जर्मनी की सरकार ने देश में चरमपंथ को बढ़ावा देने और संविधान के खिलाफ काम करने के आरोप में दो इस्लामवादी समूहों पर बड़ा कदम उठाया है। इनमें से एक ‘इस्लामिक सेंटर हैम्बर्ग (IZH) है, जिसे ईरान और हिजबुल्लाह का समर्थन करने के आरोप में बैन किया गया। दूसरा समूह ‘मुस्लिम इंटरएक्टिव‘ है, जिस पर भी बैन लगा दिया गया है।
यह कदम इसलिए अहम है क्योंकि मुस्लिम इंटरएक्टिव जैसे समूह सोशल मीडिया, खासकर टिकटॉक का इस्तेमाल करके जर्मनी में खिलाफत (इस्लामी शासन) की माँग कर रहे थे और युवाओं में कट्टरपंथी विचार फैलाने की कोशिश कर रहे थे। जर्मन अधिकारियों ने इसे ‘आधुनिक टिकटॉक इस्लामिज्म‘ कहा है, यानी सोशल मीडिया के जरिए युवाओं को प्रभावित करने की रणनीति।
यह कार्रवाई जर्मनी के लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए जरूरी थी, क्योंकि ये समूह लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करने की कोशिश कर रहे थे। सरकार ने इस पर सख्त कदम उठाकर यह साफ कर दिया है कि वह ऐसे चरमपंथी विचारों से निपटने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
क्या कार्रवाई हुई है?
जर्मन सरकार ने इस्लामिक सेंटर हैम्बर्ग (IZH) और उसके जुड़े समूहों पर बैन लगा दिया है। इसके बाद, जर्मनी में चार शिया मस्जिदों को बंद कर दिया गया और संगठन की संपत्तियाँ जब्त कर ली गईं। गृह मंत्री नैन्सी फेजर ने कहा कि यह समूह लोकतंत्र, मानवाधिकार और महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ था और इसका मकसद जर्मनी में इस्लामी शासन स्थापित करना था। इसके साथ ही, इसे Hezbollah जैसे आतंकवादी समूहों का समर्थन करने का भी आरोप लगा था।
इसके अलावा, पिछले साल नवंबर में पुलिस ने 55 जगहों पर छापे मारे थे, जिससे पता चला कि यह समूह गुपचुप तरीके से अपने राजनीतिक उद्देश्य पूरे कर रहा था। इस कार्रवाई का मकसद यह दिखाना था कि जर्मनी किसी भी प्रकार की कट्टरपंथी गतिविधि को नहीं सहन करेगा। सरकार ने यह भी साफ किया कि यह कदम शिया मुसलमानों के मजहबी अधिकारों के खिलाफ नहीं है, बल्कि इस्लामी कट्टरपंथियों के खिलाफ है।
क्या कर रहा था ‘ग्रुप’?
‘ग्रुप’ एक ऐसा समूह था जो जर्मनी में युवाओं को कट्टरपंथी विचारधारा से प्रभावित करने की कोशिश कर रहा था। इसके लिए इस समूह ने टिकटॉक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया। टिकटॉक की तरह के ऐप्स, जो तेज और मजेदार वीडियो दिखाते हैं, ऐसे प्लेटफॉर्म कट्टरपंथी विचार फैलाने के लिए आदर्श जगह बन गए हैं। ग्रुप का मकसद था कि वह युवाओं को इस्लामिक क्रांति के विचारों से जोड़ सके और उन्हें लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ विचारों में प्रभावित कर सके।
इसके अलावा, ‘ग्रुप’ का एक और बड़ा उद्देश्य था, वैश्विक खिलाफत की स्थापना करना। इसका मतलब था कि वे चाहते थे कि पूरी दुनिया में एक इस्लामिक शासन बने, जो लोकतांत्रिक देशों के खिलाफ हो। इस उद्देश्य को फैलाने के लिए, ग्रुप के सदस्य सोशल मीडिया के जरिए युवा लोगों को अपने विचारों के प्रति आकर्षित कर रहे थे और जर्मनी में इस्लामी शासन स्थापित करने की कोशिश कर रहे थे।
कौन चलाता है ग्रुप और क्या लक्ष्य है?
‘ग्रुप’ एक युवा संगठन चला रहा था, जो 2020 में बना था और अब इसे ‘हिजबुत तहरीर (HuT)’ से जोड़ा जा रहा है। हिजबुत तहरीर को 2003 में जर्मनी में बैन किया गया था। इस संगठन का मुख्य लक्ष्य ‘दुनिया भर में एक इस्लामिक शासन यानी खिलाफत की स्थापना करना और पश्चिमी लोकतांत्रिक व्यवस्था का विरोध करना था। ये लोग चाहते थे कि जर्मनी में इस्लामी कानून लागू हो और वे जर्मनी के संविधान का विरोध करते थे।
इस संगठन के विचार खासकर युवाओं को आकर्षित करते थे, क्योंकि वे अपने संदेश को सोशल मीडिया जैसे टिकटॉक के माध्यम से बहुत आसानी से फैलाते थे। उनका उद्देश्य था कि वे युवाओं को इन प्लेटफॉर्म्स पर अपने विचारों से प्रभावित करें और उन्हें कट्टरपंथी सोच अपनाने के लिए तैयार करें।
अन्य दो ग्रुप क्या कर रहे थे?
जर्मनी में ग्रुप के अलावा, दो और कट्टरपंथी समूह ‘जेनरेशन इस्लाम और रियलिटी इस्लाम‘ थे। ये दोनों समूह भी वही काम कर रहे थे जो ग्रुप करता था, यानी कट्टरपंथी विचारों को फैलाना। इन दोनों समूहों पर भी ग्रुप की तरह बैन लग सकता था, क्योंकि ये भी युवाओं को इस्लामिक कट्टरपंथ की तरफ खींचने की कोशिश कर रहे थे। जर्मनी की खुफिया एजेंसियों ने इन समूहों की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी और इनकी संपत्तियों की भी तलाशी ली।
हालाँकि, अभी तक इन समूहों पर कोई बैन नहीं लगाया गया है, लेकिन वे भी ग्रुप और मुस्लिम इंटरएक्टिव जैसे समूहों की तरह मुश्किल में पड़ सकते हैं। इनका भी उद्देश्य इस्लामिक शरिया कानून के तहत शासन स्थापित करना और लोकतांत्रिक व्यवस्था का विरोध करना था, इसलिए जर्मनी सरकार इन पर नजर बनाए रखे हुए है।
क्या जर्मनी में पहले भी बैन हुए हैं ऐसे ग्रुप?
हाँ, जर्मनी में पहले भी कई कट्टरपंथी समूहों पर बैन लगाया जा चुका है। इनमें से सबसे पहले 2003 में हिजबुत तहरीर (HuT) पर बैन लगाया गया था। यह समूह भी जर्मनी में कट्टरपंथी विचारों को फैलाने और शरिया कानून के तहत शासन स्थापित करने की कोशिश कर रहा था, इसलिए उसे देश में पूरी तरह से बैन कर दिया गया था।
इसके बाद, 2020 में हेजबोल्ला (Hezbollah) को भी आतंकवादी संगठन घोषित करते हुए जर्मनी में उस पर बैन लगा दिया था। यह समूह ईरान से जुड़ा हुआ था और जर्मनी के अंदर अपनी आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा था।
इनके अलावा, हाल ही में 2023 में हमास (Hamas) के समर्थन में काम कर रहे समीदोन–पलस्तीनियन सॉलिडेरिटी नेटवर्क पर भी जर्मनी ने बैन लगा दिया। यह समूह इजरायल के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा दे रहा था और उसकी आतंकवादी गतिविधियों को समर्थन दे रहा था।
जर्मनी ने इन सभी समूहों के खिलाफ कार्रवाई की क्योंकि ये समूह जर्मन समाज के लिए खतरा पैदा कर रहे थे और लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करने की कोशिश कर रहे थे। जर्मनी के लिए यह एक निरंतर प्रक्रिया बन चुकी है, जिसमें वह किसी भी प्रकार की इस्लामी कट्टरपंथी गतिविधियों से निपटने के लिए लगातार सक्रिय रहता है।
जर्मनी की सरकार का लक्ष्य है कि वह समाज में शांति बनाए रखे और किसी भी प्रकार के आतंकवाद या कट्टरपंथ को बढ़ावा न दे। इसलिए, जब भी कोई समूह लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ काम करता है, तो उस पर कड़ी कार्रवाई की जाती है।
क्या जर्मनी इस्लामी कट्टरपंथियों से जूझ रहा है?
हाँ, जर्मनी में इस्लामी कट्टरपंथ की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। अब चरमपंथी संगठन पुराने तरीकों की बजाय नए डिजिटल रास्तों का इस्तेमाल कर रहे हैं। ‘टिकटॉक इस्लामिज्म‘ इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। ये समूह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे टिकटॉक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब का इस्तेमाल करके युवाओं को कट्टरपंथ की ओर खींच रहे हैं।
तेज, आकर्षक और भावनात्मक वीडियो बनाकर ये लोग युवाओं को यह महसूस कराते हैं कि पश्चिमी लोकतंत्र उनके धर्म के खिलाफ है और उन्हें इस्लामी शासन की ओर लौटना चाहिए। यह तरीका खासकर किशोरों और छात्रों पर असर डाल रहा है, जो सोशल मीडिया पर बहुत समय बिताते हैं।
जर्मनी की खुफिया एजेंसियाँ इन गतिविधियों पर लगातार नजर रख रही हैं। कई रिपोर्टों में यह पाया गया है कि ऐसे समूहों के जरिए नाबालिगों को प्रभावित किया जा रहा है और उन्हें समाज से अलग सोच अपनाने के लिए उकसाया जा रहा है। इस वजह से सरकार ने कई बार सख्त कदम उठाए हैं, जैसे मुस्लिम इंटरएक्टिव, जेनरेशन इस्लाम और रियलिटी इस्लाम जैसे संगठनों पर छापे और जाँचें। सरकार का कहना है कि ऐसे समूह मजहब के नाम पर नफरत फैला रहे हैं और लोकतंत्र को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों में जर्मनी में इस्लामवादी-प्रेरित हमलों और साजिशों के कई मामले सामने आए हैं। खासकर गाजा युद्ध और मध्य पूर्व में तनाव बढ़ने के बाद, इन घटनाओं में तेजी आई है। कई बार स्कूलों और मस्जिदों में ऐसे युवाओं के समूह मिले हैं जो सोशल मीडिया पर देखे गए वीडियो से प्रभावित होकर कट्टर विचारधारा अपनाने लगे थे। यही वजह है कि जर्मन सरकार अब इन डिजिटल नेटवर्क्स को लेकर और ज़्यादा सतर्क हो गई है।
जर्मनी की सरकार का मानना है कि मजहब का इस्तेमाल राजनीति या चरमपंथ के लिए नहीं होना चाहिए। इसलिए जब कोई संगठन मजहबी स्वतंत्रता के नाम पर हिंसा, नफरत या ‘खिलाफत’ की माँग करने लगता है तो उस पर तुरंत कार्रवाई की जाती है। हाल ही में सरकार ने कई समूहों की संपत्तियाँ जब्त कीं, उनके सोशल मीडिया चैनल बंद किए और सदस्यों पर कानूनी कार्रवाई शुरू की।
सरकार का लक्ष्य सिर्फ चरमपंथ को रोकना नहीं है, बल्कि युवाओं को सुरक्षित और सही जानकारी देना भी है। इसके लिए स्कूलों और सामुदायिक संगठनों के साथ मिलकर जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि ‘टिकटॉक इस्लामिज्म‘ जैसे रुझान केवल एक सुरक्षा चुनौती नहीं हैं, बल्कि ये समाज में विभाजन भी पैदा करते हैं।
इसलिए कहा जा सकता है कि जर्मनी इस समय एक दोहरी लड़ाई लड़ रहा है। एक ओर वह अपने देश को आतंकवाद और कट्टरपंथ से बचा रहा है और दूसरी ओर सोशल मीडिया के जरिए फैल रहे डिजिटल चरमपंथ को भी रोकने की कोशिश कर रहा है। सरकार के लिए यह आसान नहीं है, लेकिन जर्मनी का यह सख्त रुख यह दिखाता है कि वह अपने लोकतंत्र और समाज की सुरक्षा को लेकर कोई समझौता नहीं करेगा।







