रिपोर्टर बने

तमिलनाडु में हिंदुओं को अन्नदान के लिए जाना पड़ा HC, फिर भी सड़क जाम कर बैठे 500 ईसाई: स्टालिन प्रशासन ने भी इजाजत देने से किया था इनकार

तमिलनाडु में एक सार्वजनिक भूमि को लेकर विवाद बढ़ गया है, जिससे धार्मिक समुदायों के बीच तनाव पैदा हो गया है। यह विवाद तब शुरू हुआ जब कोर्ट ने हिन्दू समुदाय को उस जमीन पर भोज आयोजित करने की अनुमति दी। इस फैसले से नाराज स्थानीय ईसाई समुदाय ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया।

डिंडीगुल में क्या हुआ?

तमिलनाडु के डिंडीगुल शहर में सोमवार (4 नवंबर 2025) को भारी अव्यवस्था देखने को मिली। पंचमपट्टी गाँव के ईसाई समुदाय के 500 से अधिक लोगों ने सड़क जाम कर बड़ा प्रदर्शन किया। उनका विरोध उस ‘अन्नदानम’ कार्यक्रम के खिलाफ था, जो सरकारी जमीन पर आयोजित किया जा रहा था।

यह अन्नदानम एक हिन्दू मंदिर के कुंभाभिषेक का हिस्सा था। प्रदर्शनकारियों ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ विरोध जताया, जिसमें हिन्दू समुदाय को इस भोज की अनुमति दी गई थी।

सुबह के समय सैकड़ों ईसाई पुरुष और महिलाएँ डिंडीगुल कलेक्टर कार्यालय के पास इकट्ठा हुए। वे कोर्ट के फैसले से नाराज थे और विरोध के रूप में अपने सरकारी पहचान पत्र जैसे आधार कार्ड और वोटर आईडी वापस करने की बात कह रहे थे।

प्रदर्शनकारियों ने कलेक्टर कार्यालय जाने वाले मुख्य मार्ग को जाम कर दिया और ज़िला प्रशासन के अधिकारियों के खिलाफ नारेबाज़ी की। हालात तनावपूर्ण हो गए, जिसके बाद कानून-व्यवस्था संभालने के लिए 100 से अधिक पुलिसकर्मियों को तैनात करना पड़ा।

बाद में डिंडीगुल के जिला कलेक्टर एस सरवनन और पुलिस अधीक्षक ए प्रदीप ने प्रदर्शनकारियों से बातचीत की। बातचीत के बाद भीड़ शांत हो गई और प्रदर्शन वापस ले लिया गया।

हालाँकि मामला यहीं खत्म नहीं हुआ। पुलिस ने बताया कि रविवार (2 नवंबर 2025) की रात कार्यक्रम स्थल पर काले झंडों के साथ हुए विरोध प्रदर्शन के मामले में 100 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है।

विवाद कैसे शुरू हुआ

यह घटना पंचमपट्टी गाँव से शुरू हुई, जहाँ स्थानीय हिन्दू समुदाय अपने मंदिर का कुंभाभिषेक समारोह आयोजित कर रहा था। इस पूजा के बाद वे सरकारी जमीन के एक खाली टुकड़े पर अन्नदानम करना चाहते थे। यह जमीन मंदिर और एक स्थानीय चर्च दोनों के पास ही स्थित है।

जब उन्होंने इसकी अनुमति माँगी, तो स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने मंजूरी देने से इनकार कर दिया। उनका कहना था कि इससे तनाव या कानून-व्यवस्था की समस्या हो सकती है।

इस फैसले को एक ग्रामीण ने अनुचित मानते हुए कोर्ट में चुनौती दी। मामला मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ में पहुँचा। पुलिस ने कोर्ट में दलील दी कि उन्होंने अनुमति इसलिए नहीं दी क्योंकि उन्हें कानून-व्यवस्था बिगड़ने की आशंका थी।

सार्वजनिक भूमि किसी एक धर्म के लिए आरक्षित नहीं

कोर्ट में यह मामला जस्टिस जी आर स्वामीनाथन के सामने आया। उन्होंने सबसे पहले यह पूछा कि जमीन का मालिकाना हक किसके पास है। जाँच में पता चला कि वह खाली जमीन ग्राममथम के रूप में दर्ज है, यानी यह पंचायत और सरकार की संपत्ति है।

इस आधार पर जस्टिस स्वामीनाथन ने फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि अगर जमीन सरकारी है, तो उसका उपयोग सभी समुदायों के लोग कर सकते हैं, चाहे उनका धर्म कोई भी हो। उनके शब्दों में, “सार्वजनिक भूमि या तो सभी के लिए खुली होनी चाहिए या किसी के लिए नहीं।”

उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर कोई सार्वजनिक जगह सबके लिए खुली है, तो किसी एक समुदाय को केवल धर्म के आधार पर वहाँ से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है। साथ ही, उन्होंने कहा कि इस तरह का धार्मिक आयोजन करने का अधिकार अनुच्छेद 25 के अंतर्गत आता है।

जस्टिस ने पुलिस की कानून-व्यवस्था बिगड़ने वाली दलील को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि पुलिस का कर्तव्य लोगों के अधिकारों की रक्षा करना है न कि संभावित परेशानी से बचने के लिए कार्यक्रम पर रोक लगाना।

ईसाई समुदाय का तर्क

सुनवाई के दौरान ईसाई समुदाय की दलीलें भी सुनी गईं। उनका कहना था कि करीब 100 साल पहले मैदान के एक हिस्से में एक मंच बनाया गया था, जिसका उपयोग हर साल ईस्टर त्योहार के कार्यक्रमों के लिए होता है। परंपरागत रूप से इस जगह का इस्तेमाल केवल ईसाई समुदाय करता आया है और हिन्दुओं को यहाँ धार्मिक कार्यक्रम करने की अनुमति कभी नहीं दी गई।

उन्होंने 2017 की शांति समिति की बैठक का भी जिक्र किया, जिसमें यह तय किया गया था कि इस मैदान पर कोई नया कार्यक्रम नहीं होगा, सिर्फ वही आयोजन होंगे जो पिछले 100 सालों से होते आ रहे हैं। रविवार (2 नवंबर 2025) की रात हुए विरोध प्रदर्शन में भी यही माँग उठी थी कि इस जमीन को पाश्का ग्राउंड (ईस्टर ग्राउंड) कहा जाए, ताकि यह स्पष्ट हो कि यह ईसाई समुदाय की परंपरागत जगह है।

जस्टिस स्वामीनाथन ने इन दलीलों को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने कहा कि अगर ईसाई समुदाय को ईस्टर के लिए इस मैदान का उपयोग करने की अनुमति है, तो हिन्दू समुदाय को भी उसी जगह पर अन्नदानम करने से नहीं रोका जा सकता। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जब ईस्टर का कार्यक्रम हो, उस दिन मैदान का उपयोग केवल ईसाई समुदाय को ही करने दिया जाए।

जस्टिस ने यह भी बताया कि गाँव में लगभग 2,500 ईसाई परिवार और करीब 400 हिन्दू परिवार रहते हैं। उन्होंने कहा कि केवल ईसाई समुदाय के विरोध को कानून-व्यवस्था की समस्या बताना पुलिस की बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण सोच है। कोर्ट ने प्रशासन के इनकार वाले आदेश को रद्द कर दिया और अन्नदानम कार्यक्रम के लिए अनुमति देने के निर्देश दिए।

सरकारी जमीन पर अधिकार का सवाल

हाई कोर्ट का आदेश बिल्कुल स्पष्ट था, लेकिन उसके बाद हुए विरोध ने यह दिखा दिया कि दोनों समुदायों के बीच गहरा तनाव मौजूद है। इस घटना ने यह बड़ा सवाल खड़ा किया कि हिन्दू समुदाय को सिर्फ एक दिन का सामुदायिक अन्नदान सरकारी जमीन पर करने के लिए कोर्ट तक क्यों जाना पड़ा?

कोर्ट से अनुमति मिलने के बाद भी उन्हें बड़े पैमाने पर सड़क जाम और विरोध का सामना करना पड़ा। कई लोगों का कहना है कि यह एकाधिकार की मानसिकता का मामला है, जहाँ एक समूह सार्वजनिक संपत्ति को केवल अपना अधिकार मानता है।

असल बात यह है कि वह जमीन किसी चर्च की निजी संपत्ति नहीं, बल्कि सरकारी भूमि है। सिद्धांत रूप में सरकारी जमीन देश के सभी नागरिकों की होती है, चाहे वे हिन्दू हों, ईसाई हों, मुसलमान हों या कोई और। जब तक कोई कार्यक्रम शांतिपूर्वक और दूसरों को बिना नुकसान पहुँचाए आयोजित किया जाता है, तब तक किसी भी समुदाय को इसका उपयोग करने का अधिकार है।

भारत जैसे विविधता भरे देश में जहाँ कई धर्म और समुदाय साथ रहते हैं, पारस्परिक सम्मान ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है। साथ ही, विरोध का तरीका भी सवालों में है। विरोध जताना सबका अधिकार है, लेकिन मुख्य सड़कों को जाम करना और आम जनता की आवाजाही रोकना गलत है। इससे आम लोग जो इस विवाद से जुड़े भी नहीं हैं सबसे ज्यादा परेशानी झेलते हैं।

ऐसा ही मामला: विशालगढ़ किले पर बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला

डिंडीगुल की घटना अपने आप में अकेली नहीं है। तमिलनाडु में ही एक और ऐसा मामला तिरुपरंकुंद्रम मुरुगन मंदिर पहाड़ी पर सामने आया था। यह पहाड़ी हिन्दुओं के लिए अत्यंत पवित्र मानी जाती है, क्योंकि यह भगवान मुरुगन के छह प्रमुख तीर्थ स्थलों (अरुपदै वेडु) में से एक है।

विवाद 27 दिसंबर 2024 को शुरू हुआ, जब कुछ मुस्लिम श्रद्धालु सिखंदर बादूशा दरगाह जो इसी पहाड़ी पर स्थित है उस पर बकरों और मुर्गों की बलि देने के लिए उन्हें लेकर आए।

मंदिर प्रशासन और पुलिस ने उन्हें रोक दिया, यह कहते हुए कि इतने पवित्र स्थल के पास पशु बलि की अनुमति नहीं दी जा सकती। इसके बाद करीब 20 मुसलमानों ने पहाड़ी के नीचे विरोध प्रदर्शन किया। यह मामला भी मद्रास हाईकोर्ट पहुँच गया।

जस्टिस विजयकुमार ने सरकारी और पुरातात्विक अभिलेखों की जाँच की, जो 1908 तक के थे। उन्होंने निर्णय दिया कि इस स्थल का आधिकारिक और ऐतिहासिक नाम तिरुपरंकुंद्रम हिल है। इसे सिखंदर मलै कहने की कोशिश को उन्होंने भ्रामक और पहचान बदलने की कोशिश बताया।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दरगाह पर पशु बलि की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह कोई अनिवार्य धार्मिक प्रथा साबित नहीं हुई। साथ ही कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम समुदाय को नेल्लीथोप्पु क्षेत्र के एक छोटे हिस्से में रमजान और बकरीद के दौरान नमाज अदा करने का अधिकार है, लेकिन वहाँ तक जाने वाली सीढ़ियाँ और पहाड़ी पर स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर मंदिर प्रशासन की संपत्ति हैं और उन्हें अवरुद्ध नहीं किया जा सकता।

हिंदू समुदाय के अधिकारों का हो रहा हनन

डिंडीगुल अन्नदान विवाद और तिरुपरंकुंद्रम पहाड़ी मामले को देखें तो एक स्पष्ट पैटर्न दिखाई देता है। दोनों ही घटनाओं में हिन्दू समुदाय के अधिकारों को चुनौती दी गई, डिंडीगुल में सार्वजनिक जमीन पर अन्नदान करने के अधिकार को और तिरुपरंकुंद्रम में पवित्र स्थल की पवित्रता की रक्षा के अधिकार को। डिंडीगुल में विरोध एक सामुदायिक भोज को लेकर हुआ, जबकि तिरुपरंकुंद्रम में पवित्र हिन्दू पहाड़ी पर पशु बलि देने की कोशिश की गई।

दोनों मामलों में हिन्दू समुदाय को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी। खास बात यह रही कि डिंडीगुल में कोर्ट का साफ आदेश आने के बाद भी बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ, जिससे यह साफ दिखता है कि जमीनी स्तर पर हालात अब भी बेहद नाजुक हैं।

(मूल रूप से यह रिपोर्ट दिव्या भारती ने अंग्रेजी में लिखी है, जिसको पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।)

  • Related Posts

    मोदी सरकार ने ईसाई प्रचारक फ्रैंकलिन ग्राहम को वीजा देने से किया इंकार, जानिए उनके पिता के धर्मांतरण मिशन और नेहरू-गाँधी परिवार से संबंधों के बारे में

    गृह मंत्रालय ने अमेरिकी क्रिश्चियन ईवेंजेलिस्ट फ्रैंकलिन ग्रैहम को वीजा देने से मना कर दिया है। वह रविवार (30 नवंबर 2025) को नगालैंड के कोहिमा में एक क्रिश्चियन कार्यक्रम में…

    ‘सौभाग्य’ नहीं, ‘संगठित रणनीति’: 8.2% की शानदार GDP ग्रोथ से भारत की अर्थव्यवस्था ने दुनिया को फिर दिखाया अपना दम

    भारत की विकास गाथा एक बार फिर वैश्विक मंच पर ध्वनि-गर्जना कर रही है। जिस समय दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ धीमी पड़ने लगी हैं, उसी समय भारत ने 2025-26 की…

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com