
आज जब हमारे वायुसेना प्रमुख एयर चीफ माशर्ल अमर प्रीत सिंह जैसे शीषर्स्थ सैन्य अधिकारी सार्वजनिक मंच से इस बात को लेकर चिंता जताते हैं कि देश की प्रतिभाएँ बड़ी संख्या में विदेश पलायन कर रही हैं, तो यह केवल एक सैन्य अधिकारी की नाराज़गी नहीं होती, यह भारत की सामूहिक विफलता का उद्घोष होता है, और यह चिंता, यह चेतावनी तब और अधिक प्रासंगिक हो जाती है जब देश की सीमाएँ लगातार खतरे में हों, और हमारे देश की आंतिरक व्यवस्थाएँ भ्रष्टाचार, आरक्षण और वोट बैंक पॉलिटिक्स के दबाव में।
प्रतिभा का पलायन: भारत का अनदेखा रक्तस्राव
हमारे देश में आरक्षण की वजह से हर वर्ष लाखों होनहार और प्रतिभाशाली छात्र-छात्राएँ उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका, कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी जैसे देशों का रुख करते हैं। वे वहीं शिक्षा अर्जित करते है और फिर वहीं बस जाते हैं, वहीं शोध करते हैं, वहीं के रक्षा और टेक्नोलॉजी सिस्टम को मज़बूत करते हैं। ये हमारे भारतीय वैज्ञानिक, इंजीनियर, डॉक्टर्स, तकनीकी विशेषज्ञ होते हैं, जिन्हें भारत की प्रगति की धुरी होना था, लेकिन वे आज Silicon Valley, MIT, NASA और अमेरिकी डिफेंस इंडस्ट्री के मज़बूत स्तंभ बने हुए हैं।
इस समय दुनिया भर में लगभग 15,000 भारतीय मूल के लोग ऐसे हैं जो विदेशों में अपनी कंपनियाँ चला रहे हैं और विशेषज्ञों की माने तो लगभग 60% सेंटी-मिलियनर्स और अरबपति भारतीय, अपनी कंपनियाँ ख़ुद शुरू करते हैं।
यह आँकड़े संकेत हैं कि भारत की योग्यता, प्रतिभा और पूंजी सम्मान, उद्यमशीलता और समान अवसर की तलाश में विदेश की ओर पलायन कर रही है, जो कि देश के लिए एक गंभीर चुनौती है। क्या हमने कभी यह सोचने की कोशिश की कि आखिर क्यों कोई युवा, जिसने यहीं जन्म लिया, यहीं से शिक्षा ली, जिसे यहीं की मिट्टी ने आकार दिया, वह अपना पूरा सामर्थ्य किसी अन्य राष्ट्र को क्यों समर्पित करता है?
इस प्रश्न का उत्तर है: प्रणालीगत असमानता और आरक्षण का अनियंत्रित विस्तार
जब योग्यता (Merit) की जगह जाति, वर्ग और वोटबैंक प्राथमिकता बन जाए, तो प्रतिभाशाली छात्रों का हताश होना स्वाभाविक है। एक सामान्य वर्ग का छात्र, जो कठिन मेहनत कर किसी IIT या मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेना चाहता है, उसे एक ही परीक्षा में ‘कई गुना’ अधिक अंक लाने होते हैं सिर्फ़ इसलिए क्योंकि वो ‘सवर्ण’ है। या इसे यूँ कह लीजिए, कि ‘कई गुना’ अंक लाने के बाद भी उसे वो जगह नहीं मिलती जिसका वो सही मायने में हकदार होता है।
क्या ये उस छात्र के शिक्षा के अधिकार का हनन नहीं है? आज तक भारत की किसी सरकार ने यह क्यूँ नहीं सोचा, कि सिर्फ़ सामान्य वर्ग से आने की वजह से हर वर्ष लाखों-करोड़ों सामान्य वर्ग के छात्रों से उनका शिक्षा का अधिकार छीना जा रहा है? बचपन से ही उन्हें यह एहसास करा दिया जाता है कि यह देश उनकी प्रतिभा से ज़्यादा उनके “जन्म” को महत्व देता है।
जब रक्षा क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहता…..
अब ज़रा सोचिए, हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं जब भारत हर तरफ़ से सुरक्षा चुनौतियों से घिरा है:
पश्चिमी सीमा पर आतंकववाद के रूप में पाकिस्तान की छद्म युद्धनीत
पूर्वी सीमा पर चीन का आक्रामक विस्तारवाद
बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं की अवैध घुसपैठ
आंतरिक सुरक्षा पर उग्रवाद और कट्टरपंथी विचारधारा का बढ़ता प्रभाव
ऐसी चिंताजनक और चुनौतिपूर्ण स्थिति में क्या हम अपने रक्षा संस्थानों, DRDO, HAL, ISRO या सेनाबलों केवल औसत दर्जे की क्षमताओं के आधार पर चयन कर सकते हैं? कठिन परिस्थितियों एवं युद्ध के समय में हम अपनी सीमाओं की रक्षा ‘आरक्षण कोटा’ से करेंगे या ‘कौशल’ से?
एयर चीफ़ का यह बयान, कि HAL जैसी संस्थाएँ डिलीवरी समय पर नहीं दे पा रही हैं और तेजस जैसी परियोजनाएँ सालों से अधर में लटकी हैं, एक साफ़ इशारा है कि हम प्रणालियों में योग्यता की बजाय औपचारिकता को बढ़ावा दे रहे हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण संस्थानों में ऐसी औपचारिकताओं को तभी बढ़ावा मिलता है जब कई योग्य प्रतिभाएँ पीछे छूट जाती हैं।
हम विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश हैं, और बढ़ती जनसंख्या का सीधा अर्थ होता है – घटती गुणवत्ता। मैं मानता हूँ कि सीमित संसाधनों और अवसरों को सभी में बाँटना एक चुनौती की स्थिति पैदा है, लेकिन यदि देश के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग व मेडिकल संस्थानों में चल रही आरक्षण प्रणाली और कई दूसरे अन्य क्षेत्रों में लागू वर्तमान आरक्षण व्यवस्था को ले कर कार्य नहीं किया गया, तो ये कुल मिलाकर भविष्य में देश की गुणवत्ता ही गिराएगी।
Inclusive बनने और दिखने के चक्कर में भारत मात्र Inclusive बन के ही रह गया है। भारत को अब Competitive भी बनना होगा। भारत का सर्वांगीण विकास तब तक अधूरा रहेगा जब तक उसमें सर्वश्रेष्ठ लोगों की सम्पूर्ण भागीदारी नहीं होगी।राष्ट्र निर्माण में ‘मेरिट’ की केंद्रीय भूमिका ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने भारत को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प लिया है। ये संकल्प सिर्फ़ प्रधानमंत्री मोदी का ही नहीं बल्कि सभी 145 करोड़ भारतीयों का संकल्प है। परंतु इसके लिए हमें रक्षा, विज्ञान, शिक्षा, प्रशासन जैसे हर क्षेत्र में श्रेष्ठता चाहिए। इस श्रेष्ठता का मूल है- मेरिट। यदि हम अपनी प्रतिभाओं को सहेज नहीं सके, तो हम आत्मनिर्भर भारत, डिजिटल इंडिया या मेक इन इंडिया जैसे अभियानों को केवल नारे बनाकर छोड़ देंगे। मेरिट का मतलब यह नहीं कि समाज के वंचित वर्गों की अनदेखी की जाए। लेकिन, यह भी अति आवश्यक है कि समान अवसर सबको मिलें, न कि समान परिणाम।
एक निष्पक्ष प्रतियोगिता हो, जिसमें जो बेहतर हो, वही आगे बढ़े, जाति, धर्म, आर्थिक या पारिवारिक पृष्ठभूमि के आधार पर नहीं, बल्कि कौशल, योग्यता और चरित्र के आधार पर हमारे रक्षा प्रमुख एयर चीफ मार्शल ए०पी० सिंह की चिंता, एक राष्ट्रवादी और ज़िम्मेदार नागरिक की अंतरात्मा की आवाज़ है। अब वक्त आ गया है कि हम राष्ट्र की आवश्यकताओं को वोटबैंक की राजनीति से ऊपर रखें। हमें अब अपने युवाओं को यहीं अवसर देना होगा, उनकी प्रतिभा को यहीं सम्मान देना होगा। अगर हम ऐसा नहीं कर पाए, तो हम सिर्फ़ प्रतिभा नहीं खोएँगे – हम अपना भविष्य खो देंगे।