
दिल्ली की अदालतों में दर्ज बलात्कार मामलों से जुड़ी एक आरटीआई ने हमारी न्याय व्यवस्था की काली सच्चाई को बेपर्दा कर दिया है। 2017 से 2024 के बीच दर्ज 3,097 रेप मामलों में से सिर्फ 133 में दोष सिद्ध हुआ। यानी सिर्फ 4.3% मामलों में सज़ा मिली, जबकि 95% से ज़्यादा मामलों में आरोपित या तो निर्दोष साबित हुए या सबूतों के अभाव में बरी कर दिए गए। यह आँकड़ा दर्शाता है कि गंभीर अपराध के नाम पर न्याय प्रणाली का दुरुपयोग किया जा रहा है।
हमारे देश में, जहाँ सैनिक अपनी जान जोखिम में डालकर भारत माता की रक्षा करते हैं, वहीं कुछ महिलाएँ इन रक्षकों को भी झूठे बलात्कार के झूठे आरोपों में फँसाकर उनकी जिंदगी तबाह कर देती हैं। एक देशभक्त जवान, जिसने देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया, उसे झूठे केस में फँसा कर समाज ने अपराधी की तरह तिरस्कारित किया। मानसिक आघात, परिवार का टूटना और समाज का कलंक, ये सब उसके हिस्से आए। बाद में वह निर्दोष साबित हुआ, लेकिन उसके मन और समाज में लगी चोट को कोई ठीक नहीं कर पाया। यह केवल एक सैनिक की कहानी नहीं, बल्कि न्याय व्यवस्था की गहरी विफलता का कड़वा सच है।
दिल्ली-NCR में कई ऐसे उदाहरण हैं जो इस सामाजिक बीमारी को बयां करते हैं:
दिल्ली की एक महिला ने 8 पुरुषों पर झूठे रेप आरोप लगाए, जिन्हें पुलिस ने ‘आदतन झूठी शिकायतकर्ता’ बताया।
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक गैंगरेप FIR को रद्द करते हुए कहा कि इसे ‘निजी दुश्मनी निकालने के लिए कानून का दुरुपयोग’ किया गया।
नोएडा में एक महिला ने शादी से इंकार करने पर रेप का झूठा केस दर्ज कराया, जबकि संबंध पूरी तरह सहमति से थे।
गुरुग्राम में एक व्यक्ति को आठ महीने जेल में रहना पड़ा, लेकिन CCTV और कॉल रिकॉर्ड ने साबित किया कि मामला पूरी तरह फर्जी था।
साथ ही, सरकार ने बलात्कार पीड़िताओं को मुआवज़े के रूप में 88 करोड़ रुपए से अधिक वितरित किए, लेकिन झूठे मामलों के लिए केवल 6 लाख की वसूली हो सकी।
झूठे आरोपों का खामियाजा पुरुषों को सामाजिक बहिष्कार, मानसिक उत्पीड़न और आत्महत्या तक भुगतना पड़ता है। यह अन्याय न केवल पीड़ित पुरुषों के साथ होता है, बल्कि समाज को भी गहरे नुकसान पहुंचाता है।
बलात्कार एक जघन्य अपराध है और इसे कठोर सजा मिलनी चाहिए, लेकिन झूठे आरोप भी समान रूप से घातक, अमानवीय और समाज विरोधी हैं। यह वक्त आ गया है कि हमारा देश Gender-Neutral Laws अपनाए , न्याय ऐसा हो जो लिंग के आधार पर न हो, बल्कि सच्चाई और निष्पक्षता पर आधारित हो। सभी नागरिकों के अधिकारों का संरक्षण तब ही संभव होगा, जब पुरुष और महिला दोनों को बराबरी का न्याय मिलेगा। तभी हम एक मजबूत, समावेशी और न्यायपूर्ण समाज की ओर बढ़ सकेंगे।