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कर्नाटक के स्कूलों में बच्चे पढ़ेंगे ‘सेक्स एजुकेशन’, कॉन्ग्रेस सरकार ने विवाद से बचने के लिए नाम दिया ‘किशोर शिक्षा’: रिपोर्ट में दावा- राज्य के बच्चे हो रहे वर्चुअल यौन शोषण का शिकार, अभिभावक चिंतित

कर्नाटक सरकार स्कूलों में किशोरों को सेक्स एजुकेशन पढ़ाएगी। विवाद से बचने को इस किशोर शिक्षा का नाम दिया गया है। यह पढ़ाई मुख्य तौर पर कक्षा 8 से 12 वर्षीय बच्चों को दी जाएगी। यह फैसला उन्हें यौन जागरूकता दिलाने के संबंध में लिया गया है।

सेक्स एजुकेशन को लेकर यह पढ़ाई एक रिपोर्ट के आधार पर करवाई जाने वाली है। इस रिपोर्ट में पता चला है कि कर्नाटक में अधिकतर बच्चे वर्चुअली यौन शोषण और अपमानजनक शब्दों यानी गाली का शिकार हो रहें हैं।

यह भी पता चला है कि इससे बच्चों को बचाने में सरकार के साथ-साथ परिवार भी असमर्थ साबित हो रहा है। कर्नाटक के स्कूल शिक्षा और साक्षरता मंत्री मधु बंगारप्पा ने कक्षा 8 से 12 कक्षा तक के छात्रों के लिए स्कूल में सेक्स एजुकेशन की पढ़ाई लागू करने का आदेश दिया है।

इसको लेकर क्या पढ़ाई करवाई जाएगी, इसकी जानकारी नहीं है। यह भी सामने या है आया है कि कर्नाटक में शिक्षक भी सेक्स एजुकेशन देने से बच रहे हैं। विवादों से बचने कि लिए इसे ‘सेक्स एजुकेशन’ की जगह ‘किशोर शिक्षा’ का नाम दिया गया है।

इसके तहत बच्चों को गुड टच और बैड टच की भी जानकारी दी जाएगी। कर्नाटक राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (KSCPCR) और चाइल्डफंड इंडिया के संयुक्त तत्वाधान में जारी किए गए रिपोर्ट में बच्चों के ऑनलाइन यौन शोषण और दुर्व्यवहार को प्रमुखता से उठाया गया था

यह रिपोर्ट शुक्रवार (13 जून 2025) को कर्नाटक विधान परिषद के अध्यक्ष बसवराज होरत्ती द्वारा जारी की गई थी। अध्ययन में कर्नाटक के पाँच जिलों बेंगलुरु, चामराजनगर, रायचूर, चिकमगलुरु और बेलगावी के आठ से अट्ठारह साल 903 स्कूली बच्चों को शामिल किया गया था। । 

इस रिपोर्ट से प्राप्त निष्कर्ष हैरान करने वाला था। रिपोर्ट में पता चला कि डिजिटलाइजेशन के इस दौर में कर्नाटक में पिछले एक साल में छह में से एक बच्चे ने सोशल मीडिया पर अंजान लोगों से ऑनलाइन जुड़ने की बात को स्वीकार किया।

इतना ही नहीं दस में से एक किशोर (17% लड़के और 4% लड़कियाँ) उनसे मिलने भी गया। इसके अलावा कई ने इन ऑनलाइन दोस्तों के साथ फोटोज और वीडियो साझा करने की बात भी मानी। स्कूल शिक्षा विभाग के आयुक्त डॉ त्रिलोकचंद्र केवी के अनुसार इसके लिए पाठ्यक्रम स्कूल शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण विभाग (DSERT) में तैयार किया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि सिलेबस तैयार होने के बाद जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों (DITT) को भेजा जाएगा और यहीं शिक्षकों को पाठ्यक्रम पढ़ाने का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। वहीं कर्नाटक राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष नागन्ना गौड़ा ने विभाग को सिलेबस में POCSO एक्ट को शामिल करने की भी सलाह दी है।

कर्नाटक में प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों के एसोसिएटेड मैनेजमेंट के महासचिव डी. शशि कुमार का कहना है कि आजकल बच्चों में कम उम्र में ही हार्मोनल उत्तेजना शुरू हो जाती है। इसलिए जरुरी है कि हमें उन्हें एक उम्र के बाद शरीर में होने वाले बदलावों के बारे में बताएँ।

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