
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने नाबालिग बच्चे के साथ यौन उत्पीड़न के आरोपी पिता को बरी करने के निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा है। कोर्ट का कहना है कि पत्नी ने पति को फँसाने के लिए बेटी का इस्तेमाल किया। पति पर पॉक्सो एक्ट के तहत केस दर्ज था
न्यायमूर्ति श्रीनिवास हरीश कुमार और न्यायमूर्ति के एस हेमलेखा की खंडपीठ ने मामले में शिकायतकर्ता सुजा जोन्स मजूरियर की अपील को खारिज करते हुए कहा, ” शिकायतकर्ता ने 13.06.2012 को कथित घटना से पहले विभिन्न एनजीओ, डॉक्टरों और कानूनी पेशेवरों से मुलाकात की थी, अगले दिन यानी 14.06.2012 को उसने शिकायत दर्ज करवाई। इससे रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाता है। यह समय बताता है कि वह उस दिन सिर्फ मामला बनाने की तैयारी कर रही थी।”
शिकायत में कहा गया है कि आरोपित पिता पास्कल माजुरियर ने अप्रैल, 2010 में अपने नाबालिग बेटी का यौन उत्पीड़न किया। इसके बाद फिर मई, 2012 के आखिरी सप्ताह और 13 जून, 2012 को यौन उत्पीड़न किया। उस समय बच्चे की उम्र 3 साल 10 महीने थी। लेकिन शिकायतकर्ता अपने आरोप को साबित करने के लिए सबूत नहीं दे पाया। इसके आधार पर ट्रायल कोर्ट ने आरोपित पिता को बरी कर दिया।
कोर्ट का मानना है कि ये मामला पति और पत्नी के बीच गलतफहमी की वजह से पैदा हुआ है। इसके अलावा पत्नी ने पति को देश छोड़ने से रोकने के लिए बेटी का इस्तेमाल किया था।
ट्रायल कोर्ट ने माना कि उसने शिकायत दर्ज करने से पहले ही सबूत जमा करना शुरू कर दिया था। पूरे मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य के मूल्यांकन के आधार पर अदालत ने माना कि अभियोजन पक्ष अपने आरोप साबित करने में विफल रहा। इसके बाद आरोपी को बरी कर दिया गया।
बरी करने के आदेश को चुनौती देते हुए पत्नी ने कर्नाटक हाईकोर्ट का रुख किया। शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि चूँकि संदिग्ध उसका पति था यानी पीड़िता का पिता, इसलिए शिकायतकर्ता के लिए सावधानी से काम करना जरूरी था। पुलिस से तुरंत संपर्क करने से पहले उसका आवश्यक कदम उठाना जरूरी था। शिकायतकर्ता के मुताबिक मेडिकल सबूत का मूल्यांकन सही से नहीं किया गया।
इसके जवाब में आरोपित पति के वकील ने कहा कि पति और पत्नी के बीच संबंध अच्छे नहीं थे। शादी टूटने के कगार पर थी, इसलिए दूसरे सबूतों और गवाहों पर भी गौर किया जाना चाहिए।वकील ने कहा कि पहली सूचना रिपोर्ट झूठी थी । नौकरानी गीता के बयान की जाँच नहीं की गई, ये एक बहुत बड़ी भूल थी।
कोर्ट ने दोनों तरफ की दलीलों को सुनने के बाद कहा कि अभियोजन पक्ष ने स्वतंत्र गवाह गीता से पूछताछ नहीं की और कोर्ट में उसे पेश भी नहीं किया गया। मेडिकल रिपोर्ट भी आरोप का समर्थन नहीं करते हैं और साक्ष्य में कई विसंगतियाँ मौजूद हैं। इसलिए आरोपित को बरी किया जाता है।