गुजरात के अमरेली सत्र न्यायालय ने गोहत्या मामले में तीन लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। दोषियों की पहचान कासिम हाजी सोलंकी, सतार इस्माइल सोलंकी और अकरम हाजी सोलंकी के रूप में हुई है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह जानते हुए भी कि गाय हिंदू धर्म का एक पवित्र प्रतीक है, इन तीनों ने गाय का वध करके समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुँचाई।
क्या है पूरा मामला?
मामला नवंबर 2023 का है, जब अमरेली सिटी पुलिस ने एक गुप्त सूचना पर बहारपाड़ा गाँव के मोटा खटकीवाड़ में एक घर पर छापा मारा था। यहाँ से पुलिस को 40 किलो गोमांस बरामद हुआ था। यह घर कासिम हाजी सोलंकी नाम के एक व्यक्ति का था, जो मौके पर ही मिला था।
बाद में जब इसे एफएसएल को भेजा गया, तो पता चला कि वह गोमांस ही था। इसके साथ ही उसके पास से तराजू समेत कई चीजें बरामद हुईं, जिससे पता चला कि वह गोमांस भी बेचता था। पूछताछ के दौरान उसके दो अन्य साथियों के नाम उजागर हुए, लेकिन छापेमारी के बाद वे मौके से भाग गए, जिन्हें बाद में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
गिरफ्तारी के बाद, तीनों के खिलाफ अमरेली सिटी पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया। इसके बाद मामला सिविल कोर्ट में पहुँचा, जहाँ से इसे 2024 में अमरेली सत्र न्यायालय को सौंप दिया गया। सत्र न्यायालय में सुनवाई के बाद मंगलवार (11 नवंबर 2025) को प्रधान जिला न्यायाधीश रिजवाना बुखारी की कोर्ट ने तीनों आरोपितों को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
कोर्ट ने क्या कहा?
फैसले में कोर्ट ने माना कि दोषियों ने यह जानते हुए भी कि गाय हिंदू धर्म का एक पवित्र प्रतीक है, गाय का वध किया और उनके पास से गोमांस भी बरामद हुआ। इसलिए आईपीसी की धारा 295 (किसी अन्य धर्म का अपमान करने के इरादे से समुदाय द्वारा पवित्र मानी जाने वाली वस्तुओं को नष्ट करना) और 429 (गोवंश की हत्या) के तहत अपराध बनता है।
इसके अलावा कोर्ट ने सभी को गुजरात पशु संरक्षण अधिनियम, 1954 की धारा 5, 6 (सी), 8 (2), 8 (4) और 10 के तहत भी दोषी ठहराया है। कोर्ट ने पशु संरक्षण अधिनियम, 1954 की धारा 8(2) और 10 का उल्लंघन करने पर सभी को आजीवन कारावास और 5 लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है।
इसके अलावा, आईपीसी की धारा 295 और 114 के तहत अपराध के लिए तीन साल की कैद और 3 हजार रुपए का जुर्माना, गुजरात पशु संरक्षण अधिनियम, 1954 की धारा 5 और 8(4) का उल्लंघन करने पर पाँच साल की कैद और 5 हजार रुपए का जुर्माना और सात साल की कैद और 1 लाख रुपए का जुर्माना शामिल है।
ये सभी सजाएँ एक साथ काटनी होंगी। इसके अलावा ये सभी फिलहाल जमानत पर बाहर थे, इसलिए इन्हें वापस जेल भेजने का आदेश दिया गया है।
यह तर्क कि पुलिस ने उन्हें फँसाया, निराधार
कोर्ट में सुनवाई के दौरान आरोपितों ने दावा किया कि वे निर्दोष हैं और पुलिस ने उन्हें झूठा फँसाया है। इसके लिए तर्क दिया गया कि पुलिस ने किसी स्वतंत्र गवाह से पंचनामा नहीं कराया था और वे लोग पुलिस के ही थे। पुलिस पर एकतरफा जाँच करने का भी आरोप लगाया गया।
लेकिन कोर्ट ने फैसला सुनाया कि कानून के अनुसार, पुलिस के गवाहों का साक्ष्य अन्य गवाहों के साक्ष्य जितना ही महत्वपूर्ण है और ऐसा कोई नियम नहीं है कि इसकी पुष्टि अन्य स्वतंत्र गवाहों से भी की जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में पुलिस पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है और आरोपित ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सकता।
इसके अलावा कोर्ट ने पशु चिकित्सक और एफएसएल के वैज्ञानिकों की रिपोर्ट को भी ध्यान में रखा, जिन्होंने भी स्पष्ट रूप से कहा था कि पशु का मांस गोमांस था। दूसरी ओर आरोपित इस बारे में कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दे पाए कि गोमांस कहाँ से आया था।
जबकि रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री और अन्य गवाहों के बयानों से यह स्पष्ट हो गया कि इन तीनों ने मिलकर गोहत्या की थी और यह कृत्य गोमांस बेचने के इरादे से किया गया था।
यदि कोर्ट उदार रुख अपनाएगा तो इसका समाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा
आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि सजा की मात्रा तय करते समय कोर्ट को सख्त रवैया नहीं दिखाना चाहिए, लेकिन साथ ही अगर उदार रवैया अपनाया जाता है, तो इसका समाज और आरोपितों की आपराधिक मानसिकता पर प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ सकता है, इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसके बाद सभी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
(यह रिपोर्ट मूल रुप से गुजराती में लिखी गई है। मूल रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।)







