
वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना अंतरिम आदेश सुरक्षित रखा है। इसमें ‘अदालतों द्वारा वक्फ, वक्फ बाई यूजर या वक्फ बाई डीड’ घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने की शक्ति भी शामिल है।
तीन दिनों तक इस मुद्दे पर सुनवाई हुई और कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता और सरकार का पक्ष जाना। इस दौरान सीजेआई गवई ने कहा कि रजिस्ट्रेशन की जरूरत 1923 और 1954 के कानूनों में भी रही है।
21 मई को सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी दलीलें रखीं। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जनजातियों की सुरक्षा के लिए प्रावधान बना है, जो अनुसूचित क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाली भूमि पर वक्फ के निर्माण पर रोक लगाती है।
सीजेआई गवई ने जब सॉलिसिटर से इस दलील के बारे में पूछा तो तुषार मेहता ने कहा कि वक्फ का निर्माण अपरिवर्तनीय है। इससे आदिवासी समुदाय के लोगों के अधिकारों पर खराब असर पड़ सकता है। मेहता के मुताबिक “जेपीसी का कहना है कि आदिवासी इस्लाम का पालन कर सकते हैं, लेकिन उनकी अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान है।”
हालाँकि जस्टिस मसीह ने इससे असहमति जाहिर की। उन्होंने कहा “यह सही नहीं लगता। इस्लाम इस्लाम है! धर्म एक ही है।”
इसपर तुषार मेहता ने कहा कि कि अगर ऐसा है तो अधिनियम पर रोक लगाने का कोई आधार नहीं दिख रहा है। सॉलिसिटर जनरल ने कहा, “वक्फ केवल दान है, और इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।” इसका कपिल सिब्बल ने कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा कि वक्फ ईश्वर का समर्पण है परलोक के लिए। ये केवल समुदाय के लिए दान नहीं बल्कि ईश्वर के लिए समर्पण है। इसका मकसद अपनी खुशी है। इस पर सीजेआई गवई ने कहा कि हिन्दुओं में मोक्ष की अवधारणा है वहीं जस्टिस मसीह ने कहा कि ईसाई धर्म में भी स्वर्ग की आकांक्षा है।
इससे पहले दलील देते हुए राजीव धवन ने कहा कि वेदों के मुताबिक हिन्दू धर्म में मंदिर अनिवार्य अंग नहीं है बल्कि प्रकृति की पूजा करने का प्रावधान है जैसे पृथ्वी, जल, वायु, समुद्र, आकाश, सूर्य आदि।
गैर मुस्लिमों द्वारा वक्फ बनाने पर रोक को लेकर भी एसजी मेहता ने दलीलें दी। उन्होंने कहा कि केवल 2013 के संशोधन में गैर मुस्लिमों को ऐसे अधिकार दिए गये थे। 1923 के कानून में इसकी मंजूरी नहीं है क्योंकि इसका इस्तेमाल धोखा देने के लिए किया जा सकता है। उन्होंने कहा, ” किसी भी मामले में गैर-मुस्लिम वक्फ को दान कर सकते हैं। अगर मैं हिंदू हूँ तो मैं वक्फ को दान कर सकता हूँ। अगर मैं हिंदू हूँ और वास्तव में वक्फ बनाना चाहता हूं तो मैं ट्रस्ट बना सकता हूँ।”
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि पहले जब वक्फ अधिनियम 1995 को चुनौती देनेवाली याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट में दायर की जाती थी तो उन्हें हाईकोर्ट भेजा जाता था। 2025 के संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं को लेकर भी ऐसा ही होना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रावधान ‘अत्यधिक असंवैधानिक’ नहीं है, जिसे अंतिम चरण में रोक लगाई जा सके।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल, राजीव धवन और अभिषेक मनु सिंघवी ने अपनी दलीलें रखीं। कपिल सिब्बल ने कहा कि अधिनियम की धारा 3सी का प्रावधान सरकार को केवल राजस्व प्रविष्टियों को बदलने का अधिकार देता है और इससे वक्फ संपत्ति का मालिकाना हक या कब्जा पर असर नहीं पड़ेगा। सिब्बल ने कहा कि प्रावधानों की भाषा साफ है कि संपत्ति को तब तक वक्फ नहीं माना जा सकता जब तक कि सरकारी अधिकारी इस बात की पुष्टि नहीं करता कि सरकारी संपत्ति पर अतिक्रमण हुआ है या नहीं। उन्होंने कहा कि जब कानून की भाषा ऐसी है तो न तो सरकार के हलफनामे से और न ही सॉलिसिटर के समझाने से इसका अर्थ बदलेगा। उन्होने कहा कि प्रावधान का असर ये है कि विवाद की स्थिति में वक्फ बाय यूजर संपत्तियों की मान्यता रद्द की जा सकती है।
अपना तर्क देते हुए सीनियर एडवोकेट राजीव धवन के कहा कि वक्फ जरूरी धार्मिक प्रथा नहीं है। ये जेपीसी की रिपोर्ट के विपरीत है। उन्होने कहा कि दान इस्लामी आस्था का अहम हिस्सा है।
वहीं सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि संशोधित धारा 36 (1) के मुताबिक अधिनियम वक्फ बाय यूजर को अब समाप्त कर दिया गया है ऐसे में इसको रजिस्टर्ड कैसे किया जा सकता है? सिंघवी ने कहा कि ऐसा कोई अधिनियम नहीं है जिसमें ये शर्त रखा गया हो कि मुस्लिम को 5 साल तक धर्म का पालन करना ही चाहिए