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‘द वायर’ को भोपाल के ‘मुस्लिम गैंग’ की करतूतें उजागर होने से दिक्कत, ‘सवाब’ के लिए हिंदू लड़कियों से रेप को भूल ‘मीडिया एथिक्स’ का बजा रहा झुनझुना

भोपाल में मुस्लिमों लड़कों ने एक गैंग बनाया। इस गैंग ने एक-एक कर कई हिन्दू लड़कियों को फँसाया, उनका रेप किया, वीडियो बनाया। यहाँ तक कि उनके वीडियो पोर्न साइट्स पर बेचने का प्रयास भी किया। मुस्लिम लड़के ने पूछताछ में बताया कि यह सब ‘सवाब’ के लिए किया जाता है। इसको ज्यों का त्यों मीडिया ने लिख दिया। अब इससे प्रोपेगेंडा पोर्टल ‘द वायर’ को दिक्कत हो गई। द वायर को इससे समस्या है कि जिन मुस्लिमों ने यह घृणित अपराध ‘सवाब’ के लिए किया, उनकी सच्चाई क्यों छापी गई।

द वायर में हुनेज़ा खान ने 16 मई, 2025 को एक लेख लिखा। इस लेख में खान ने दावा किया कि भोपाल के इस रेप मामले का मीडिया ट्रायल किया है। लड़कियों की भयावह आपबीती सुन कर बनाई गई इन खबरों से ‘मजहबी नफरत’ पैदा होती है, यह वायर ने लिखा। मुस्लिम लड़कों ने भोपाल में हिन्दू लड़कियों को गाँजा पिलाकर उनका रेप किया था, उनके वीडियो बनाए थे, सिगरेट से जलाते भी थे। यह बातें जब मीडिया संस्थानों ने बिना लागलपेट के कह दीं, तो वायर को मिर्ची लग गई। उसे यह बातें व्हाट्सएप फॉरवर्ड जैसी लगीं।

हिन्दू बच्चियों की पीड़ा वायर को व्हाट्सएप फॉरवर्ड जैसी लगती है। वायर इस घटना को हिन्दू लड़कियों के खिलाफ किए गए अपराध नहीं बल्कि ‘कथित’ तौर पर ‘कॉलेज की लड़कियों’ के साथ हुई एक घटना बताता है। यानी एक तरफ तो वह मीडिया संस्थानों पर इसलिए गुस्सा है कि उन्होंने इन मुस्लिमों की सच्चाई बताओ बताई और लोगों को जागरूक किया वहीं दूसरी तरफ वह इस पूरे अपराध को ही टोन डाउन कर देता है और सच्चाई को करीने से छुपा लेता है।

वायर कहता है कि इस तरह की रिपोर्टिंग के चलते मीडिया के ‘एथिक्स’ यानी आचार में कमी आई है। यानी अगर मीडिया हिन्दुओं की पीड़ा दिखाने लगे तो उसका एथिक्स खत्म हो जाता है। याद रखिए कि वायर वही संस्थान है जिसने भाजपा के खिलाफ एक हिट स्टोरी की थी। बाद में उसे इसे माफ़ी माँगते हुए हटाना पड़ा था। उसके साथ यह एक बार नहीं हुआ, बल्कि बार-बार उसने माफी माँगी है। उसके यहाँ अपूर्वानंद जैसे लोग लिखते हैं, जिन पर दिल्ली दंगों में शामिल होने का आरोप है।

यही वायर ‘एथिक्स’ की बात कर रहा है। यह वैसी ही बात हुई जैसे कोई डकैत इस बात की आलोचना करे कि हिंसा क्यों बुरी चीज है। वायर इसी खबर में पूरा फोकस इस बात पर शिफ्ट करना चाहता है कि यह अपराध असल में मुस्लिम लड़कों ने अपनी जिहादी मानसिकता के चलते नहीं बल्कि ‘पितृसत्ता’ के चलते किए हैं। वायर की यह मुस्लिम अपराधियों को बचाने की बेशर्मी कोई आश्चर्य की बात नहीं है। वह युद्ध काल में तक भारत विरोधी प्रोपेगेंडा को हवा देता रहा है, हिन्दुओं के खिलाफ अपराध उसके लिए तो छोटी बात हैं।

जिस ‘लव जिहाद’ के हजारों मामले सामने आ चुके हैं, जिसकी शिकार हिन्दू ही नहीं ईसाई लड़कियां तक रही हैं, वह वायर को गलत लगता है। वह जिहाद का असल मतलब बताता है। असल में वायर को समस्या इस बात से नहीं है कि मीडिया के कोई स्टैण्डर्ड गिर रहे हैं, या फिर मीडिया चीजों का हौव्वा खड़ा कर रही है। उसे पीड़ा इस बात की है कि मुस्लिमों का नाम और उनके मिशन को मीडिया ने साफ़ तौर क्यों नहीं बताया।

वायर वे स्वर्णिम दिन वापस चाहता है, जब मुस्लिम आरोपित होने पर ‘मैन’, ‘शख्स’ और ‘समुदाय विशेष’ जैसे शब्द लिख कर करीने से उनका अपराध छुपा लिया जाता था। जब हिन्दू को आक्रामक दिखाया जाता था। वह वे दिन वापस चाहता है जब दंगों में मारे जाने के बाद भी हिन्दू ही अपराधी होते थे। मीडिया के स्टैण्डर्ड गिरने से अगर उसे मतलब होता तो सबसे पहले रोज झूठ का कारोबार करने वाला यह संस्थान खुद ही अपना शटर गिराता। उसकी पीड़ा दूसरी है।

भोपाल के मामले में मुस्लिम गैंग के सरगना फरहान ने पुलिस पूछताछ में बताया था कि उसे हिन्दू लड़कियों का रेप करने, उन्हें फँसाने और वीडियो के बहाने धमकाने का कोई भी पछतावा नहीं है। उसने पुलिस को बताया था कि यह इस्लाम के हिसाब से सवाब का काम है। फरहान ने पुलिस को यह भी बताया है वह हिन्दू लड़कियों का जीवन बर्बाद करना चाहते थे और इस काम को जिहाद मानते थे, इसलिए उन्हें ही निशाना बनाते थे। उसे इस बात पर गर्व है।

इस गैंग में शामिल लड़के एक दूसरे का वीडियो रेप करते हुए बनाते थे। गैंग में शामिल लड़कों के नाम फरहान, अबरार, नबील, साद और अली समेत तमाम थे। इनमें से कोई रेप करने के लिए कमरा दिलाता था तो कोई गांजा लाता था। कोई सलाह देता था कि अगर कोई हिन्दू लड़की रेप से मना करने लगे तो उसका वीडियो बेच दो। डांस एकेडमी, कॉलेज, ऑफिस समेत तमाम ऐसी जगहें थीं जहाँ से इन हिन्दू लडकियों को निशाना बनाया जाता था। लेकिन वायर के लिए यह सब सच बताना ‘घृणा’ का काम है।

वायर को अब यह दर्द होता रहेगा, क्योंकि समाज में पिछले 11 वर्षों में जो बदलाव आया है, उसने हिन्दुओं को अपनी पीड़ा व्यक्त करने के लिए मजबूत किया है।

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