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मुस्लिम-मस्जिद-दलित-कॉन्ग्रेस-AIMIM… और खुद के 20+ विधायक: AAP की आपदा के 6 फैक्टर

दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए मतदान 5 फरवरी को संपन्न हो चुके हैं। अब सबकी निगाह 8 फरवरी को आने वाले नतीजों पर है। इस बीच तमाम एग्जिट पोल आम आदमी पार्टी (AAP) की वर्तमान सरकार के लिए बुरी खबर दे रहे हैं। वहीं, अधिकांश सर्वे में भाजपा के 27 साल के वनवास खत्म होने की बात कही जा रही है। रही बात कॉन्ग्रेस की तो उसके लिए खुशखबरी में 1-2 सीटों का मिलना ही है।

पीपुल पल्स नाम की एजेंसी ने अपने सर्वे में तो आम आदमी पार्टी की सरकार के लिए सबसे डरावने आँकड़े दिए हैं। इस सर्वे में AAP को 10-19 सीटें दी गई हैं, जबकि भाजपा को 51-60 सीटें दी गई हैं। माइंड ब्रिंक (44-49), Matrize (32-37 सीटें) और WeePreside (46-52 सीटें) ने AAP को बहुमत का आँकड़ा दिया है, जबकि अधिकतर भाजपा के सत्ता में लौटने की भविष्यवाणी कर रहे हैं।

पिछले 10 सालों से दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी के लिए इस बार मुश्किल खड़ी करने में मुस्लिम वोटरों का पार्टी से दूरी प्रमुख कारण बताया जा रहा है। इसके बाद जिन नेताओं का AAP ने टिकट काटा, उन्होंने भी मुश्किलें पैदा कीं। इसके अलावा, मुस्लिम बहुल इलाकों में कॉन्ग्रेस और AIMIM की अतिसक्रियता ने वोटरों को AAP से दूर किया है। साथ ही जातीय समीकरण की अनदेखी ने भी AAP को नुकसान पहुँचाया।

दिल्ली में हिंदुओं की आबादी 77 प्रतिशत, मुस्लिमों की लगभग 18 प्रतिशत आबादी है। वहीं, 4 प्रतिशत सिख, जैन एक प्रतिशत है। इस दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में कम-से-कम 8 सीटें मुस्लिम बहुल हैं। इसके अलावा, 15 ऐसी सीटें हैं जो सरकार को बनाने और बिगाड़ने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस बार इन सीटों के मुस्लिम AAP से नाराज दिखे।

दरअसल, सिर्फ मुस्लिम की बात करने वाले हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ने दिल्ली की दो सीटों- ओखला और मुस्तफाबाद पर अपने उम्मीदवारे उतारे हैं। ओखला में मुस्लिमों की आबादी लगभग 57 प्रतिशत है। वहीं, मुस्तफाबाद में भी लगभग इसी के आसपास है। इन दोनों सीटों पर मुस्लिम समुदाय का AIMIM के प्रत्याशियों के प्रति लोगों में देखी गई।

AIMIM ने मुस्ताफाबाद से साल 2020 के दिल्ली दंगों के मुख्य साजिशकर्ता ताहिर हुसैन को मैदान में उतारकर एक तीर से कई निशाने करने की कोशिश की। ताहिर हुसैन के नाम पर दिल्ली, खासकर उत्तर-पूर्वी दिल्ली में ध्रुवीकरण करने की कोशिश की गई, जिसका असर AIMIM के उम्मीदवारों के पक्ष में साफ दिखता है। ओखला से AIMIM प्रत्याशी शिफा-उर-रहमान के पक्ष में भी लोगों का रुझान रहा।

वहीं, कॉन्ग्रेस ने अपने परंपरागत मुस्लिमों और वोटरों को साधने की कोशिश की। राहुल गाँधी और उनकी सांसद बहन प्रियंका गाँधी ने मुस्लिम और दलित इलाकों में कई रैलियाँ और रोड शो किए। राहुल गाँधी ने तो अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत ही मुस्लिम बहुल सीलमपुर से की। आम आदमी पार्टी के मुस्लिम वोटरों में बहुत बड़ी सेंध कॉन्ग्रेस और AIMIM ने लगाई है।

दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाकों में औसतन 57 प्रतिशत का मतदान हुआ। मध्य दिल्ली की बल्लीमारान, मटिया महल, चाँदनी चौक व सदर बाजार तथा दक्षिण-पूर्व के ओखला सीट पर अपेक्षाकृत कम मतदान हुआ। हालाँकि, उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सीलमपुर और मुस्तफाबाद और शाहदरा जिले के बाबरपुर में जमकर मतदान हुए। कई मुस्लिम इलाकों में मस्जिदों से वोटिंग का ऐलान किया गया।

बल्लीमरान में तो आम आदमी पार्टी के मंत्री इमरान हुसैन के खिलाफ बकायदा मस्जिद से ऐलान किया गया। इस तरह सीलमपुर, सीमापुरी, बाबरपुर, चाँदनी चौक, मटिया महल, जंगपुरा, सदर बाजार, ओखला, मुस्तफाबाद जैसी मुस्लिम बहुल सीटों पर AAP का खेल खराब हो गया है। मैट्रिज के सर्वे के मुताबिक, दिल्ली विधानसभा चुनाव में AAP को सिर्फ 67 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिल सकते हैं।

यह AAP के लिए सबका बड़ा सबक हो रहा है, क्योंकि 2020 के विधानसभा चुनावों में AAP को 87 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले थे। सर्वे में इस बार लगभग 13 प्रतिशत मुस्लिम वोट कॉन्ग्रेस और 9 प्रतिशत भाजपा को जाने की बात कही जा रही है। इसका सीधा नुकसान AAP को होगा। इस चुनाव में कॉन्ग्रेस को जितना फायदा होगा, उतना नुकसान AAP को होगा, क्योंकि दोनों के वोटर वर्ग एक हैं।

इस तरह AAP का कटने के बाद इसका सीधा फायदा भाजपा को मिल सकता है। इसके अलावा, दिल्ली में AAP से जुड़े निम्न-मध्यम वर्ग एवं मध्यम वर्ग ने इस बार भाजपा की ओर रुख किया। मोदी सरकार ने बजट में 12 लाख रुपए तक को करमुक्त बनाकर उनके लिए बड़ी राहत दी है। इससे इन दोनों वर्गों का बड़ा हिस्सा BJP की तरफ शिफ्ट हो गया।

AAP के पुराने नेताओं ने भी पार्टी को करारी चोट पहुँचाई है। जिन नेताओं के पार्टी ने टिकट काटे हैं, उन्होंने पार्टी के खिलाफ काम किया। कई नेता तो पार्टी छोड़कर भाजपा आदि में शामिल हो गए। कई आम आदमी पार्टी के विधायक टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर अपनी ही सरकार के खिलाफ मैदान में उतर आए। ऐसी कई सीटें बताई जा रही हैं, जहाँ ये अपनी पार्टी के प्रत्याशी को ही हराने में लगे हैं।

बता दें कि AAP ने इस बार 20 से अधिक विधायकों के टिकट काटे थे। आम आदमी पार्टी के आठ विधायक तो भाजपा में ही शामिल हो गए। जिन विधायकों के टिकट काटे गए हैं उनमें तिमारपुर से विधायक दिलीप पांडेय, शाहदरा से विधायक एवं दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष रामनिवास गोयल, देवली से प्रकाश जरवाल, मुस्तफाबाद से हाजी यूनुस भी शामिल हैं।

अंतिम समय में हरिनगर से विधायक राज कुमारी ढिल्लों का टिकट काट दिया गया। इस तरह इन सीटों के अलावा पालम, कस्तूरबा नगर, महरौली, देवली, मुस्तफाबाद, आदर्श नगर में अपने लोगों से ही AAP का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा, AAP में टिकट बँटवारे में जातीय समीकरण की अनदेखी भी AAP के लिए बड़ी मुसीबत बन गई है।

आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनावों में 15 सीटों पर ब्राह्मण और 12 सीटों पर दलित उम्मीदवार उतारे थे। दलितों को उनके लिए रिजर्व 12 सीटों पर दिया गया है। पूर्वांचल के वोटरों के बीच के जातीय समीकरण को साधने में भी AAP नाकाम रही। इसमें क्षेत्रीय विविधता भी नहीं समा पाई। इसके अलावा, आम आदमी पार्टी ने क्षत्रिय समाज, सिख, मुस्लिम और जाटों की अनदेखी की।

आम आदमी पार्टी ने सिर्फ 5 मुस्लिम, 4 क्षत्रिय और 4 सिख को उम्मीदवारों को मैदान में उतारा। इससे इस वर्ग के लोग दूसरी पार्टियों में शिफ्ट हुए, जिसका नुकसान AAP को दिख रहा है। AAP ने जाट और बनिया समुदाय को भी उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला। इससे आम आदमी पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ा।

हालाँकि, आँकड़ों और वोटरों के बीच के कुछ लोगों के बयान एवं हालात के आधार पर ही इस तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। दिल्ली की स्थिति 8 फरवरी को साफ हो जाएगी, जब वोटों की गिनती होगी। हमें याद रखना होगा 2020 का दिल्ली विधानसभा चुनाव भी। उस समय भी सर्वे रिपोर्ट के आधार पर BJP की वापसी की बात कही जा रही थी, लेकिन आखिरकार नतीजे सारे सर्वे रिपोर्ट को धत्ता बता गए।

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