूर्ण माहौल में यहाँ वोटिंग हुई ।

मुँगेर से लखीसराय तक कई गाँव में सालों बाद वोट पड़े

पहले चरण में नक्सल प्रभावित मुँगेर के भीमबाँध समेत 7 मतदान केन्द्रों पर 20 साल बाद वोट डाला गया। इन जगहों पर 5 जनवरी 2005 को नक्सली हमले हुए थे। भीमबांध इलाके के पास बारूदी सुरंग विस्फोट कर मुंगेर के SP समेत 7 पुलिसकर्मियों को मार दिया गया था। इसके बाद उन इलाकों से मतदान केंद्रों को हटा दिया गया था।

भीमबाँध तारापुर विधानसभा के तहत आता है। इसके बूथ संख्या 310 पर 170 महिलाएँ और 204 पुरुषों समेत 374 मतदाता हैं। पहले इस क्षेत्र में पोलिंग बूथ नहीं बनाई जाती थी। लोगों को 20 किलोमीटर दूर जाकर वोट डालना पड़ता था। जाहिर है नक्सलियों का डर और दूरी की वजह से लोग वोट डालने नहीं जा पाते थे, लेकिन इस बार लोगों ने मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

इसी तरह बिहार के कछुआ और बासकुंड गाँव के लोगों ने 16 साल बाद मतदान किया। नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण पहले मतदान करना लोगों के लिए संभव नहीं हो पाता था।

लखीसराय जिले के 56 मतदान केंद्र नक्सल प्रभावित हैं। चानन प्रखंड के दो मतदान केंद्र संख्या 407 सामुदायिक भवन कछुआ में 363 मतदाता है। मतदान केंद्र संख्या 417 बासकुंड-कछुआ में 495 मतदाता हैं। नक्सल प्रभावित इन दोनों इलाकों में पहली बार EVM के जरिए मतदान हुए।

इन दोनों मतदान केंद्रों में वोट डालने के लिए मतदाताओं को पहले 6 से 10 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। साथ ही इसके लिए लोगों को जंगल और पहाड़ पार कर पैदल चलना पड़ता था। जाहिर है नक्सलियों के चुनाव बहिष्कार के बीच इनके लिए वोट डालना लगभग असंभव-सा था।

लोकसभा चुनाव 2024 में 5 माओवाद से प्रभावित मतदान केंद्र को बदलकर मैदानी भाग में लाया गया था। लेकिन एक साल के अंदर इसे नक्सल से मुक्त कर दिया गया। चुनाव आयोग ने उन 5 मतदान केंद्रों को उनके मूल स्थान पर स्थापित कर वोट कराया।

इसी तरह लखीसराय जिले के सूर्यगढ़ा विधानसभा क्षेत्र के चार गाँवों में भी इस बार पोलिंग बूथ बनाए गए।

8 जिलों में नक्सलवाद का असर

झारखंड से सटे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों जैसे- गया ,अलवर और रोहतास में बॉर्डर पर खास निगरानी की गई, ताकि वोटिंग प्रक्रिया में किसी तरह की दिक्कत न हो।

राज्य के 8 जिले ऐसे हैं, जो नक्सल प्रभावित माने जाते हैं। इनमें गया, औरंगाबाद, मुँगेर, जमुई, कैमूर, लखीसराय, नवादा और रोहतास शामिल है। नक्सल प्रभावित बांका और पश्चिम चंपारण के बगहा को अब नक्सल मुक्त घोषित कर दिया गया है।

बिहार में इस बार दो चरणों में हुए मतदान

बिहार विधानसभा चुनाव इस बार दो चरणों में संपन्न हुए। पहले चरण में 6 नवंबर को 121 सीटों पर मतदान हुआ जबकि 11 नवंबर को 122 सीटों पर मतदान हुआ।

बिहार में पहले 5 से 7 चरणों में भी मतदान होता था। इसकी वजह थी चुनावी हिंसा। लूटपाट, बूथ कैप्चरिंग और बैलेट बॉक्स का ‘जिन्न’। लेकिन पिछले कुछ सालों से यहाँ चुनाव आयोग शांतिपूर्ण मतदान कराने में सफल रहा है। इस बार तो दो चरणों में चुनाव भी कराए गए।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 और भी खास था, क्योंकि 22 साल बाद हुए एसआईआर के माध्यम से यहाँ वोटर लिस्ट अपडेट किया गया।

देश में पहली बार बूथ कैप्चरिंग बिहार में हुआ

देश में पहली बार बूथ कैप्चरिंग की खास घटना 1957 में बिहार के बेगूसराय के रचियाही में हुई थी। घटना की जानकारी दूसरे दिन लोगों को अखबार से लगी। 1957 की इस घटना ने बिहार में राजनीति की दिशा ही बदल दी। राज्य के चुनाव पर माफिया हावी होने लगे। राजनीतिज्ञों और माफियाओं के साँठगाँठ की शुरुआत भी हो गई।

1980 तक आते-आते चुनाव में बाहुबलियों का बोलबाला देखा जाने लगा। हालाँकि देश में चुनाव सुधारों की चर्चा भी होने लगी। 1957 की घटना के बाद चुनाव आयोग ने सुरक्षाबलों की तैनाती पर जोर देना शुरू किया। धीरे-धीरे केंद्रीय बलों की मौजूदगी जरूरी हो गई।

लालू राज में निकलते थे बैलेट बॉक्स से ‘जिन्न’

लालू राज में चुनाव के दौरान बैलेट बॉक्स खुलते ही जिन्न निकलता था। यानी वोट से पहले के माहौल कुछ और बयां करते थे और जीत का सेहरा किसी और के सिर सजता था। बूथ लूट तो आम बात थी।

हत्या, अपहरण की खबरों से पेपर पटे रहते थे। ये वह दौर था, जब चुनाव लोकतंत्र का उत्सव नहीं बल्कि डर और दहशत बन चुका था।। खुलेआम वोटरों को डराया धमकाया जाता था। मतदाताओं के वोट पहले ही पड़ चुके होते थे, उन्हें वापस भेज दिया जाता था।

बिहार चुनाव 2025 इस मामले में खास है कि यहाँ नक्सल प्रभावित जिलों में भी मतदान केन्द्र की व्यवस्था गाँव-गाँव की गई। इस लिहाज से ये चुनाव ऐतिहासिक रहा। डर से परे लोगों ने अपने लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल किया। दशकों बाद अपने गाँव के बूथ पर वोट डालने की खुशी साफ दिखाई दी। जाहिर है उत्साह भी था। इसका भी असर रहा कि वोटिंग प्रतिशत ने पुराने आँकड़े पार कर दिए।

बिहार में ऐतिहासिक चुनाव का श्रेय मोदी सरकार की नक्सल विरोधी अभियानों और कोशिशों को जाता है, जिसकी वजह से नक्सलवाद अब कुछ जिलों में सिमट कर रह गई है। बड़े बड़े ईनामी नक्सली हथियार डाल रहे हैं। मुख्य धारा में शामिल हो रहे हैं। बिहार में वोटिंग की ‘गूँज’ नक्सली दहशत खत्म होने का सबसे बड़ा सबूत है।

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