
पंजाब में 34 साल पहले 15 जून 1991 एक बड़ा आतंकी हमला हुआ था। रात 9:35 के करीब फिरोजपुर से लुधियाना जा रही एक ट्रेन जब लुधियाना जिले के बद्दोवाल स्टेशन के पास धीरे हुई, तो खालिस्तानी आतंकवादियों ने उस पर हमला कर दिया।
आतंकियों ने पहले सिग्नल बॉक्स को हॉट-वायर करके ट्रेन को रोका और फिर ऑटोमैटिक हथियारों से अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी। इस हमले में 62 लोग मारे गए, जिनमें से ज्यादातर हिंदू यात्री थे और करीब 40 लोग घायल हो गए। इस हमले ने सैकड़ों परिवारों की जिंदगी तबाह कर दी और यह घटना उस दौर के सबसे खतरनाक आतंकी हमलों में से एक मानी जाती है।
स्रोत: हिंदूपोस्ट
पंजाब के लुधियाना जिले में 15 जून 1991 को एक और खौफनाक आतंकी हमला हुआ। जहाँ किला राजन के पास धुरी-हिसार पैसेंजर ट्रेन को खालिस्तानी आतंकवादियों ने निशाना बनाया। उन्होंने पहले हिंदू और सिख यात्रियों को अलग-अलग किया और फिर कई यात्रियों को जबरन ट्रेन से नीचे उतार लिया।
इसके बाद यात्रियों को रेलवे ट्रैक पर एक लाइन में खड़ा किया गया और गोलियों से मार दिया गया। इस हमले में 48 लोग मारे गए और 30 घायल हुए। आतंकियों का संबंध कथित तौर पर खालिस्तान कमांडो फोर्स से था। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, आतंकियों ने ट्रेन के गार्ड और ड्राइवर का अपहरण कर लिया और फिर मौके से फरार हो गए।
यह हमला उसी दिन हुआ था, जिस दिन बद्दोवाल स्टेशन पर दूसरी ट्रेन पर भी हमला हुआ था। एक ही दिन में हुई इन दोनों घटनाओं को उस समय की सबसे बड़ी सामूहिक हत्याओं में गिना जाता है। दिल दहला देने वाली इन घटनाओं से ठीक एक दिन पहले पंजाब को ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित किया गया था और कानून-व्यवस्था संभालने के लिए वहाँ सेना तैनात कर दी गई थी।
जतिंदर सिंह की हत्या
पंजाब के इतिहास में 15 जून 1991 का दिन सबसे भयावह दिनों में से एक था। इस दिन खालिस्तानी आतंकवादियों ने न केवल ट्रेनों पर हमला किया, बल्कि कई अन्य स्थानों पर भी हमले किए।
रोपड़ जिले के चमकौर साहिब विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन (AISSF) के उम्मीदवार जतिंदर सिंह की रतलाँगड़ी गाँव के एक गुरुद्वारे में गोली मारकर हत्या कर दी गई। हमले में उनका गनमैन भी घायल हो गया।
कहा जाता है कि जतिंदर सिंह बिना सुरक्षा गार्डों को बताए लोगों से मिलने गए थे, जिससे उन पर हमला करना आसान हो गया। वह AISSF के दूसरे उम्मीदवार थे जिनकी हत्या हुई और खालिस्तानी आतंकियों द्वारा मारे गए कुल 21वें चुनाव उम्मीदवार थे।
इसी दिन अन्य हिस्सों में भी हिंसा फैली रही। तरनतारन जिले के धोतियाँ गाँव में एक ही परिवार के पाँच सदस्यों और एक महिला की बेरहमी से हत्या कर दी गई। एक अलग हमले में दो पुलिसकर्मी भी मारे गए।
वहीं, कोटला माझा सिंह गाँव के पास हुई मुठभेड़ में खालिस्तान कमांडो फोर्स के एरिया कमांडर सुखदेव सिंह उर्फ लाली समेत पाँच आतंकवादियों को मार गिराया गया। ये सभी हमले उस दिन हुए जब देशभर में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान समाप्त हुए केवल पाँच घंटे ही हुए थे।
पंजाब में उस दिन वोटिंग नहीं हुई थी, क्योंकि वहाँ की स्थिति बेहद अस्थिर थी। वहाँ 22 जून को सेना की सुरक्षा में मतदान कराने की योजना बनाई गई थी। उस समय पंजाब 1987 से केंद्र सरकार के सीधे नियंत्रण (यानि President’s Rule) में था और अप्रैल 1991 में राज्य विधानसभा चुनावों की घोषणा की गई थी। 15 जून तक, पंजाब में हुए लगातार हमलों में 700 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी थी।
गृह मंत्री की हत्या का प्रयास
उस समय पंजाब में हालात इतने खराब थे कि आतंकवादी हमलों की आशंका के चलते रात के समय यात्रा पर पाबंदी लगा दी गई थी। आए दिन हो रहे हमलों की वजह से कॉन्ग्रेस समेत कई राजनीतिक दलों ने चुनाव रद्द करने की माँग की थी।
स्थिति इतनी गंभीर थी कि देश के उस समय के गृह मंत्री सुबोध कांत सहाय पर भी हमला होने की कोशिश हुई। जब वह लुधियाना के पास से गुजर रहे थे, तो उनकी कार के पास बजरी के ढेर में विस्फोट हो गया, लेकिन वे सुरक्षित बच गए। हालात को देखते हुए मतदान से ठीक एक दिन पहले चुनाव रद्द कर दिए गए।
दिसंबर 1991 में खालिस्तानी आतंकवादियों ने ट्रेन पर हमला कर 49 हिंदुओं की हत्या कर दी थी
पंजाब में खालिस्तानी आतंकवादियों ने 26 दिसंबर 1991 को एक यात्री ट्रेन को हाईजैक कर लिया और उसमें सवार हिंदू यात्रियों को चुन-चुन कर गोली मार दी। इस भीषण हमले में 49 लोगों की मौत हो गई और 20 लोग घायल हुए। यह हमला पंजाब में विधानसभा चुनाव से ठीक दो महीने पहले हुआ था।
बताया गया कि जब ट्रेन लुधियाना से रवाना हुई, तभी आतंकवादी उसमें सवार थे। शाम करीब 7:30 बजे, जब ट्रेन सोहेन गाँव के पास पहुँची, तो आतंकियों ने आपातकालीन कॉर्ड खींचकर ट्रेन को रोक दिया। जैसे ही ट्रेन रुकी, चार आतंकियों ने अपनी AK-47 राइफलें निकाली और डिब्बों की तलाशी शुरू की। उन्होंने हिंदू प्रतीत होने वाले यात्रियों को सीधे गोली मार दी। कुछ देर बाद छह और आतंकी ट्रेन में सवार हो गए और उन्होंने भी गोलीबारी शुरू कर दी। कुल मिलाकर 49 यात्रियों की हत्या और 20 को घायल करने के बाद सभी आतंकी रात के अंधेरे में फरार हो गए।
इस नरसंहार से पहले नवंबर 1991 में केंद्र सरकार ने चुनावों को शांतिपूर्वक कराने के लिए पंजाब में 1,40,000 सुरक्षा बलों को तैनात किया था। लेकिन उस समय ट्रेनों पर इस तरह के हमले आम हो गए थे, खासकर चुनावों से पहले, जिनमें आतंकवादी हिंदू यात्रियों को निशाना बनाते थे।
इसके अलावा जून 1991 से लेकर उत्तर भारत, खासकर पंजाब और उत्तरी उत्तर प्रदेश में कई बम धमाके और आम नागरिकों पर हमले हुए। उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में खालिस्तानी समर्थकों को पनाह मिलती थी। हाल ही में पीलीभीत में सुरक्षा बलों ने एक मुठभेड़ में खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स के आतंकवादियों को मार गिराया, जिन्हें पाकिस्तान की ISI द्वारा ट्रेनिंग दी गई थी।
1991 में हुआ यह ट्रेन नरसंहार भारत के इतिहास में सबसे भयानक आतंकी घटनाओं में से एक माना जाता है। इसमें न सिर्फ निर्दोष हिंदू यात्रियों को मारा गया, बल्कि यह हमला लोकतंत्र और चुनाव प्रक्रिया को अस्थिर करने की सोची-समझी साजिश भी था।