
कॉमेडियन कुणाल कामरा ने महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को ‘गद्दार’ करार दिया है। कॉमेडी की आड़ में राजनीतिक रोटियाँ सेंकने का कामरा का यह दाँव उल्टा पड़ गया है। शिवसेना कार्यकर्ता अब उससे नाराज हैं। हालाँकि, एक धड़ा ऐसा भी है जो कुणाल कामरा की इस धृष्टता को ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ का नाम दे रहा है। लोकतांत्रिक अधिकारों की दुहाई दे रहा है। कुणाल कामरा के समर्थन में वह लोग तक उतर आए हैं, जो कुछ सालों पहले तक सांसदों-विधायकों की मिमिक्री करने वालों का मुँह सिलने की वकालत करते थे।
सपा की राज्यसभा सांसद जया बच्चन कुणाल कामरा के समर्थन में उतरी हैं। जया बच्चन ने पूछा है कि ‘फ्रीडम ऑफ़ स्पीच’ कहाँ है। उन्होने प्रश्न उठाया है कि आखिर ऐसे बोलने पर पाबंदी लगाई जाएगी तो मीडिया का क्या हाल होगा। वैसे तो भारतीय लिबरल ‘बोलने की आजादी’ जैसे शब्द का जाप दिन में 100 बार करते हैं लेकिन जया बच्चन के मुँह यह बात शोभा नहीं देती है। ऐसा इसलिए है क्यों कि यही श्रीमती बच्चन बोलने की आजादी को खत्म करने की वकालत कर रही थीं।
वर्ष 2014 में जया बच्चन कह रहीं थी कि रेडियो जॉकी को सांसद-विधायकों की नक़ल करने से रोका जाए। उन्होंने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से इस पर रोक लगाने को कहा था। यानी तब बैन और अब ‘आजादी’। हालाँकि, यह उनकी अकेले की गलती नहीं है, ना वह पहली ऐसी व्यक्ति हैं जो इन मामलों पर दोहरा चरित्र रखती हैं। इससे पहले कई ऐसे मामले हुए हैं, जब इसी लिबरल समुदाय ने बोलने की आजादी पर दोहरा मापदंड दिखाया है।
ज्यादा दिन की बात नहीं है, मराठी अभिनेत्री ने शिवसेना-कॉन्ग्रेस-एनसीपी की सरकार के दौरान शरद पवार की आलोचना करते हुए एक कविता साझा कर दी थी। केतकी पर इसके बाद 22 FIR दर्ज की गई थीं और उन्हें 40 दिन जेल में बिताने पड़े थे। तब अभिव्यक्ति की आजादी, कॉमेडी, रचनात्मक स्वतंत्रता जैसी बातें जया बच्चन जैसे लिबरलों के दरवाजे पर दस्तक देती रहीं थीं, लेकिन उन्होंने इस पर गौर नहीं किया था। केतकी चिताले इस दोहरे मापदंड की अकेली पीड़ित नहीं है।
रिपब्लिक टीवी के एंकर अर्नब गोस्वामी को 2021 में इसी महायुति सरकार ने घर से घसीट कर गिरफ्तार करवा दिया था। बहाना 2018 के एक मामले का दिया गया था। इस फ़ाइल का भूत गोस्वामी को डराने के लिए ही निकाला गया था। कुणाल कामरा के लिए लोकतंत्र के नाम पर मर्सिये पढ़ने वाले तब तार्किकता, कानून का राज, न्याय और ऐसे शब्दों की चाशनी में लपेट कर इसे सही ठहरा रहे थे। अर्नब लगातार इस इकोसिस्टम की पोल खोलते रहे हैं।
सोशल मीडिया के एक्टिविस्ट समेत ठक्कर को 2020 में इसी सरकार ने इसलिए घर से 200 पुलिसवालों से उठवा लिया था, क्योंकि उन्होंने उद्धव ठाकरे की सरकार और उनके मंत्रियों की आलोचना कर दी थी। उन्हें भी 21 दिन जेल में रखा गया था। तब भी अभिव्यक्ति की आजादी जैसे पैरामीटर लागू नहीं किए गए थे। और जिन कुणाल कामरा के लिए आज कॉन्ग्रेस और उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना (उद्धव) यह सब दुहाई दे रहे हैं, उसे तो यह सब बोलने का अधिकार ही नहीं है।
सोशल मीडिया एक्टिविस्ट सुनैना होले ने एक बार महाराष्ट्र सरकार की आलोचना कर दी थी तो उन्हें भी FIR का सामना करना पडा था। उनको गिरफ्तार कर लिया गया था। उनके खिलाफ FIR कोर्ट ने रद्द कर दी थी। उनके समय भी यह आजादी कहीं किनारे के रास्ते से निकल गई थी।
सबसे अधिक दोगलापन तो कुणाल कामरा का ही विक्टिम कार्ड खेलना होगा। इसी महायुति सरकार ने अभिनेत्री कंगना रनौत के दफ्तर पर बुलडोजर चलाया था। यह सब ‘अतिक्रमण’ के नाम पर की गई थी। आज जो कामरा आजादी का रोना रो रहे हैं, तब उन्होंने ही संजय राउत के साथ बुलडोजर के खिलौने मेज पर रख कर पॉडकास्ट किया था और अट्टाहास किया था। उन्होंने इस एक्शन को पूरा समर्थन दिया था। अब अगर उनके खिलाफ शिवसैनिक गुस्सा दिखा रहे हैं, तो वह विक्टिम क्यों बन रहे हैं।
'Mere ko toh acha laga, acha kiya': Kunal Kamra when Kangana Ranaut's office was demolished by the BMC. Sanjay Raut was mocking the demolition, and this was Kamra's response. Before you stand for his 'freedom of speech', do watch this. Just an observation. pic.twitter.com/nH5FZIEFIx— Tushar Gupta (@Tushar15_) March 24, 2025
असल बात यह है कि इस गैंग में ना किसी को अभिव्यक्ति की आजादी की पड़ी है, ना किसी को कलाकारों की रचनात्मकता की। बात है कि हम बोले तो ठीक और तुम बोलो तो गलत वाली। यह सिलेक्टिव अप्रोच हमेशा ही यह गैंग अपनाता आया है। इसके लिए लोकतंत्र तभी मरता है, जब इस गैंग का कोई कुछ उल्टा सीधा बोल कर कानून के शिकंजे में आया हो। जब बात दूसरे खेमे की हो तब ‘ऐसा नहीं बोलना चाहिए’ और ‘कानून अपना काम करेगा’ जैसी बातें होती हैं।
और उदाहरण लेने के लिए ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं है। हाल ही में तेलंगाना में 2 महिला पत्रकारों पर सीएम रेवंत रेड्डी ने चाबुक चलाया था। उनके खिलाफ टिप्पणी पर रेड्डी ने कहा था, “यह मत सोचिए कि मैं चुप हूँ, क्योंकि मैं मुख्यमंत्री हूँ। मैं आपको नंगा कर दूँगा और आपको पीटूँगा। ऐसे लाखों लोग हैं, जो मेरे आह्वान पर आपको पीटने के लिए सड़कों पर उतर आएँगे। लेकिन, मैं अपने पद के कारण सहनशील बना हुआ हूँ।”
एक विफल कॉमेडियन के पीछे हाथ बाँध कर खड़ी इस जमात में से एक आदमी भी तब रेवंत रेड्डी के खिलाफ नहीं बोला। ना ही उसने संविधान की चिंता जताई। जब मसखरे कामरा ने एकनाथ शिंदे पर अशोभनीय टिप्पणी की और उस पर कानूनी कार्रवाई होने लगी, तो संविधान तुरंत खत्म होने लगा। यही इस जमात का चाल और चरित्र है। इनका बस एक ही मंत्र है, ‘तुम्हारा कुत्ता कुत्ता, हमारा कुत्ता टॉमी।”