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सबरीमाला मंदिर ‘सोना चोरी’ केस में पूर्व TDB अध्यक्ष गिरफ्तार, नए अध्यक्ष की नियुक्ति के बीच SIT ने केरल HC को सौंपे सबूत: जानें वामपंथी सरकार कैसे नियुक्त करती है मंदिर बोर्ड का चीफ

केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर से ‘सोना चोरी’ मामले ने एक नया मोड़ आया है। एसआईटी ने त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड (टीडीबी) के पूर्व अध्यक्ष और आयुक्त एन. वासु को 11 नवंबर 2025 को गिरफ्तार कर लिया।

वासु का सीपीएम से पुराना रिश्ता रहा है। वह कोल्लम पंचायत अध्यक्ष और पूर्व मंत्री पीके गुरुदासन के निजी सचिव और वकील हैं। केरल के विपक्षी कॉन्ग्रेस नेता वीडी सतीशन ने कहा कि वासु की गिरफ्तारी से वरिष्ठ माकपा नेताओं की संलिप्तता उजागर होगी। एसआईटी सीपीएम नेता और पूर्व टीडीबी अध्यक्ष पद्मकुमार से भी पूछताछ कर सकती है।

केरल हाईकोर्ट ने भी सख्त टिप्पणी करते हुए मंदिर प्रबंधन के सोना चोरी में ‘मिलीभगत’ की बात कही है। वहीं केरल की वामपंथी सरकार ने टीडीबी के नए अध्यक्ष के तौर पर पूर्व आईएएस अधिकारी जयकुमार को नियुक्त किया है।

टीडीबी के नए अध्यक्ष बने जयकुमार

केरल सरकार ने रिटायर आईएएस अधिकारी के जयकुमार को टीडीबी यानी त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड का अध्यक्ष बनाया है। पूर्व मंत्री और विधायक के राजू को बोर्ड का सदस्य बनाया गया है। टीडीबी सबरीमाला के भगवान अयप्पा मंदिर सहित प्रमुख मंदिरों का प्रबंधन करता है।

10 नवंबर 2025 को जारी अधिसूचना के मुताबिक वर्तमान त्रावणकोर देवस्वओम बोर्ड के अध्यक्ष पी एस प्रशांत का कार्यकाल 13 नवंबर को खत्म हो रहा है। इसलिए 14 नवंबर से इनका कार्यकाल शुरू होगा, जो 2 साल तक चलेगा।

नई नियुक्ति ऐसे समय हो रही है, जब सबरीमाला मंदिर में सोना चोरी का मामला गरमाया हुआ है। केरल सरकार की इस मुद्दे पर काफी फजीहत हो चुकी है। विपक्ष ने टीडीबी के खिलाफ एक्शन की माँग करते हुए विधानसभा की कार्यवाही का बहिष्कार किया। इस मामले में सीपीएम के कई नेताओं के नाम आ रहे हैं।

कैसे होती है टीडीबी सदस्यों की नियुक्ति

केरल सरकार टीडीबी सदस्यों की नियुक्ति करती है। इसमें एक अध्यक्ष और दो सदस्य होते हैं। इस नियुक्ति के मानदंड को सार्वजनिक नहीं किया जाता है, हालाँकि कहा जाता है कि इसमें एक प्रक्रिया अपनाई जाती है। ये बोर्ड सरकार के प्रति जवाबदेह होता है और मंदिर प्रशासन का काम संभालता है।

बोर्ड भारत सरकार के अधीन एक स्वायत्त संस्था के रूप में काम करता है। इसे त्रावणकोर कोचीन हिंदू धार्मिक संस्थान अधिनियम 1950 के तहत बनाया गया है।

सीपीएम नेता पद्मकुमार से पूछताछ संभव

इस मामले में अब तक 5 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। इनमें मुख्य आरोपी उन्नीकृष्णन पोट्टी, सबरीमाला के पूर्व प्रशासनिक अधिकारी मुरारी बाबू, पूर्व कार्यकारी अधिकारी डी सुदेश कुमार और तिरुवभरणम के पूर्व आयुक्त केएस बैजू और पूर्व टीडीबी अध्यक्ष वासु शामिल हैं।

एसआईटी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेता और पूर्व टीडीबी अध्यक्ष के. पद्मकुमार से पूछताछ करने की कोशिश में है। जब एन. वासु देवासम बोर्ड में आयुक्त थे, तब पद्मकुमार टीडीबी के अध्यक्ष थे। फिलहाल वासु न्यायिक हिरासत में हैं, जिनसे एसआईटी पूछताछ कर रही है।

एसआईटी का मानना है कि मंदिर की मूर्तियों और आवरणों पर सोने के बजाय तांबे में बदलने की पूरी प्रक्रिया बहुत बड़े घोटाले को दर्शाता है और इस पूरे मामले में कई हाई प्रोफाइल नाम जाँच के दायरे में आ रहे हैं।

पूर्व टीडीबी अध्यक्ष और वामपंथी वासु की हुई गिरफ्तारी

ताजा मामले में एसआईटी ने टीडीबी के पूर्व अध्यक्ष और कमिश्नर एन वासु को गिरफ्तार किया है। वासु को पहले भी गिरफ्तार किया गया था और पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया था। वासु का सीपीएम से पुराना नाता रहा है। वह दो बार टीडीबी के आयुक्त रह चुके हैं। फिलहाल तिरुवनंतपुरम में वकालत करते हैं।

सोना चोरी के मामले में क्राइम ब्रांच ने पता लगाया है कि मार्च 2019 में सन्निधानम द्वार पैनल से सोना पिघलाने के पूरे काम की जानकारी वासु को थी और उनकी सहमति के बाद ही ये काम किया गया। इस दौरान वासु टीडीबी के अध्यक्ष थे। इससे पहले टीडीबी से 2 बार आयुक्त के तौर पर जुड़े रहे।

विपक्ष शुरू से कहता रहा है कि सबरीमाला मामले में सत्तारूढ़ सीपीएम के नेताओं की संलिप्तता रही है। माना जा रहा है कि मुख्य आरोपी उन्नीकृष्णन पोट्टी ने हिरासत में पूछताछ के दौरान वासु की भूमिका के बारे में बताया।

उन्नीकृष्णन पोट्टी के पुराने ईमेल को जाँच रिपोर्ट में शामिल किया गया है। इसमें पोट्टी ने कथित तौर पर वासु को बताया था कि मंदिर के देवी-देवताओं की प्रतिमाओं की मरम्मती के बाद सोना बच गया है। पोट्टी ने कथित तौर पर उस बचे हुए सोना का इस्तेमाल एक जरूरतमंद लड़की की शादी में लगा दिया। इससे संबंधित ईमेल 9 दिसंबर 2019 को भेजा गया था।

वासु ने ईमेल फॉरवर्ड तो कर दिया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की, जिसके कारण सोना गायब पाया गया। जाँच में पता चला कि वासु को इन सभी मामलों की पूरी जानकारी थी, लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की।

हालाँकि वासु ने जाँच दल को ऐसे किसी घोटाले में अपनी भूमिका से साफ इनकार किया। उसने कहा कि उसके कार्यकाल के दौरान देवी-देवताओं के मरम्मत का काम नहीं हुआ और वह उन्नीकृष्णन पोट्टी को व्यक्तिगत तौर पर नहीं जानता है। उसे केवल ‘स्पांसर’ के तौर पर जानता है। वासु के मुताबिक, उस वक्त कई स्पांसर थे और उन सबकी जाँच करना अव्यावहारिक है।

इस मामले में मुख्य आरोपी उन्नीकृष्णन पोट्टी, मुरारी बाबू और पूर्व आयुक्त केएस बैजू को पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है। एसआईटी को अब जल्द ही केरल हाईकोर्ट में अंतिम रिपोर्ट सौंपनी है।

केरल हाईकोर्ट ने माना बोर्ड की ‘संदिग्ध’ भूमिका

केरल हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान माना है कि बोर्ड के सदस्यों का सबरीमाला अयप्पा मंदिर के सोना चोरी में भूमिका है। एसआईटी इस बात पर भी विचार कर रहा है कि टीडीबी के रिटायर और सेवा करने वाले अधिकारियों और हाई प्रोफाइल राजनीतिक नियुक्तियों को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के दायरे में लाया जाए या नही

एसआईटी ने सौंपे कई दस्तावेज

ये मामला राजनीतिक और कानूनी तौर पर काफी अहम है, क्योंकि इस मामले की जाँच की आँच उच्च अधिकारियों तक पहुँच रही है। एसआईटी अधिकारियों का कहना है कि यदि ऐसा है, तो एसआईटी संभवतः कोल्लम स्थित जाँच आयुक्त और विशेष न्यायाधीश (सतर्कता) के समक्ष एक रिपोर्ट दाखिल करेगी, जिसका अधिकार क्षेत्र पथानामथिट्टा जिला भी है।

अधिकारियों का कहना है कि एसआईटी टीडीबी अधिकारियों पर ‘गबन करने के इरादे’ का आरोप लगाकर मुकदमा चलाने की कोशिश कर सकती है, क्योंकि उन्होंने मंदिर की नक्काशी और मूर्तियों पर चढ़े सोने के पैनल को ‘जानबूझकर गलत तरीके से श्रेणियों में बाँटा’। इसके बाद मरम्मती के नाम पर मुख्य आरोपी उन्नीकृष्णन पोट्टी को सौंपा।

एसआईटी ने कोर्ट को दस्तावेज सौंपते हुए दावा किया है कि सोने की परत चढ़े पैनलों में सोने की जगह तांबे का इस्तेमाल करने को ‘आधिकारिक छूट देना’, ये दर्शाता है कि पोट्टी को फायदा पहुँचाने की कोशिश की गई। ऐसा जानबूझकर किया गया, ताकि चोरी का मामला सामने आने पर ‘आधिकारिक पेपर’ दिखाकर कानूनी रूप से पोट्टी और अन्य अधिकारियों को बचाया जा सके।

प्रतिमाओं पर सोने की परत चढ़ाने में अनियमितता का मामला

सबरीमाला के गर्भगृह में द्वारपालकों की सोने की परत वाली मूर्तियों को मरम्मत के लिए चेन्नई की एक निजी आभूषण फर्म को भेजा गया था। इस पर उठे विवाद के बाद हाईकोर्ट ने इस मामले पर स्वतः संज्ञान लिया था।

दरअसल कोर्ट ने स्पष्ट रूप से आदेश दिया था कि सबरीमाला के आभूषणों की कोई भी मरम्मत या रखरखाव विशेष आयुक्त को पूर्व सूचना देने के बाद ही किया जाना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं किया गया था।

टीडीबी ने 2019 में 40 साल की वारंटी के साथ मूर्तियों पर स्वर्ण परत चढ़ाने की जिम्मेदारी चेन्नई की फर्म स्मार्ट क्रिएशन्स को दिया था।

साल 2025 की शुरुआत में जब मूर्तियों को मरम्मत करने की जरूरत पड़ी, तो टीडीबी ने फिर से मूर्तियों को उसी फर्म को भेज दिया। लेकिन इस बार जरूरी अनुमति नहीं लिए गए।

अदालत ने मरम्मत कार्य चेन्नई को आउटसोर्स करने के टीडीबी के फैसले पर सवाल उठाते हुए मरम्मती कार्य को तत्काल प्रभाव से रोकने का आदेश दिया। साथ ही मंदिर की कीमती वस्तुओं और प्रतिमाओं को केरल वापस भेजने का निर्देश दिया।

4.5 किलोग्राम सोना ‘गायब’ मिला था

साल 2019 में सबरीमाला मंदिर के गर्भगृह (सन्निधानम) के द्वारपालकों की प्रतिमाओं पर सोने की परत चढ़ाने का काम शुरू हुआ। इसके लिए लगभग 42 किलो सोना मंदिर से लिया गया था। योजना के मुताबिक इन सोने की प्लेटों पर विशेष प्रक्रिया से गोल्ड प्लेटिंग कर उसे दोबारा गर्भगृह में लगाया जाना था।

जब ये प्लेटें वापस आईं और मंदिर में स्थापित की गईं, तब चौंकाने वाला सच सामने आया। 42.8 किलोग्राम सोने की जगह मात्र 38 किलोग्राम सोने का ही रिकॉर्ड फर्म के पास था। बाकि 4.5 किलोग्राम सोना गायब हो गया।

इसके बावजूद, टीडीबी ने 2025 में मूर्तियों की मरम्मती का काम उसी फर्म स्मार्ट क्रिएशन्स को दिया। इसके बाद विवाद बढ़ गया और कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा।

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