
*ऐसे लोग खत्म कर रहे हैं पत्रकारों का सम्मान*
क्या कुछ पत्रकार प्लस ठेकेदारों ने पत्रकारों के सम्मान को खत्म करने का ही ठेका ले लिया?
पत्रकारिता के गिरते स्तर की आखिर असली वजह क्या है?
*आइए डालते हैं हम इस पर एक नजर*
कुछ पत्रकार हमारे आपके बीच में ऐसे भी हैं जिनके द्वारा लोगों को ब्लैकमेल कर अच्छे से पेट कारिता की जा रही है और कुछ तो जी हुजूरी करके पेट कारिता कर रहे हैं।
मांधाता क्षेत्र के कुछ पत्रकार मांधाता विकासखंड में ठेकेदारी कर रहे हैं पत्रकार से ठेकेदार बनना यह उनके द्वारा चलाकी और चाटुकारिता से हासिल की गई बड़ी मंजिल है।
इसको हासिल करने के लिए सबसे पहले उनके द्वारा अनाप-शनाप खबर चलाई जाती थी, उसके बाद उस खबर के मैनेज के लिए एक शर्त रखी जाती थी, शर्त में पैसे और काम कभी-कभी दोनों भी हो जाते थे। कर्मचारी बेचारा क्या करता मजबूरन इन पत्रकार प्लस ठेकेदारों की बात कर्मचारियों को माननी ही पड़ती थी।
जो कर्मचारी नहीं मानता था उसके खिलाफ लगातार खबरें चलाई जाती थी।
ऐसा नजारा आप सभी लोगों ने देखा होगा अभी कुछ दिन पूर्व मांधाता विकासखंड में हुए भ्रष्टाचार को लेकर लगातार रोज खबरें लिखी जा रही थी। मामला यहां तक पहुंच गया कि ब्लॉक में हंगामा तक हो गया। खबरों का सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक खंड विकास अधिकारी का स्थानांतरण नहीं हो गया। खंड विकास अधिकारी के स्थानांतरण के बाद खबर चलाने वालों के कलम की स्याही ही खत्म हो गई। और यह लोग विकासखंड परिसर के चक्कर लगाते देखे जा रहे हैं।
क्या खंड विकास अधिकारी मांधाता के स्थानांतरण के बाद मांधाता क्षेत्र में हुए सारे भ्रष्टाचार खत्म हो गए?
क्या ग्राम सभाओं में पड़े अधूरे कार्य खंड विकास अधिकारी के स्थानांतरण के बाद पूरे हो गए?
आखिर जो पत्रकार भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार का हल्ला मचा रहे थे वह खामोश क्यों हो गए?
क्या उनकी खामोशी को यह समझा जाए कि अब खंड विकास अधिकारी के ट्रांसफर के बाद उनकी सेटिंग गेटिंग पूरी हो चुकी है?
क्या ग्राम प्रधानों के द्वारा खंड विकास अधिकारी पर लगाए गए आरोपो की जांच नहीं होनी चाहिए?
आखिर इतना हो हल्ला करवाने के पीछे किसी व्यक्ति विशेष का हाथ था जो अब सन्नाटा पसरा हुआ है?
क्या कुछ पत्रकार समाज हित की बात छोड़कर व्यक्तिगत हित को ज्यादा महत्व दे रहे है?
फिलहाल कुछ पत्रकार ऐसे भी हैं जिनके द्वारा व्हाट्सएप ग्रुपों पर यह भी लिखा जाता है कि जल्द इस ग्राम सभा का होगा खुलासा, लेकिन खुलासा कभी नहीं होता। समाज ऐसे लोगों को बड़ी विचित्र नजर से देख रहा है और उनके साथ-साथ अन्य पत्रकारों की भी किरकिरी हो रही है।
यहां तक की यह लोग अमर्यादित शब्दों का भी इस्तेमाल ग्रुप पर करने से पीछे नहीं हटते। ऐसे लोग सामाजिक सामंजस्य धीरे-धीरे खत्म कर रहे हैं।
सरकारी कर्मचारी से लेकर आम जनमानस व्हाट्सएप ग्रुप में जुड़े हुए हैं और पत्रकारिता के गिरते स्तर को भली भांति देख और समझ रहे हैं।
ऐसे में कुछ दलाल पत्रकार प्लस ठेकेदार पत्रकारों का सम्मान मिट्टी में मिल रहे हैं।
यह लेख मेरे व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर आधारित है यह लेख लिखने का मेरा इरादा किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचने का नहीं है, ना ही किसी व्यक्ति विशेष से जुड़ा हुआ है।