पटना की सड़कों पर एक अजीबोगरीब दृश्य देखने को मिला। जिधर देखिए, हरे झंडे लहरा रहे थे और भीड़ में एक पुराना करिश्माई चेहरा, लालू प्रसाद यादव, अपनी बंद गाड़ी से जनता का अभिवादन स्वीकार कर रहे थे। यह रोड शो किसी समाज सुधारक या आम नेता के लिए नहीं था। लालू यादव खुद मैदान में उतरे थे, ताकि बाहुबली कहे जाने वाले उम्मीदवार रीतलाल यादव को जिता सकें।
यह चुनावी प्रचार कम और अपराध के महिमामंडन जैसा ज्यादा लगा, क्योंकि लालू यादव उस उम्मीदवार के लिए वोट माँग रहे थे जो खुद गंभीर आपराधिक आरोपों के चलते जेल में बंद है। यह घटना बिहार की राजनीति के एक गहरे सच को उजागर करती है। अपराध और राजनीति का गठजोड़। आईए एक बार आपको भी वाकिफ करा देते हैं रीतलाल यादव की आपराधिक हिस्ट्री।
लालू यादव ने रीतलाल यादव के लिए किया रोड शो
लालू यादव ने पटना के दानापुर विधानसभा क्षेत्र में 3 नवंबर 2025 को करीब 15 किलोमीटर लंबा रोड शो किया। इसका मकसद था- RJD के उम्मीदवार और सिटिंग विधायक रीतलाल यादव को जीताना।
लेकिन रीतलाल यादव जेल में हैं। हाँ, आपने सही पढ़ा- जेल में बंद उम्मीदवार के लिए रोड शो। रीतलाल 17 अप्रैल से बिल्डर कुमार गौरव से 50 लाख रुपए की रंगदारी माँगने और धमकी देने के मामले में जेल में हैं। चुनावी नियम के कारण वे खुद प्रचार में नहीं उत सकता था। हालाँकि, रीतलाल यादव ने नामांकन के लिए कोर्ट से अनुमति माँगी, जो नहीं मिली। अब रीतलाल का परिवार ही चुनाव प्रचार संभाल रहा है।
रोड शो का कारण?
लालू यादव का दानापुर में उतरना महज रीतलाल की सीट बचाने की कोशिश नहीं थी, बल्कि यह एक सोची-समझी रणनीतिक चाल थी, जिसका मुख्य उद्देश्य विरोधियों को हराना और अपना वोट बैंक सुरक्षित करना था।
दानापुर विधानसभा क्षेत्र, लालू के दामाद रामकृपाल यादव (जो अब भाजपा में हैं) को हराने वाली मीसा भारती के पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। रीतलाल की जीत मीसा भारती के भविष्य के रास्ते को आसान बनाएगी। लालू का आना यह स्पष्ट संदेश देता है कि परिवार के वर्चस्व के लिए किसी भी कीमत पर सीट जीतनी है, भले ही उम्मीदवार आपराधिक पृष्ठभूमि का हो।
इसके अलावा, दानापुर में यादव वोटर करीब 22% हैं। इसके बाद करीब 20% फॉरवर्ड, करीब 15% दलित, 20-25% EBC और 6-8% मुस्लिम हैं। NDA के उम्मीदवार रामकृपाल यादव (जो खुद लालू के पूर्व शिष्य रहे हैं) की छवि ‘सॉफ्ट’ है। इस इलाके में यादव वोटर बँट सकते थे। खुद को यादवों का सबसे बड़ा नेता मानने वाले लालू यादव ने सड़क पर उतरकर यह सुनिश्चित किया कि यादव वोट एकजुट होकर केवल रीतलाल को ही मिलें। यह एकजुटता अपराध की पृष्ठभूमि को दरकिनार कर केवल जातीय आधार पर वोट डालने का संकेत है।
लालू के करीबी रामकृपाल यादव, 2014 में टिकट न मिलने पर बीजेपी में चले गए थे और उन्होंने मीसा भारती को हराया था। लालू यादव अपने पुराने शिष्य को हराने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं। लालू का रोड शो, रामकृपाल के यादव वोटों को अपनी तरफ खींचने के प्रयास को विफल करने की रणनीति का हिस्सा है।
कौन हैं रीतलाल यादव?
रीतलाल यादव, जिन्हें मीडिया में ‘बाहुबली‘ कहा जाता है, लालू यादव के पुराने संपर्क वाले हैं। रीतलाल का राजनीतिक सफर 2003 में लालू यादव की ‘तेल पिलावन, लाठी घुमावन‘ रैली के दौरान शुरू हुआ था। एक दौर ऐसा भी कहा जाता है कि जब दानापुर डिवीजन से रेलवे के जितने भी टेंडर निकलते थे, वो रीतलाल यादव ही डील करते थे।
रीतलाल 50 लाख रुपए की रंगदारी माँगने और धमकी देने के मामले में जेल में बंद हैं। यह मामला बिल्डर कुमार गौरव से जुड़ा है। रीतलाल के चुनावी हलफनामे के अनुसार, उन पर हत्या, रंगदारी, वसूली और धमकी देने जैसे कुल 11 आपराधिक मामले लंबित हैं।
रीतलाल तब चर्चा में आए जब उन पर भाजपा नेता सत्यनारायण सिन्हा की हत्या का आरोप लगा। 2010 में विधानसभा चुनाव से पहले रीतलाल ने सरेंडर कर दिया था। रीतलाल ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जेल से ही चुनाव लड़ा और हारे। हालाँकि, रीतलाल को भाजपा नेता सत्यनारायण सिन्हा की हत्या मामले में हाल ही में जमानत मिली, लेकिन वे रंगदारी के मामले में फिर जेल में गए और पुलिस की हिरासत में नामांकन करने पहुँचे।
एक ऐसे उम्मीदवार के लिए, जिस पर संगीन आरोप हैं और जो चुनाव प्रचार की अनुमति के बावजूद जेल से बाहर नहीं आ सका, खुद पार्टी सुप्रीमो का प्रचार के लिए उतरना यह दिखाता है कि पार्टी की प्राथमिकता ‘अपराधमुक्त छवि’ नहीं, बल्कि ‘वोट बैंक की जीत’ है। यह सीधे तौर पर एक बार फिर से ‘जंगलराज’ और आपराधिक तत्वों को राजनीति में संरक्षण देने की मानसिकता को दर्शाता है।
अपराधी को टिकट: ‘दोहरी सोच’ की राजनीति
यह घटना लालू यादव की ‘दोहरी सोच‘ को उजागर करती है। एक तरफ, उनके परिवार के सदस्य (जैसे तेजस्वी यादव) अक्सर आपराधिक छवि वाले नेताओं पर बयान देते हैं, लेकिन जब दानापुर में रीतलाल यादव जैसे जेल में बंद उम्मीदवार की बात आती है, तो वे खुद प्रचार में उतर आते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि लालू के लिए नैतिकता या कानून मायने नहीं रखता, बल्कि केवल चुनाव जीतना मायने रखता है। एक ऐसे उम्मीदवार को मैदान में उतारना, जो गंभीर आरोपों में फँसा है और जिसके लिए खुद पार्टी मुखिया को उतरना पड़े, यह दिखाता है कि RJD की राजनीति में अपराध और राजनीति को अलग-अलग मानने की सोच है। यदि कोई नेता बीजेपी का हो तो वह अपराधी है, लेकिन अगर RJD का हो, तो उसे ‘साजिश का शिकार’ बताकर उसे समर्थन दिया जाता है।






