प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन की राजकीय यात्रा पर भूटान पहुँचे हुए हैं। इस ऐतिहासिक दौरे के दौरान प्रधानमंत्री ने भारत और भूटान की सरकार द्वारा मिलकर बनाए गए पुनात्सांगछू-II जलविद्युत (हाइड्रो इलेक्ट्रिक) परियोजना का उद्घाटन किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने X पर उद्घाटन समारोह की कुछ तस्वीरें साझा करते हुए लिखा, “विकास को गति देना, दोस्ती को गहराई देना और टिकाऊ भविष्य की दिशा में आगे बढ़ना! ऊर्जा सहयोग भारत और भूटान की साझेदारी का एक मजबूत स्तंभ है। आज हमने पुनात्सांगछू-II हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया। यह हमारे दोनों देशों की दोस्ती का एक स्थायी प्रतीक है।”
Fuelling development, deepening friendship and driving sustainability!Energy cooperation remains a key pillar of the India-Bhutan partnership. Today, we inaugurated the Punatsangchhu-II Hydropower Project. This is an enduring symbol of friendship between our countries. pic.twitter.com/amYDqzxD1Q— Narendra Modi (@narendramodi) November 11, 2025
1,020 मेगावॉट की इस जलविद्युत परियोजना का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी ने भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक के साथ किया। यह भारत और भूटान के संबंधों में एक अहम पड़ाव माना जा रहा है। पुनात्सांगछू-II जलविद्युत परियोजना का काम इस साल अगस्त में पूरी तरह पूरा हो गया था। इसकी आखिरी यूनिट को 27 अगस्त 2025 को भूटान के प्रधानमंत्री शेरिंग तोबगे और भूटान में भारत के राजदूत सुधाकर दलेला की मौजूदगी में जोड़ा गया था।
#WATCH | Bhutan | Prime Minister Narendra Modi and His Majesty the King of Bhutan Druk Gyalpo inaugurate the Punatsangchhu-II Hydroelectric Project, in the presence of the Sacred Buddha Relics(Source: DD) pic.twitter.com/uEhW4TjasQ— ANI (@ANI) November 11, 2025
भारत-भूटान ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग से मजबूत कर रहे हैं रिश्ते: जानिए कैसे भारत ने बनाई और फंड की पुनात्सांगछू-II जलविद्युत परियोजना
पश्चिमी भूटान में पुनात्सांगछू नदी पर बनी पुनात्सांगछू-II जलविद्युत परियोजना एक ‘रन-ऑफ-द-रिवर’ यानी नदी के प्राकृतिक प्रवाह से चलने वाली परियोजना है। इसका मतलब है कि इसमें बड़े बाँध या विशाल जलाशय नहीं बनाए जाएँगे बल्कि यह नदी के बहाव से ही स्वच्छ और टिकाऊ बिजली पैदा करती है। इस परियोजना की शुरुआत दिसंबर 2010 में भारत सरकार और भूटान सरकार ने मिलकर की थी। 1960 के दशक से ही यह परियोजना भारत-भूटान के गहरे रिश्तों का प्रतीक मानी जाती है।
इस पूरी परियोजना के लिए भारत ने लगभग 7,500 करोड़ रुपए का वित्तीय सहयोग दिया है। इसमें 30 प्रतिशत हिस्सा अनुदान (यानी लौटाने की जरूरत नहीं) के रूप में और 70 प्रतिशत हिस्सा रियायती दर पर ऋण के रूप में दिया गया। इस व्यवस्था का मकसद था कि भूटान जैसे मित्र देश को आसान भुगतान शर्तों के साथ मदद मिले। इस परियोजना से भूटान की बिजली उत्पादन क्षमता में करीब 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी और क्षेत्रीय ऊर्जा सुरक्षा को भी मजबूती मिलेगी।
यह परियोजना टर्नकी जॉइंट वेंचर के रूप में पूरी की गई जिसमें भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (NHPC) मुख्य भारतीय डेवलपर थी। इस परियोजना में भारतीय तकनीकी विशेषज्ञों और इंजीनियरों ने भूटान की द्रुक ग्रीन पावर कॉरपोरेशन (DGPC) के साथ मिलकर डिजाइन, निर्माण और संचालन का काम संभाला। भारतीय टीम ने भूटान के इंजीनियरों को भौगोलिक सर्वे, बांध निर्माण और टरबाइन स्थापना में तकनीकी सहायता दी ताकि हिमालयी इलाकों में आने वाली चुनौतियों जैसे भूकंपीय गतिविधियाँ और भूस्खलन से निपटा जा सके।
इस परियोजना को भारत की इंजीनियरिंग परामर्श कंपनियों का पूरा सहयोग मिला। इसमें वॉटर एंड पावर कंसल्टेंसी सर्विसेज (WAPCOS) ने इंजीनियरिंग और डिजाइन का काम संभाला जबकि नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ रॉक मैकेनिक्स (NIRM) ने मॉडलिंग और भू-तकनीकी सेवाएँ दीं।
निर्माण कार्य 2011 में शुरू हुआ था लेकिन बीच में परियोजना को कई भौगोलिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा इसमें जमीन धंसने (sinkholes) और नींव की अस्थिरता जैसी समस्याएँ प्रमुख थीं। इन कठिनाइयों के बावजूद भारत और भूटान की टीमों ने मिलकर उन्नत इंजीनियरिंग तकनीकों के जरिए इन रुकावटों को दूर किया और परियोजना को आगे बढ़ाया। भारत ने इस परियोजना के दौरान पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने पर भी विशेष ध्यान दिया ताकि पुनाखा-वांगड्यू घाटी जैसे संवेदनशील क्षेत्र में पारिस्थितिक प्रभाव को न्यूनतम रखा जा सके।
भूटान के एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जो इस साल सितंबर में प्रकाशित हुई इस परियोजना ने अब तक लगभग 2,160 मिलियन यूनिट स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन किया है, जिससे करीब 6 अरब भूटानी मुद्रा (1 भूटानी मुद्रा =1 भारतीय रुपया) की घरेलू आय हुई है।
पुनात्सांगछू-II परियोजना भूटान में भारत की मदद से बनी एकमात्र जलविद्युत परियोजना नहीं है। भारत ने भूटान में अब तक छह बड़ी संयुक्त जलविद्युत परियोजनाओं को वित्तीय सहायता और तकनीकी सहयोग के साथ पूरा किया है, जिनसे भूटान की कुल स्थापित बिजली क्षमता में 3,400 मेगावॉट से अधिक का योगदान हुआ है। भारत, भूटान की बिजली का सबसे बड़ा खरीदार भी है। पिछले कई वर्षों में भारत ने भूटान के साथ छुखा, कुरिचू, ताला, मंगदेछू, पुनात्सांगछू और प्रस्तावित खोलोंगछू जलविद्युत परियोजनाओं में साझेदारी की है। वर्ष 2021 में मंगदेछू जलविद्युत परियोजना (Mangdechhu HEP) को सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय बाँध का पुरस्कार मिला था, जो भारत-भूटान के ऊर्जा सहयोग की बड़ी सफलता मानी जाती है।
भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ (पड़ोसी पहले) नीति से बदल रहा है भूटान
ऐतिहासिक रूप से भारत ने भूटान के विकास में अहम भूमिका निभाई है और वह हमेशा इसकी प्रगति की कहानी का एक अभिन्न हिस्सा रहा है। भूटान की 13वीं पंचवर्षीय योजना (2024 से 2029) के लिए भारत सरकार ने 10,000 करोड़ रुपए की सहायता देने का वादा किया है। इसमें परियोजनाओं के लिए मदद, सामुदायिक विकास योजनाएँ, आर्थिक प्रोत्साहन कार्यक्रम और अनुदान शामिल हैं। भारत के विदेश मंत्रालय के अनुसार, यह राशि पिछली 12वीं पंचवर्षीय योजना की तुलना में 100 प्रतिशत अधिक है।
भारत और भूटान के बीच व्यापारिक संबंध भी काफी मजबूत हैं। वर्ष 2024-25 में भारत ने भूटान को 1.3 अरब डॉलर का निर्यात किया। इनमें पेट्रोलियम उत्पाद, लोहा-इस्पात, अनाज और स्मार्टफोन शामिल थे। वहीं, भूटान ने भारत को कुल 513 मिलियन डॉलर के उत्पादों का निर्यात किया जिनमें बिजली और निर्माण सामग्री प्रमुख थीं।
India is Bhutan's largest trade and development partner. The trade volume has tripled since 2014 to over $1.7 billion. Hydropower is a cornerstone of this partnership, with India funding and constructing mega hydropower projects in Bhutan, while Bhutan exports the electricity… pic.twitter.com/6q87B69aMO— DD News (@DDNewslive) November 11, 2025
जलविद्युत परियोजनाओं के अलावा भारत ने भूटान को रेलवे ढाँचे को मजबूत करने में भी मदद दी है। 11 नवंबर को थिम्फू में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया कि इस वर्ष सितंबर में भारत सरकार ने भूटान के गेलेफू और समत्से शहरों को असम के कोकराझार और पश्चिम बंगाल के बनरहाट से जोड़ने का फैसला किया है। यह परियोजना तीन साल में पूरी होने की उम्मीद है।
करीब 4,033 करोड़ रुपए की इस रेलवे परियोजना के तहत 89 किलोमीटर लंबी दो रेल लाइनों का निर्माण किया जाएगा। इससे यात्रा का समय काफी घट जाएगा और भूटान में भारत की मदद से विकसित की जा रही ‘गेलेफू माइंडफुलनेस सिटी’ को भी बड़ी बढ़त मिलेगी। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “इस परियोजना के पूरा होने से यहाँ के उद्योगों और भूटानी किसानों को भारत के विशाल बाजार तक आसानी से पहुँच मिल सकेगी।”
भारत थिम्फू-फुएंतशोलिंग हाईवे और बॉर्डर की सड़कों बढ़ाने में भी योगदान दे रहा है। इसके अलावा नई दिल्ली, थिम्फू और पारो में स्मार्ट सिटी परियोजनाओं में भी मदद कर रही है। भारत ने इन कार्यों और स्वास्थ्य व शहरी ढांचे से जुड़ी अन्य योजनाओं के लिए कुल 1,113 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं।
इसके साथ ही भारत, भूटानी छात्रों को भी उच्च शिक्षा के अवसर प्रदान कर रहा है। नेहरू-वांगचुक छात्रवृत्ति और राजदूत छात्रवृत्ति जैसी योजनाओं के माध्यम से हर साल 1000 से अधिक भूटानी विद्यार्थियों को भारत में पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति दी जाती है। भूटान के लोगों के जीवन को और सुविधाजनक बनाने के लिए भारत अपने UPI सिस्टम को भी वहाँ विस्तार दे रहा है, जिससे डिजिटल भुगतान आसान और तेज हो सके।







