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BJP संख्याबल को लेकर आश्वस्त, RSS का हिन्दू हित पर ज़ोर: काफूर हो चुकी है विपक्ष की 240 वाली ख़ुशी, वक़्फ़ बिल ने समर्थकों में भी भरा नया उत्साह

जून 2024 में जब लोकसभा चुनाव के परिणाम आए थे तब कॉन्ग्रेस ने ऐसे जश्न मनाया था जैसे वो चुनाव ही जीत गई हो। 99 सीटों पर अटकी कॉन्ग्रेस ने भाजपा को 240 सीटों पर रोकना ही अपने लिए सबसे बड़ी सफलता माना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी लोकप्रियता से एक ऐसा बेंचमार्क सेट किया कि कॉन्ग्रेस समझ ही नहीं पाई कि उसे कहाँ ले जाया जा रहा है। ‘400 पार’ के नारे में कॉन्ग्रेस समेत पूरा विपक्ष ऐसा उलझा कि NDA को 400 पर रोकने और फैज़ाबाद लोकसभा सीट जीतने की खुशियाँ मनाने में वो ये भी भूल गया कि PM पद की शपथ तो मोदी ही लेने वाले हैं।

कॉन्ग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत को तो प्रफुल्लित होकर पार्टी के वॉररूम में मुट्ठी भींच कर लहराते हुए भी देखा गया। ख़ैर, ये तो थी नेताओं की बात। अब आते हैं मीडिया पर। मीडिया में एक बहस छिड़ गई कि आख़िर मोदी सरकार के कोर एजेंडों का क्या होगा। जैसे – वक़्फ़ बोर्ड में सुधार, UCC (समान नागरिक संहिता), मुस्लिम आरक्षण ख़त्म करना और वर्शिप एक्ट में बदलाव। अब भाजपा ने लोकसभा और राज्यसभा, दोनों सदनों में वक़्फ़ बिल को पारित करा के 2 चीजें एकदम साफ़ कर दी हैं।

संख्याबल को लेकर निश्चिंत है भाजपा, वक्फ पर हुई गहन चर्चा

पहली, भाजपा अपने कोर एजेंडे से भटकने वाली नहीं है। दूसरी, भाजपा के पास इस तरह के बदलावों के लिए संख्याबल मौजूद है। अपने दूसरे कार्यकाल में पार्टी ने राम मंदिर निर्माण से लेकर जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद-370 व 35A निरस्त करने और CAA जैसा क़ानून लाने जैसे बड़े फ़ैसले लिए। हाँ, किसान सुधार बिल ज़रूर वापस लेने पड़े लेकिन वो भाजपा के कोर हिंदुत्व या राष्ट्रवाद वाले एजेंडे का हिस्सा नहीं था। ‘दैनिक भास्कर’ ने जून 2024 में एक ‘एक्सप्लेनर’ के जरिए समझाया था कि कैसे नीतीश-नायडू कभी UCC लागू नहीं होने देंगे। साथ ही शंका जताई थी कि भाजपा के कोर मुद्दों का क्या होगा।

वक़्फ़ संशोधन विधेयक को पहले ‘संयुक्त संसदीय समिति’ (JPC) के पास भेजा गया, उसके बाद इसे लोकसभा में 288-232 और राज्यसभा में 128-95 के बहुमत के साथ पारित कराया गया। बड़ी बात ये है कि जदयू और TDP जैसे साथी दलों ने भी भाजपा का साथ दिया। जबकि ये दोनों पार्टियाँ और इसके नेता सेक्युलर छवि बनाए रखने के लिए जाने जाते हैं। चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार इफ्तारी नेताओं में से एक हैं। इतना ही नहीं, महादलित नेताओं चिराग पासवान की LJP और जीतन राम माँझी की HAM भी सरकार के साथ खड़ी रही। यहाँ तक कि नवीन पटनायक ने अपनी BJD के सांसदों को भी स्वेच्छा से वोट करने के लिए स्वतंत्र कर दिया।

ख़ास बात ये रही कि वक़्फ़ बिल को पास कराने से पहले लोकसभा और राज्यसभा में गहन चर्चा हुई। दोनों सदनों में वोटिंग की प्रक्रिया रात के क़रीब 1 बजे पूरी कराई गई। भाजपा के शीर्ष नेता मिशन मोड में कार्य करने के लिए जाने जाते हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह स्वयं ही रात भर डटे रहे, लोकसभा में भी और फिर राज्यसभा में भी। केंद्रीय संसदीय व अल्पसंख्यक कार्यमंत्री किरेन रिजिजू बार-बार बिल के प्रावधानों को समझाते रहे और हर शंका का जवाब देते रहे।

एक और ध्यान देने वाली बात ये है कि इधर संसद में वक़्फ़ बिल पर चर्चा चल रही थी, उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थाईलैंड में BIMSTEC की बैठक में हिस्सा लेने पहुँचे। पीएम मोदी लोकसभा सांसद भी हैं, ऐसे में भाजपा को अगर संख्याबल को लेकर ज़रा सी भी शंका होती तो बिल पास कराने का समय तब रखा जाता जब प्रधानमंत्री दिल्ली में होते। लेकिन, पार्टी इसे लेकर पहले से ही आश्वस्त थी। उत्तर प्रदेश में अक्सर बात-बात पर सांप्रदायिक हिंसा भड़क जाया करती थी, वहाँ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पहले ही चेता दिया कि दंगों की स्थिति में दंगाइयों की बाप-दादा की कमाई संपत्ति भी चली जाएगी, क्योंकि नुक़सान की भरपाई उसी संपत्ति से होगी।

बतौर PM पहली बार RSS मुख्यालय पहुँचे मोदी, गठबंधन साथी भी सदन में साथ

साफ़ है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसी तरह सरकार चला रहे हैं जैसे उन्होंने तब चलाया था जब अकेले BJP के पास 303 सीटें हुआ करती थीं। रही बात UCC की तो उत्तराखंड में इसे पहले ही लागू किया जा चुका है और एक मॉडल के रूप में उसका अध्ययन किया जा रहा है। हाँ, मुस्लिम आरक्षण ख़त्म करने पर ज़रूर भाजपा को परेशानी आ सकती है लेकिन बहुत कुछ इसपर भी निर्भर करता है कि अक्टूबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में NDA का प्रदर्शन कैसी रहता है और नीतीश कुमार का स्वास्थ्य तबतक कैसा रहता है। अगले साल असम में भी चुनाव होने हैं। पश्चिम बंगाल में भाजपा ने रामनवमी को प्रतिष्ठा का विषय बनाया हुआ है। पार्टी चुनावी अभियानों में भी मिशन मोड में है। थोड़ी रणनीति बदली ज़रूर है, जिसका परिणाम महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली में जीत के रूप में मिला। अब तो संसद में अमित शाह ने यहाँ तक कह दिया है कि उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनावों में योगी आदित्यनाथ CM के रूप में रिपीट होने वाले हैं।

ये भी ध्यान दीजिए कि नरेंद्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री 11 वर्षों में पहली बार नागपुर स्थित RSS के मुख्यालय पहुँचे। सरसंघचालक मोहन भागवत के साथ उन्होंने संघ के संस्थापक KB हेडगेवार और दूसरे सरसंघचालक MS गोलवलकर की समाधि ‘स्मृति मंदिर’ में श्रद्धासुमन अर्पित किए। यानी, ख़ुद प्रधानमंत्री संघ के साथ अपनी नज़दीकी दिखाने में भी नहीं हिचके। उन्होंने परवाह नहीं की कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया क्या कहेगा। संघ ने दिल्ली में अपना भव्य मुख्यालय भी बनवाया, भले ही इसमें उसे 100 वर्ष लग गए। कुल मिलकर सबकुछ वैसा ही चल रहा है जैसा 2014 और 2024 के बीच में चला करता था।

मुख्यधारा की राजनीति में हिंदुत्व की ज़ोरदार वापसी

हाल ही में मथुरा में हुई भाजपा-संघ की एक बैठक में भी RSS ने स्पष्ट कहा कि हिन्दू हितों का ध्यान रखना होगा। इससे पहले काशी और मथुरा में स्वयंसेवकों को सक्रिय भूमिका निभाने की सलाह RSS महासचिव दत्तात्रेय होसबोले दे चुके हैं। उधर विपक्ष हिन्दुओं को बाँटने की सारी साजिश रचकर थक चुका है। राहुल गाँधी प्रधानमंत्री के सचिवों में OBC/SC/ST गिनते रहते हैं और जातीय जनगणना की बातें करते रहते हैं, अखिलेश यादव का PDA फॉर्मूला भी जातिवाद पर आधारित है, दिल्ली चुनाव से पहले डॉ अंबेडकर के अपमान का मुद्दा बनाकर अमित शाह और भाजपा को घेरा गया – इसके बावजूद भाजपा का जनाधार कमजोर नहीं हुआ है।

Waqf is removed. pic.twitter.com/1BH8uL6Rn4— Squint Neon (@TheSquind) April 3, 2025

अबतक तो वो समर्थक भी निराश हो चुके हैं जो ‘मोदी बनाम Who’ का जवाब I.N.D.I. गठबंधन का नाम लेकर दिया करते थे। उनका हतोत्साह का कारण ये है कि पिछले कुछ चुनावों में ये दल आपस में ही लड़ बैठे। अभी की स्थिति भी देखें तो बिहार में राजद और कॉन्ग्रेस के बीच में रार चल रही है। कॉन्ग्रेस ने राजद पर सीट शेयरिंग में दबाव बनाने के लिए कन्हैया कुमार को बिहार में पदयात्रा के लिए उतार दिया है। भाजपा के लिए ये आदर्श स्थिति है। समर्थक उत्साहित हैं। महाकुंभ 2025 के बाद हिंदुत्व एक बार फिर मुख्यधारा की राजनीति में वापसी कर चुका है।

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