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गुजारत में बेमौसम बारिश से नष्ट हुईं किसानों की फसलें, AAP ने शुरू की राजनीति: व्यापारियों की ‘ऋण माफी’ के नाम पर फैला रही झूठ: वोट के लिए ‘किसान हितैषी’ होने का ढोंग

कवि दुष्यंत कुमार की प्रसिद्ध पंक्तियाँ हैं,

“सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए”

गुजरात की राजनीति में कदम रखने की चाहत रखने वाले नए ‘क्रांतिकारियों’ के लिए अगर लिखना हो तो कहा जा सकता है कि इन लोगों का मकसद ‘बस हंगामा खड़ा करना’ है। अधिकतर समय इन्हें नतीजों से कोई मतलब नहीं होता। ‘हम ये करेंगे, वो करेंगे’ के वादे करके पार्टी की स्थापना हुई तो उसने इन्हीं वादों के बल पर दिल्ली की सत्ता हासिल की लेकिन एक दशक बाद भी हालात जस के तस रहे तो 2025 के विधानसभा चुनाव में जनता ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया। अब पिछले कुछ सालों से पार्टी गुजरात की राजनीति में भी अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रही है।

साल 2022 के विधानसभा चुनाव में जी-तोड़ मेहनत के बाद भी AAP (आम आदमी पार्टी) को उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली। जाहिर है कि पाँच सीटों पर जीत भी पार्टी के झंडे पर नहीं बल्कि उम्मीदवारों की व्यक्तिगत जीत थी। उसके बाद संगठन भी ज्यादातर निष्क्रिय रहा और स्थानीय चुनावों के साथ-साथ लोकसभा चुनावों में भी कुछ खास हासिल नहीं हो सका। अब जबकि विधानसभा चुनाव सिर्फ दो साल दूर हैं, तब AAP ने गुजरात में कुछ नया करने के इरादे से फिर से कदम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं लेकिन इस बार ‘रणनीति’ थोड़ी बदली हुई है।

आम आदमी पार्टी पिछले कुछ सालों से कुछ विशेष समूहों और समुदायों को निशाना बनाकर राजनीति कर रही है। यह सच्चाई है कि पाटीदार समुदाय गुजरात के हर चुनाव में ‘किंगमेकर’ की भूमिका निभाता है और यह आँकड़ों से भी स्पष्ट होता राजनीतिक दलों की राजनीति के लिए ऐसा ही एक और समुदाय है- किसान।

हाल ही में आम आदमी पार्टी ने बोटाद APMC में ‘कड़ा प्रथा’ का मुद्दा बनाकर खूब हंगामा किया और किसान महापंचायत का नाटक किया, जो आखिर में हिंसा में बदल गया। किसानों का ‘मसीहा’ बनने का नारा देकर अपराध करने वाले नेता फिलहाल जेल में हैं। ‘क्रांति’ के नारे के साथ तथाकथित आंदोलन में शामिल हुए आम नागरिक अब जमानत माँग रहे हैं। बाद में जब बेमौसम बारिश हुई, तब भी पार्टी ने आपदा में अवसर तलाश लिया।

आम आदमी पार्टी के नेताओं को किसानों (या किसी भी समुदाय) का मसीहा बनने में तो बहुत दिलचस्पी है लेकिन असली समस्याओं का समाधान ढूँढने में नहीं। पार्टी इस समय जिस तरह से राजनीति कर रही है उससे साफ है कि उनका असली मकसद किसानों की समस्याओं को मुद्दा बनाकर अपनी राजनीति चमकाना है। उन्हें किसानों की असली समस्याओं के समाधान में कोई दिलचस्पी नहीं है।

अक्टूबर 2025 के आखिर में गुजरात के कई हिस्सों में बेमौसम बारिश हुई। कई जगहों पर चक्रवातों का असर भी देखने को मिला और किसानों की फसलों को भारी नुकसान हुआ। यह पहली घटना नहीं है, पहले भी बेमौसम बारिश हुई हैं, किसानों को नुकसान हुआ है और सरकार ने इसके लिए कदम उठाए हैं। क्योंकि यही सरकार का काम है।

बेमौसम बारिश के बाद किसानों को मुआवजा दिया जाता है। यही एक तय प्रक्रिया है। यह सालों से चली आ रही है। इस बार भी बीजेपी सरकार ने बेमौसम बारिश के बाद एक सर्वे शुरू करवाया है। गुजरात के सभी 34 जिलों में ये सर्वे होगा, जिसमें गाँव-गाँव का दौरा करने और किसानों की फसलों को हुए नुकसान का जायजा लेने में कुछ समय लग सकता है। यह सब रातोंरात नहीं होता।

फिलहाल पूरे प्रदेश में सर्वे का काम जारी है। सभी जिलों के मंत्रियों ने दौरे किए हैं। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल खुद भी जगह-जगह जाकर किसानों की फसलों को हुए नुकसान का जायजा ले रहे हैं। सरकार पहले ही कह चुकी है कि फसल नुकसान का सर्वे पूरा होने और रिपोर्ट सरकार तक पहुँचने के बाद किसानों के लिए तुरंत राहत और सहायता पैकेज की घोषणा की जाएगी।

જુનાગઢ જિલ્લાના માળિયા તાલુકાના પાણીદ્રા ગામની મુલાકાત લઈને અણધાર્યા કમોસમી વરસાદને લીધે ખેડૂતોના ઉભા પાકને થયેલા નુકસાનની જાણકારી લીધી. ગ્રામજનો અને ખેડૂતો સાથે વાતચીત કરીને સમગ્ર પરિસ્થિતિનો તાગ મેળવ્યો.રાજ્ય સરકાર ધરતીપુત્રોને નુકસાનીમાંથી ઝડપભેર પૂર્વવત કરવાની પ્રતિબદ્ધતા… pic.twitter.com/A6eEN8w1wS— Bhupendra Patel (@Bhupendrapbjp) November 3, 2025

सरकार ने पूरे गुजरात में किसानों की फसलों को हुए नुकसान का सर्वे कराने का आदेश दिया है, जिसकी निगरानी की जिम्मेदारी हर जिले के प्रभारी मंत्रियों को दी गई है। अधिकारी इस समय गाँव-गाँव जाकर सर्वे कर रहे हैं। अधिकारी गाँवों में जाकर वहाँ के सरपंचों और नेताओं के साथ सर्वे कर रहे हैं। इस सर्वे के पूरा होने के बाद सभी जिलों की रिपोर्ट राज्य सरकार को जाएगी। सरकार की कैबिनेट की बैठक होगी और उसमें राहत पैकेज की राशि तय की जाएगी। किसानों को कैसे मदद की जाए, इस पर निर्णय लिया जाएगा। सरकार यह सब कर रही है।

નવસારીમાં 384 ગામોમાં કમોસમી વરસાદના કારણે પાકના નુકસાનીના સર્વેની કામગીરી પૂર્ણ▶️ગામના સરપંચ અને ખેડૂત આગેવાનો સાથે મળીને 138 ટીમોએ સર્વેની કામગીરી કરી@CMOGuj @InfoGujarat #AIRPics અશોક પટેલ pic.twitter.com/QAFzmXTmN5— AIR News Gujarat (@airnews_abad) November 3, 2025

दूसरी ओर विपक्ष बैठी आम आदमी पार्टी क्या कर रही है? रोज प्रेस कॉन्फ्रेंस करके हंगामा खड़ा कर रही है। अगर इससे भी काम न चले तो तथ्यों को तोड़-मरोड़कर, दुष्प्रचार करके ये साबित कर रही है कि सरकार पूरी तरह निष्क्रिय बैठी है और अगर गुजरात में AAP न होती तो किसानों की आवाज न सुनी जाती, न ही राहत पैकेज की बात होती। सच तो ये है कि जब गुरात में AAP में A भी नहीं था, तब भी फसलों के नुकसान का सर्वे इसी तरह चल रहा था और राहत पैकेज भी घोषित किए जा रहे थे।

रोजाना AAP नेता प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं और बात का लहजा यही है कि सरकार किसानों के मुद्दों पर ध्यान नहीं दे रही है। वे पूछ रहे हैं कि पैकेज की घोषणा क्यों नहीं हो रही है? उन्हें तुरंत नतीजे चाहिए। वहीं अगर सरकार बिना सर्वे के अनुमान के आधार पर पैकेज की घोषणा कर देती तो यही लोग प्रेस कॉन्फ्रेंस करके चिल्लाते कि सरकार ने सर्वे कराने और जमीनी हालात जानने की जहमत तक नहीं उठाई।

इसके साथ ही प्रोपेगेंडा का भी सहारा लिया जा रहा है। हाल ही में विशाखापट्टनम से विधायक बने गोपाल इटालिया ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बचकाना तर्क दिया कि पिछले 10 सालों में जब उद्योगपतियों का 16 लाख करोड़ रुपए माफ किया गया तो कोई सर्वे नहीं हुआ लेकिन किसानों को पैकेज देने के लिए सर्वे कराना पड़ रहा है।

असलियत यह है कि 16 लाख करोड़ रुपए का कर्ज ‘राइट-ऑफ’ किया गया था। राइट-ऑफ का मतलब लोन माफ करना नहीं होता है। इसकी सीधा सा मतलब है कि बैंक को नजदीकी भविष्य में उस कर्ज की रकम वसूल होने की उम्मीद नहीं हैं, इसलिए उसे नफा-नुकसान गणना से अलग कर दिया जाता है। इसके बाद भी बैंक कानूनी और अन्य तरीकों से उस कर्ज की वसूली कर सकती है और बैंक ऐसा करता भी है।

जिस वित्त मंत्री के लोकसभा में दिए गए जवाब का हवाला देकर गोपाल इटालिया ने यह बात कही थी उसी जवाब में वित्त मंत्री ने साफ कहा था कि इसका मतलब यह नहीं कि कर्ज माफ किया गया है। बैंक अन्य तरीकों से वसूली की प्रक्रिया जारी रखेंगे। लेकिन गोपाल अगर यह सब बता भी दें तो भी उनका धंधा नहीं चलेगा।

इसके बाद एक और फालतू मुद्दा खोज निकाला गया। गणदेवी से विधायक नरेश पटेल, जो हाल ही में मंत्री बने हैं। वे नरेश पटेल एक गाँव में फसल नुकसान का जायजा लेने गए थे। गाँव में नुकसान देखकर मंत्री नरेश पटेल ने सहज भाव से कहा, “फसलों से कितनी बदबू आ रही है।” यहाँ उनका आशय किसानों की परेशानी और नुकसान के प्रति सहानुभूति दिखाने का था।

लेकिन AAP के प्रचार के लिए यूट्यूब पर बैठे स्वयंभू पत्रकारों ने मंत्री के बयान की क्लिप को काटकर यह पेश किया मानों गुजरात सरकार के मंत्री को किसानों की फसल से ही ‘विकर्षण’ है। इसके बाद गोपाल इटालिया ने उस पर एक वीडियो बना दिया और फिर वही वीडियो यूट्यूब चैनलों पर फैलाया गया और कहा कि सरकार के मंत्रियों को किसानों की तकलीफ की परवाह नहीं है। यही है इन लोगों की इकोसिस्टम की काम करने की शैली।

ये सारी बातें इस ओर इशारा करती हैं कि किसी भी तरह आम आदमी पार्टी ये साबित करने की कोशिश कर रही है कि अगर इस पूरे मामले में किसानों के असली हितैषी हैं तो वो AAP के नेता हैं और किसी को किसानों से कोई लेना-देना नहीं है। जबकि सच्चाई ये है कि सरकार अभी सर्वे करा रही है और यह उनका काम है। इस प्रक्रिया में थोड़ा समय लगना स्वाभाविक है। दूसरी ओर AAP के नेताओं के पास करने को कुछ खास नहीं है, इसीलिए वे प्रेस कॉन्फ्रेंस करके हंगामा मचा रहे हैं और ‘सरकार ये क्यों नहीं करती, वो क्यों नहीं करती’ चिल्लाकर वक्त काट रहे हैं। कल सरकार राहत पैकेज का ऐलान करेगी तो ये लोग सबसे पहले श्रेय लेने के लिए यही लोग दौड़ेंगे, चाहे तो इसे अभी से लिखकर रख सकते हैं!

(मूलरूप से यह रिपोर्ट गुजराती भाषा में लिखी गई है, जिसे पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें)

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