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ईरान-इजरायल की लड़ाई ने बढ़ाई कच्चे तेल सप्लाई पर चिंता, लेकिन भारत ने पहले ही कर लिया इंतजाम: 50 लाख टन+ का बनाया रिजर्व, जानिए कैसे एथेनॉल से ‘आत्मनिर्भरता’ की तरफ बढ़ रहा देश

इजरायल ने 12 जून 2025 की रात को ईरान पर हमला किया। इस सैन्य हमले ने विश्व के कई देशों की चिंता बढ़ा दी। दोनों देशों के बीच चल रहे टकराव से भारत के साथ-साथ वैश्विक बाजार में गिरावट होने की भी आशंका है।

भारत में शुक्रवार (13 जून,2025) को सेंसेक्स के 573 अंक गिरकर बंद हुआ। इसके बाद बाजार पर संघर्ष के बादल मंडराते दिखे। भारत के दोनों देशों के साथ अच्छे संबंध हैं, ऐसे में भारत पर इसका प्रभाव पड़ना भी लाजमी है। 

दरअसल, वैश्विक बाजारों को इसलिए भी चिंता होने लगी कि दोनों देशों का संघर्ष कच्चे तेल की आपूर्ति को बाधित कर सकता है। भारत सहित कई ऐसे देश हैं जो कच्चे तेल के आयात के लिए दूसरे देशों पर निर्भर हैं। हालाँकि, भारत इससे निपटने के लिए पहले से तैयार है।

विवाद से भारत का व्यापार भी हो सकता है प्रभावित 

दोनों देशों के बीच संघर्ष पैदा होने से कच्चे तेल की कीमतें बढ़ेंगी। इससे भारतीय रुपए के कमजोर होने का खतरा भी बना हुआ है। इससे भारत की मुद्रास्फीति में भी इजाफा हो सकता है। इजरायल के ईरान पर हवाई हमले शुरू करने के बाद ईरानी हवाई क्षेत्र में यूरोप और एशिया के बीच उड़ान भरने वाले यात्री विमानों का भी बड़े पैमाने पर डायवर्जन करना पड़ा।

इन सब के साथ पश्चिमी एशियाई देशों के बीच संघर्ष का समुद्री मार्ग से होने वाले व्यापार पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इस वजह से माल ढुलाई शुल्क में वृद्धि होगी क्योंकि यात्रा का समय 10-14 दिन बढ़ जाएगा। जहाजों की उपलब्धता कम हो जाने से माल ढुलाई के दरों में वृद्धि होने की संभावना है।

इसके अलावा इजरायल और ईरान दोनों के साथ भारत का कुल व्यापार करीब 500 करोड़ रुपए (5 बिलियन डॉलर) का है। ऐसे में दोनों देशों के साथ होने वाले आयात-निर्यात पर भी बुरा असर पड़ेगा।

कच्चे तेल को लेकर पैदा हुए संकट से लड़ने के लिए भारत है तैयार 

पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले Indian Strategic Petroleum Reserve Limited (आईएसपीआरएल) की कुल क्षमता 5.33 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) कच्चे तेल की है। इनका भंडारण विशाखापत्तनम, मंगलुरु और पादुर में स्थित हैं।

कच्चे तेल के अधिकतम भंडार के मामले में पादुर 2.5 मिलियन मीट्रिक टन, मंगलुरू 1.5 और विशाखापत्तनम 1.3 मिलियन मीट्रिक टन का भंडारण करता है। 

इन भंडारों के निर्माण का मुख्य उद्देश्य वैश्विक स्तर पर होने वाले राजनीतिक उथल-पुथल के समय ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करना है। इनका प्रयोग आपूर्ति में व्यवधान या बाजार में कीमतों के उछाल की स्थिति में कच्चे तेल की माँग को पूरा करने के लिए किया जा सकता है।

ये भंडार-गृह आमतौर पर जमीन के अन्दर गुफाओं में बनाए जाते हैं। इन्हें हाइड्रोकार्बन के भंडारण के लिए सबसे सुरक्षित तरीकों में से एक माना जाता है। इसके माध्यम से भारत में कच्चे तेल की आपूर्ति को लेकर गहराए संकट से निजात दिलाने में काफी मदद मिलेगी।

SPR के विस्तार ने भारत को बनाया आत्मनिर्भर 

मोदी सरकार के आने के बाद Strategic Petroleum Reserves (SPR) के विस्तार पर जोर दिया गया।  केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा जुलाई 2021 में दो और एसपीआर के निर्माण को मंजूरी दी गई थी ताकि भंडार में 6.5 एमएमटी की वृद्धि हो सके।

इसका उद्देश्य बाहरी झटकों का सामना करने के लिए भारत की क्षमता को बढ़ाना है। इतना ही नहीं सरकार भविष्य के भंडारों के लिए नई जगहों की पहचान करने में लगी है। मोदी सरकार ने आयात स्रोतों को बढ़ाने का भी कार्य किया है।

आयात स्रोतों को बढ़ाने से भी कम हुई निर्भरता

किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भरता के जोखिम के खतरे को कम करने के लिए सरकार ने आयात स्रोतों को भी बढ़ाया है। भारत ने ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और यूएई में Liquefied Natural Gas (एलएनजी) के आयात पर हस्ताक्षर किए हैं।

कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए भारत ने जैव ईंधन और गैस आधारित ऊर्जा के विकास पर भी काफी जोर दिया है। इससे इथेनॉल उत्पादन में काफी वृद्धि हुई।

इथेनॉल उद्योग के निर्माण से कार्बन उत्सर्जन में 1 करोड़ (10 मिलियन) टन की कमी आएगी और कच्चे तेल के आयात पर सालाना 40,000 करोड़ रुपयए तक की बचत होगी। सरकार बायो गैस, बायोडीजल, ग्रीन हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिक वाहनों को भी बढ़ावा दे रही है।

यह कहना गलत नहीं होगा कि संकट की स्थिति में भी भारत के पास अपने Strategic Petroleum Reserves (एसपीआर) को हफ्तों या महीनों तक इस्तेमाल करने की क्षमता है।

मोदी सरकार के नेतृत्व में भारत ने ऊर्जा और खनिज के क्षेत्र में इतना सशक्त बना लिया है कि उसे वैश्विक संकट के इस दौर में भी किसी की तरफ देखने की कोई जरूरत नहीं है।

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