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जिस ‘बंगाल के कसाई’ सुहरावर्दी ने करवाया हिन्दुओं का नरसंहार, उसकी महानता बच्चों को पढ़ाएगी बांग्लादेश की यूनुस सरकार: नई किताबों में लाई स्पेशल चैप्टर

बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना के तख्तापलट के बाद से लगातार इस्लामी कट्टरपंथ को लगातार बढ़ावा मिल रहा है। इस पूरी कवायद को बांग्लादेश की मोहम्मद यूनुस सरकार खुद बढ़ा रही है। इसी कड़ी में अब बांग्लादेश में बच्चों को पढ़ाई जाने वाली किताबों में बदलाव किए गए हैं। ऐसी ही एक किताब में हिन्दुओं का नरसंहार करवाने वाले पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और मुस्लिम लीग नेता हुसैन शहीद सुहरावर्दी की बड़ाई की गई है। अब बांग्लादेश इस कसाई के बारे में पढ़ेंगे।

हुसैन सुहरावर्दी को हिन्दुओं के नरसंहार के लिए ‘बंगाल का कसाई’ कहा गया था। सुहरावर्दी ने यह नरसंहार बंगाल का प्रधानमंत्री रहते हुए करवाया था। सुहरावर्दी ही वह शख्स था जिसने 1943 में बंगाल के अकाल को बद से बदतर बना दिया था।

सुहरावर्दी के ही राज में मुस्लिमों ने 1946 में डायरेक्ट एक्शन डे किया था और हजारों हिन्दुओं को मरवा दिया था। अब बांग्लादेश में हिन्दुओं पर लगातार हमले हो रहे हैं और यूनुस सरकार सुहरावर्दी का महिमामंडन कर रही है और उसके कट्टरपंथी विचारों को बढ़ावा दे रही है। असल में यह बच्चों में भी उसी कट्टरपंथ को भरने की योजना है।

सुहरावर्दी और 1946 का नरसंहार

16 अगस्त 1946 भारतीय इतिहास में हिन्दू विरोधी हिंसा के सबसे क्रूर दिनों में से एक है। इसे कलकत्ता का नरसंहार नाम से भी जाना जाता है। 5 दिनों तक चले इस नरसंहार की शुरुआत थी जिसमें लगभग 5,000 लोग मारे गए थे। इस नरसंहार में हज़ारों हिंदू घायल हुए थे और 120,000 बेघर हो गए थे। इस नरसंहार के पहले ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ का आह्वान मुस्लिम लीग के सुप्रीमो मुहम्मद अली जिन्ना ने किया था। जिन्ना ने कलकत्ता की हिंदू आबादी के खिलाफ़ लूट, हत्या और यौन हिंसा के लिए लोगों को भड़काया था।

जिन्ना ने अपने ऐलान में साफ़ कर दिया था कि मुस्लिम लीग अंग्रेज (ब्रिटिश) सरकार के साथ सहयोग करना बंद कर देगी और संवैधानिक तरीकों को अलविदा कह देगी। जिन्ना ने ऐलान किया था कि वह पूरे देश में हिंसा करेंगे। जिन्ना के हिंदू समुदाय का नरसंहार करने वाले जिन्ना के इस सपने को साकार करने वाला व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि हुसैन शहीद सुहरावर्दी था।

1946 से पहले बंगाल एक मुस्लिम बहुल प्रांत था। बंगाल की कुल आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी केवल 42% थी। लेकिन कलकत्ता शहर में हिंदू बहुसंख्यक थे। उनकी आबादी 64% था। इस ‘जनसांख्यिकीय असंतुलन’ ने कलकत्ता को सुहरावर्दी और मुस्लिम लीग के निशाने पर ला दिया। वे हिंदुओं को डराकर बंगाल को पाकिस्तान में शामिल करने के लिए मजबूर करना चाहते थे।

ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने जून 1946 में सत्ता ट्रांसफर के लिए बातचीत को मिशन भेजा था। यह लोग भारत के बँटवारे पर भी बात करने वाले थे। हालाँकि, कॉन्ग्रेस बँटवारे को लेकर राजी नहीं थी जबकि मुस्लिम लीग चाहती थी कि पाकिस्तान बन जाए। मुस्लिम लीग ने अपनी माँग मनवाने के लिए हिंसक तरीके अपनाने का फैसला लिया और 16 अगस्त, 1946 को डायरेक्ट एक्शन डे घोषित कर दिया। इस दिन को भी जानबूझकर चुना गया था। दरअसल, यह रमजान का अठारवां दिन था।

इसी दिन बद्र का युद्ध हुआ था। इस बद्र के युद्ध में पैगंबर मोहम्मद की सेनाओं ने कुरैशों से युद्ध किया था और हराया था। इसके चलते इस्लाम का अरब में कब्जा पक्का हो पाया था। इसी को ध्यान में रखते हुए सुहरावर्दी और जिन्ना ने यही दिन चुना। वह हिन्दुओं को कुरैश दिखाना चाह रहे थे और भारत के मुस्लिमों को पैगम्बर मुहम्मद की फ़ौज। उन्होंने अखबारों और सभाओं के जरिए खूब जहर भी उगला। मुस्लिम लीग वालों ने नारा दिया, “लड़ के लेंगे पाकिस्तान, लेकर रहेंगे पाकिस्तान, अल्लाहु अकबर, नारा-ए-तकबीर।”

मुस्लिम लीग के मुखपत्र द स्टार इंडिया ने लिखा, “मुसलमानों को याद रखना चाहिए कि यह रमज़ान ही था जब अल्लाह ने जिहाद की मंजूरी दी थी। रमज़ान में ही बद्र की लड़ाई लड़ी गई थी, जो इस्लाम और बुतपरस्तों के बीच पहला खुला युद्ध था, जिसे 313 मुसलमानों ने जीता था और फिर रमज़ान में ही पैगंबर के नेतृत्व में 10,000 मुसलमानों ने मक्का पर जीत हासिल की थी और अरब में जन्नत और इस्लाम के राज की स्थापना की। मुस्लिम लीग खुशकिस्मत है कि वह इस महीने और दिन पर अपनी कार्रवाई शुरू कर रही है।”

16 अगस्त 1946 की सुबह कलकत्ता में हिंसा भड़क उठी। मुस्लिम लीग के नेताओं के भड़काऊ भाषणों ने हिंसा को और भड़का दिया। हुसैन शहीद सुहरावर्दी ने सभी मौलवियों को तक़रीर देने का निर्देश दिया था, जिसमें जुम्मा के नमाजियों को पाकिस्तान बनाने के लिए हर कोशिश करने को कहा गया था। यहाँ हिन्दुओं पर हमला करना साफ़ मकसद था। सुहरावर्दी ने मुसलमानों को यह साफ़ कहा था उन्हें कानूनी छूट मिलेगी और पुलिस हस्तक्षेप नहीं करेगी। इससे उन्हें हिंदू इलाकों में उत्पात मचाने का और भी हौसला मिला।

सुहरावर्दी ने पुलिस को काम नहीं करने दिया और इससे मुस्लिम गुंडों को बिना किसी डर अपने हमले करने की छूट मिल गई। जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया, स्थिति तेजी से बिगड़ती गई। लोहे की रॉड, तलवारों और अन्य हथियारों से लैस मुस्लिम भीड़ ने कोलकाता शहर भर में हिंदू घरों और व्यवसायों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। कॉलेज स्ट्रीट और बड़ाबाजार जैसे इलाके मुसलमानों के लिए सामूहिक हत्या, बलात्कार और आगजनी करने के लिए मुख्य निशाना बने।

सुहरावर्दी ने इस हिंसा में बड़ा रोल निभाया था। उसने नरसंहार से कुछ साल पहले बंगाल पुलिस में हेरफेर करके पंजाबी मूस्लिमों और पठानों को बड़ी संख्या में भरा था। कलकत्ता पुलिस में इससे पहले पारंपरिक रूप से आरा, बलिया, छपरा और देवरिया के हिंदू शामिल थे। सुहरावर्दी ने इसमें बदला करके यह पका कर दिया कि दंगे के समय कार्रवाई हिन्दुओं के खिलाफ हो और मुस्लिमों के अपराध पर वह आँख मूँद ले। इस हिंसा के लिए लम्बी योजना बनाई गई थी। पेट्रोल इकट्ठा करने और गुंडों को खाना-पानी के लिए भी विशेष इंतजाम था।

ब्रिटिश सरकार ने नरसंहार के 6 दिनों के बाद ही सहाला संभालने के लिए सेना भेजी लेकिन तब तक काफी नुकसान हो चुका था। यह हिंसा बाद में बिहार और पंजाब समेत बाकी इलाकों में फैली। इसी के कुछ दिन बाद बाद में यह बिहार और पंजाब सहित अन्य क्षेत्रों में फैल गया। इसी के कुछ दिनों बाद मुसलमानों ने अक्टूबर और नवंबर 1946 में नोआखली नरसंहार की साजिश रची। सुहरावर्दी के सहयोगी और मुस्लिम लीग का नेता ग़ुलाम सरवर हुसैनी इस नरसंहार के पीछे मास्टरमाइंड था। नोआखली में लगभग 5,000 हिंदुओं की हत्या कर दी गई।

सुहरावर्दी के कुकर्म मिटाने का हो रहा प्रयास

अब सुहरावर्दी के कुकर्मों पर पर्दा डालने का प्रयास किया जा रहा है। सुहरावर्दी को डायरेक्ट एक्शन डे से अलग करने का भी प्रयास किया जा रहा है। उसे न केवल महिमामंडित किया जा रहा है, बल्कि इतिहास के प्रमुख आदमी के रूप में भी चित्रित किया जा रहा है। जबकि असल में सुहरावर्दी को कोलकाता में ‘गुंडों के राजा’ के रूप में जाना जाता था। ‘बंगाल के कसाई’ के रूप में उसकी करामातों को विभिन्न इतिहासकारों ने दर्ज किया है, लेकिन फिर भी मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश सरकार इसे छिपाने की कोशिश कर रही है।

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