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महँगाई, भारत से लड़ाई, मंत्रियों की रुसवाई… तय थी जस्टिन ट्रूडो की विदाई: कनाडा का PM बनने की रेस में भारतवंशी अनीता आनंद भी, क्या ‘खालिस्तानी प्रेम’ पर लगेगा ब्रेक?

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने सोमवार (6 जनवरी, 2025) को इस्तीफ़ा देने का ऐलान कर दिया है। ट्रूडो ने कहा कि वह आगामी आम चुनावों में लिबरल पार्टी का चेहरा बनने के लिए पसंदीदा उम्मीदवार नहीं हैं। लिबरल पार्टी से प्रधानमंत्री पद के लिए नए नेता का चयन होने के बाद जस्टिन ट्रूडो अपना इस्तीफ़ा दे देंगे। ट्रूडो के इस इस्तीफे की पटकथा बीते लगभग एक वर्ष से लिखी जा रही थी। इस खबर के बाद अब लिबरल पार्टी के नेताओं में पीएम पद की दौड़ शुरू हो गई है। इस दौड़ में एक भारतवंशी अनीता आनंद भी शामिल हैं।

क्यों ट्रूडो को जाना पड़ा?

जस्टिन ट्रूडो 2015 में पहली बार कनाडा के प्रधानमंत्री बने थे। इस चुनाव में उन्होंने लिबरल पार्टी को बड़ी जीत दिलाई थी। इसके बाद उन्होंने 2019 और 2021 में भी जीत हासिल की। 2021 की सरकार के लिए उन्हें जोड़-तोड़ करना पड़ा। वह 2013 से ही लिबरल पार्टी के नेता का रोल निभाते आ रहे हैं। जस्टिन ट्रूडो जब प्रधानमंत्री बने थे. तब उनकी लोकप्रियता चरम पर थी। लेकिन समय के साथ उनके फैसलों और उनकी सरकार की विफलताओं के चलते अब इस्तीफे की नौबत आई है।

ट्रूडो की लोकप्रियता का जायजा लेने वाले एक ट्रैकर के मुताबिक, 2015-16 में लगभग 65% लोग उन्हें पसंद करते थे। 2025 आते-आते 75% लोग उन्हें नापसंद करने लगे हैं। मात्र 22% लोग अभी उनका समर्थन करते हैं। ट्रूडो का विरोध 2020 की कोविड महामारी के बाद तेजी से बढ़ा है। कनाडा में 2020 के बाद घरों की किल्लत, महंगाई, बढ़ता कट्टरपंथ, सुरक्षा चिंताएँ और रोजगार ऐसे मुद्दे रहे हैं, जिन्हें वह नहीं सुलझा पाए। इसके अलावा ट्रूडो की सदारत में लिबरल पार्टी अपने गढ़ रहे चुनाव भी हार गई।

ट्रूडो की सरकार से कुछ दिनों पहले जगमीत सिंह की NDP ने भी समर्थन वापस ले लिया था। इसी के साथ कुछ सांसदों ने उनको पद से हटाने के लिए कोशिश चालू कर दी। जनवरी आते-आते उन पर दबाव बढ़ गया और अब उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा। जस्टिन ट्रूडो ने 2023 के बाद से ही भारत से भी लड़ाई मोल ले ली। उन्होने खालिस्तानियों को खुश करने के लिए भारत से लड़ाई मोल ले ली और आतंकी निज्जर की हत्या का आरोप भारतीय एजेंसियों पर ठोंक दिया। इसके चलते उनकी और थू-थू हुई।

कौन है अब रेस में?

कनाडा के नए प्रधानमंत्री की रेस में अब कई लिबरल नेता हैं। कनाडा की पूर्व वित्त मंत्री क्रिश्टिया फ्रीलैंड, बड़े नेता मार्क कारने, वित्त मंत्री डोमिनिक लीब्लांक, पूर्व विदेश मंत्री मेलीना जोली, पूर्व रक्षा मंत्री अनीता आनंद समेत जोनाथन विलकिंसन, करीना गौल्ड आदि प्रधानमंत्री पद की दौड़ में हैं। इनमें से कई नेताओं ने अपने समर्थन में लोगों को जुटाना भी चालू कर दिया है। उनका नाम सबसे आगे हैं, जिन्होंने दिसम्बर महीने में ट्रूडो की कैबिनेट से इस्तीफ़ा दिया था और ट्रूडो के भी इस्तीफे की माँग की थी।

अनीता आनंद कौन हैं?

ट्रूडो की जगह कनाडा के प्रधानमंत्री पद के लिए अनीता आनंद का भी नाम चल रहा है। अनीता आनंद 2019 में पहली बार सरकार में शामिल हुई थीं। ट्रूडो ने उन्हें 2019 में एक कम चमकधमक वाला मंत्रालय थमाया था। वह कनाडा की पहली हिन्दू कैबिनेट मंत्री थीं। उनको प्रोक्योरमेंट मंत्रालय मिला था, जो कनाडा के लिए बाकी जगह से आपूर्ति जुटाने का काम करता है। इस मंत्रालय का महत्व 2020 में तब और बढ़ गया जब पूरी दुनिया से वैक्सीन जुटानी थीं। इसके चलते अनीता आनंद को काफी प्रसिद्धि मिली।

इसी के चलते 2021 में उन्हें कनाडा का रक्षा मंत्री बना दिया गया। वह यूक्रेन-रूस संघर्ष के मौके पर रक्षा मंत्री रहीं। उन्हें कुछ दिनों के लिए कैबिनेट से हटा दिया गया था। इसके बाद उन्हें दिसम्बर, 2024 में दोबारा कैबिनेट में शामिल करके परिवहन और व्यापार मामलों का मंत्री बना दिया गया। अनीता आनंद भारतवंशी है और उनके माता-पिता नाइजीरिया से कनाडा पहुँचे थे। वह कनाडा में ही जन्मी थीं। वकालत की पढ़ाई पढ़ने वाली अनीता आनंद 2013 से ही सांसद हैं। वह ट्रूडो के करीबियों में से एक मानी जाती हैं।

भारत से रिश्तों पर क्या असर?

जस्टिन ट्रूडो के जाने की खबर भारत से रिश्तों के संबंध में बहुत मायने रखती है। भारत पर वह खुले तौर पर दखलअंदाजी और कनाडाई नागरिकों की हत्या के हवा-हवाई आरोप जड़ चुके हैं। भारत भी उन पर राजनीतिक फायदे के लिए राजनयिक रिश्तों की बलि चढ़ाने का आरोप लगाता आया है। हाल ही में दोनों ने एक-दूसरे ने शीर्ष राजनयिकों को भी वापस बुला लिया था। ट्रूडो के जाने के बाद भारत से रिश्तों में कोई बड़ा बदलाव आने की कोई ख़ास उम्मीद नहीं है, लेकिन हाँ नया प्रधानमंत्री कौन होगा, इस आधार पर थोड़े परिवर्तन हो सकते हैं।

इससे पहले जब उन्होंने भारत पर आरोप लगाए थे तब भी उनके खिलाफ कनाडा के अंदर से ही आवाजें उठी थीं। कनाडा के कई पत्रकार और नेताओं ने उन्हें लताड़ा था। ट्रूडो ने कोई सबूत भी नहीं दिखाए थे। इसको लेकर भी उन पर प्रश्न उठे थे।

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