
उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले के लोहंदा गाँव में एक फर्जी रेप केस ने एक परिवार को तबाह कर दिया। चुनावी रंजिश के चलते ग्राम प्रधान ने साजिश रची, जिसके कारण एक बेगुनाह युवक जेल गया और उसके पिता ने आत्महत्या कर ली। बाद में जाँच में रेप का आरोप झूठा निकला और युवक को जमानत पर रिहा कर दिया गया।
हालाँकि वो अपने पिता की अंतिम यात्रा तक में शामिल नहीं हो पाया। नाबालिग के कथित रेप से जुड़ा ये मामला पिछले कई दिनों से चर्चा में है, जो ग्राम प्रधान की साजिश, पुलिस की लापरवाही और ब्लैकमेलिंग की करतूतों से जुड़ा पाया गया।
मामला शुरू कैसे हुआ?
27 मई 2025 को सैनी कोतवाली में एक 8 साल की बच्ची के साथ रेप की शिकायत दर्ज की गई। शिकायत में धन्नू उर्फ सिद्धार्थ तिवारी को आरोपित बनाया गया। पुलिस ने 28 मई को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (रेप) और पॉक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया। अगले ही दिन, 29 मई को सिद्धार्थ को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
सिद्धार्थ के पिता रामबाबू तिवारी शुरू से चिल्लाते रहे कि उनका बेटा निर्दोष है। उनका कहना था कि गाँव के ग्राम प्रधान भूप नारायण पाल ने पुरानी चुनावी रंजिश के चलते उनके बेटे को फर्जी केस में फँसाया है। रामबाबू ने पुलिस, स्थानीय अफसरों और कोर्ट तक में गुहार लगाई, लेकिन उनकी एक न सुनी गई।
पिता ने की आत्महत्या
न्याय न मिलने से टूट चुके रामबाबू ने 4 जून 2025 को सैनी कोतवाली के सामने जहर खाकर आत्महत्या कर ली। मरने से पहले उन्होंने अपने शरीर पर एक सुसाइड नोट लिखा, जिसमें ग्राम प्रधान भूप नारायण पाल और उनके भाई वीरेंद्र पाल को बेटे को फँसाने और अपनी मौत का जिम्मेदार बताया। इस नोट में उन्होंने साफ लिखा कि प्रधान ने पुलिस से साँठगाँठ कर सिद्धार्थ को झूठे केस में फँसाया।
रामबाबू की मौत ने पूरे गाँव में हंगामा मचा दिया। उनके बेटे अक्षय तिवारी ने प्रधान, उसके भाई और तीन अन्य लोगों के खिलाफ जहर देकर हत्या का मुकदमा दर्ज कराया। पुलिस ने इस मामले में वीरेंद्र पाल और एक अन्य आरोपित को गिरफ्तार कर जेल भेजा, लेकिन भूप नारायण और दो अन्य लोग फरार हो गए।
रेप का आरोप निकला झूठा
रामबाबू की आत्महत्या के बाद मामले ने तूल पकड़ा। कौशांबी के पुलिस अधीक्षक (SP) राजेश कुमार ने तुरंत एक विशेष जाँच दल (SIT) का गठन किया। SIT ने बच्ची, चश्मदीदों और गाँव वालों के बयान लिए। 8 जून 2025 को बच्ची ने धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने बयान दिया कि उसके साथ कोई रेप नहीं हुआ था।
बच्ची ने बताया कि वह सिद्धार्थ के घर के पास रामायण सुनने गई थी। वहाँ कुछ बच्चे टिन शेड पर पत्थर फेंक रहे थे। सिद्धार्थ ने गुस्से में उसे एक थप्पड़ मारा। बच्ची रोते हुए घर गई और अपनी माँ को बताया। माँ ने गुस्से में रेप की झूठी कहानी बनाई और बच्ची को झूठ बोलने के लिए उकसाया।
SIT ने पाया कि यह पूरा मामला ग्राम प्रधान भूप नारायण पाल और रामबाबू के बीच पुरानी चुनावी रंजिश का नतीजा था। प्रधान ने पुलिस से मिलीभगत कर सिद्धार्थ को फँसाने की साजिश रची। जाँच में सिद्धार्थ को क्लीन चिट मिली। पुलिस ने रेप (धारा 376) और पॉक्सो एक्ट की धाराएँ हटा दीं। इसके बाद सिद्धार्थ के वकील अविनाश कुमार त्रिपाठी ने ACJM कोर्ट में जमानत याचिका दायर की। 9 जून 2025 को कोर्ट ने सिद्धार्थ को जमानत दी और उसी शाम उसे जेल से रिहा कर दिया गया। वह 11 दिन जेल में रहा।
ब्लैकमेलिंग और 20 लाख की उगाही का आरोप
खुद को हाईकोर्ट का वकील बताने वाले रामबाबू के भतीजे आशीष तिवारी ने दावा किया कि ग्राम प्रधान और उनके भाई ने सिद्धार्थ को फर्जी केस में फँसाया। आशीष के मुताबिक, प्रधान ने मामले को रफा-दफा करने के लिए 20 लाख रुपये की माँग की थी। जब परिवार ने पैसे देने से मना किया, तो रामबाबू को जहर देकर मार डाला गया। सुसाइड नोट में भी रामबाबू ने प्रधान को अपनी मौत का जिम्मेदार ठहराया था। पुलिस ने इस दावे की जाँच शुरू की, लेकिन अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हुई है।
लापरवाही बरतने वाले पुलिसकर्मियों पर भी गिरी गाज
SIT की जाँच में पुलिस की बड़ी लापरवाही सामने आई। अगर शुरू में धारा 164 के बयान की ठीक से जाँच की गई होती, तो शायद रामबाबू की जान बच सकती थी। हालाँकि सरकार ने इस मामले में कड़े कदम उठाते हुए पुलिसकर्मियों पर गंभीर कार्रवाई की।
इसी क्रम में सरकार ने सैनी कोतवाली के इंस्पेक्टर बृजेश करवरिया को लाइन हाजिर कर दिया, तो पथरावाँ चौकी प्रभारी आलोक राय और मामले के जाँचकर्ता (IO – Investigation Officer) कृष्ण स्वरूप को निलंबित कर दिया गया। SP राजेश कुमार ने कहा कि पुलिस की भूमिका की भी जाँच की जा रही है। कड़ाधाम थाना प्रभारी धीरेंद्र कुमार को मामले की आगे की जाँच सौंपी गई।
आरोपित ग्राम प्रधान फरार, इनाम घोषित
ग्राम प्रधान भूप नारायण पाल और उनके दो साथी अभी भी फरार हैं। पुलिस को उनकी लोकेशन हरियाणा में मिली है। SP राजेश कुमार ने प्रधान की गिरफ्तारी के लिए 25,000 रुपये का इनाम घोषित किया है। एक पुलिस टीम हरियाणा में छापेमारी कर रही है। गाँव में प्रधान के खिलाफ जबरदस्त गुस्सा है। लोग उसे जल्द से जल्द गिरफ्तार करने की माँग कर रहे हैं।
रामबाबू की आत्महत्या और सिद्धार्थ के जेल जाने से तिवारी परिवार पूरी तरह टूट गया। रामबाबू की पत्नी और बेटों का रो-रोकर बुरा हाल है। गाँव वाले भी इस घटना से सदमे में हैं। यह मामला न सिर्फ चुनावी रंजिश की गंदी राजनीति को उजागर करता है, बल्कि पुलिस और प्रशासन की लापरवाही पर भी सवाल उठाता है। अगर पुलिस ने शुरू में निष्पक्ष जाँच की होती, तो एक बाप की जान बच सकती थी।
यह घटना बताती है कि कैसे व्यक्तिगत दुश्मनी और सिस्टम की खामियाँ मिलकर एक परिवार को तबाह कर सकती हैं। सिद्धार्थ को 11 दिन जेल में रहना पड़ा, उसके पिता की जान चली गई, और मुख्य आरोपित अभी भी फरार है। SIT की जाँच ने सच सामने ला दिया, लेकिन रामबाबू को वापस नहीं लाया जा सकता। यह मामला पुलिस, प्रशासन और समाज के लिए सबक है कि हर आरोप की गहन और निष्पक्ष जाँच जरूरी है।