कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर बैन लगाने की बात कही है। खरगे ने इसके लिए देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल का हवाला दिया है। उनका कहना था कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, सरदार पटेल के विचारों का सम्मान करते हैं तो संघ पर बैन लगा देना चाहिए।
खरगे ने अपने बयान में 18 जुलाई 1948 के सरदार पटेल के एक लेटर का भी हवाला दिया है जो उन्होंने श्यामा प्रसाद मुखर्जी (तब हिंदू महासभा के नेता) को लिखा था। इस पत्र में महात्मा गाँधी की हत्या के लिए बने माहौल को RSS से जोड़कर देखा गया था। खरगे के दावे और इस पत्र से आगे भी संघ और पटेल के रिश्तों की कहानी है जिसे कॉन्ग्रेस अध्यक्ष छिपाना चाहते हैं।
गाँधी हत्या और संघ पर बैन की कहानी
1925 में बने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर आजाद भारत में 3 बार प्रतिबंध लगाया गया है और ऐसा तीनों ही बार कॉन्ग्रेस की सरकारों ने किया है। हालाँकि, इसमें सबमें अहम तथ्य यह है कि हर बैन के बाद संघ और मजबूती के साथ वापस लौटा है। हर बार सरकार को संघ से प्रतिबंध हटाना पड़ा है।
संघ पर बैन के रूप में पहली मुसीबत आजादी के कुछ ही महीनों बाद 1948 में ही आ गई थी। 30 जनवरी 1948 को दिल्ली में नाथूराम गोडसे ने महात्मा गाँधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। RSS की वेबसाइट के मुताबिक, संघ ने इस दुखद घटना पर अपनी गहरी संवेदना जताई लेकिन हालात जल्द ही उसके खिलाफ मुड़ गए। 1 फरवरी को संघ के सरसंघचालक श्री गुरुजी (माधव सदाशिव गोलवलकर) को नागपुर में गिरफ्तार कर लिया गया।
जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली तत्कालीन कॉन्ग्रेस सरकार ने संघ पर गाँधीजी की हत्या का आरोप लगा दिया। इसके बाद 4 फरवरी को संघ पर बैन लगा दिया गया और करीब 17,000 स्वयंसेवकों को जेल में डाल दिया गया। हालात इतने खराब हो गए कि 5 फरवरी को गुरुजी ने खुद ही सभी शाखाएँ बंद करने की घोषणा कर दी। जिस समय संघ पर प्रतिबंध लगाया गया था उस समय देश के गृह मंत्री सरदार पटेल ही थे।
कुछ महीनों तक सरकार और संघ के बीच बातचीत चलती रही लेकिन जब कोई रास्ता नहीं निकला तो दिसंबर में स्वयंसेवकों ने सत्याग्रह शुरू किया। 9 दिसंबर 1948 को देशभर में हजारों स्वयंसेवक सड़कों पर उतरे और शांतिपूर्ण तरीके से सरकार से माँग की कि संघ पर लगा प्रतिबंध हटाया जाए।
अगले साल यानी 1949 में संघ ने अपना एक लिखित संविधान तैयार किया। धीरे-धीरे सरकार को भी अपनी गलती का अहसास हुआ, गाँधी जी की हत्या में संघ के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले थे और फिर 12 जुलाई 1949 को संघ से बैन हटा लिया गया। RSS की वेबसाइट के मुताबिक, यह बैन बिना किसी शर्त के हटाया गया था।
अगले ही दिन, यानी 13 जुलाई को गुरुजी जेल से रिहा हुए। उनकी रिहाई के बाद पूरे भारत में जैसे खुशी की लहर दौड़ गई। जहाँ-जहाँ वे गए, वहाँ लोगों ने उनका दिल खोलकर स्वागत किया।
गाँधी हत्या में शामिल नहीं RSS: नेहरू को पटेल का पत्र
RSS को गाँधी की हत्या से जोड़कर बेशकर उस पर बैन लगा दिया गया था लेकिन एक महीने से पहले-पहले ही सरदार पटेल को यह समझ आ गया था कि गाँधी की हत्या में संघ का कोई लेना-देना नहीं हैं। रतन शारदा ने अपनी किताब ‘RSS 360: Demystifying Rashtriya Swayamsevak Sangh’ में पटेल और नेहरू के बीच हुए एक पत्राचार का हवाला दिया है।
पटेल ने 27 फरवरी 1948 को नेहरू को एक लंबा पत्र लिखा था। शारदा ने लिखा, “उस दस्तावेज़ के कुछ हिस्से इस प्रकार हैं ‘जो भी सूचनाएँ हमें मिलीं चाहे वे सही हों या गलत, नाम वाले हों या गुमनाम, सबकी अच्छी तरह जाँच की गई। इन में से 90% बातें झूठी और अटकलों पर आधारित निकलीं। अधिकतर आरोप RSS पर लगाए गए थे कि उन्होंने मिठाइयाँ बाँटीं या हत्या पर खुशी मनाई। लेकिन जाँच में ये सारे आरोप गलत पाए गए’।”
इस पत्र में पटेल ने आगे लिखा, “बापूजी की नीतियों और विचारों के विरोधी, जिनमें कई लोग हिंदू महासभा और RSS से जुड़े थे, उन्होंने इस हत्या का स्वागत जरूर किया था। लेकिन इसके अलावा, मौजूद सबूतों के आधार पर RSS या हिंदू महासभा के सदस्यों को इस साजिश से जोड़ने का कोई ठोस कारण नहीं है। RSS कुछ और घटनाओं के लिए जिम्मेदार हो सकता है लेकिन इस हत्या के लिए नहीं।”
पटेल ने इस पत्र में लिखा, “साजिश में शामिल लोगों के इकबालिया बयानों से भी यह साफ़ होता है कि RSS का इस साजिश से कोई लेना-देना नहीं था।”
पटेल का नेहरू को लिखा गया पत्र (साभार: Selected Correspondence Of Sardar Patel 1945-50, Vol. 6)
रतन शारदा लिखते हैं, “यह बात साफ हो जाती है कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री दोनों को ही संघ के बारे में सच्चाई का पता उससे पाँच महीने से ज्यादा समय पहले से था, जब सरसंघचालक उन्हें पत्र लिख रहे थे। कटु सत्य यह है कि उस समय के राजनीतिक नेताओं ने जानबूझकर इस सच्चाई को छिपाया और संघ के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया।”
RSS से प्रतिबंध हटने पर पटेल ने जताई थी खुशी
जिस समय संघ पर प्रतिबंध लगाया गया तो मद्रास प्रेसीडेंसी के एडवोकेट-जनरल रहे थिरुवलंगडु राजू वेंकटराम शास्त्री ने संघ के स्वयंसेवकों पर किए जा रहे पुलिस के अत्याचारों का खुलकर विरोध किया था। बाद में, वह संघ-सरकार के बीच बातचीत के लिए मध्यस्थ जैसी भूमिका में आ गए थे। उन्होंने गृह मंत्रालय में सरदार पटेल और जेल में बंद गुरुजी ने कई मुलाकातें की थीं।
RSS से प्रतिबंध हटाए जाने के कुछ ही दिनों बाद 16 जुलाई 1949 को सरदार पटेल ने वेंकटराम शास्त्री को पत्र लिखा था। इसमें पटेल ने लिखा था, “मैं खुद जल्द से जल्द (RSS से) प्रतिबंध हटाने के लिए उत्सुक था। मैंने अतीत में आरएसएस को सलाह दी है कि अगर उन्हें लगता है कि कॉन्ग्रेस गलत रास्ते पर जा रही है, तो उनके लिए एकमात्र रास्ता कॉन्ग्रेस में भीतर से सुधार करना है।”
संघ से जुड़ी ऑर्गनाइजर पत्रिका में छपे एक लेख के मुताबिक, संघ से प्रतिबंध हटने के बाद सरदार पटेल ने गुरुजी को लिखे एक पत्र में प्रतिबंध हटने पर अपनी खुशी व्यक्त की थी। पटेल ने लिखा था, “केवल मेरे करीबी लोग ही जानते हैं कि संघ पर से प्रतिबंध हटने पर मुझे कितनी खुशी हुई थी। मैं आपको शुभकामनाएँ देता हूँ।”
बिना शर्त हटा था संघ से प्रतिबंध
अक्सर यह भी दावा किया जाता है कि सरकार ने संघ पर शर्तें लगाई थी और उन्हें मानने के बाद ही संघ प्रतिबंध हटा था। लेकिन यह भी पूरी तरह सच नहीं है। मोरेश्वर गणेश तपस्वी ने अपनी किताब ‘राष्ट्राय नम:’ में संघ के बिना किसी शर्त के प्रतिबंध हटने को लेकर अहम दावे किए हैं।
इसमें 14 अक्टूबर 1949 की बंबई विधान सभा की कार्यवाही का एक उल्लेख किया गया है। लल्लूभाई मकानजी पटेल ने गृह एवं राजस्व मंत्री से संघ से प्रतिबंध हटाए जाने को लेकर कर सवाल पूछे जिसमें एक सवाल यह भी था कि क्या संघ से प्रतिबंध सशर्त हटाया गया है या बिना शर्त के। इस पर दिनकरराव एन. देसाई द्वारा जवाब दिया गया कि प्रतिबंध बिना शर्त के उठाया गया था।
‘राष्ट्राय नम:’पुस्तक का एक अंश
इसी पुस्तक में गुरुजी की 22 जुलाई 1949 की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का भी जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया है, “एक प्रेस रिपोर्टर ने पूछा, ‘भूतकाल में जैसा था, उसकी तुलना में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने किन मामलों में आज परिवर्तन किया है?’
इस पर गोलवलकर ने कहा कि ‘उन्होंने अपने मूल सिद्धांतों में से किसीका भी त्याग नहीं किया है। भारत सरकार चाहती थी कि हम अपना संविधान लिखित कर दें। हमने वैसा कर दिया। जनता यदि चाहे तो इसे स्पष्टीकरण कह सकती है’।” साथ ही, पुस्तक में 1 अगस्त 1949 को ‘हितवाद’ में प्रकाशित रिपोर्ट के आधार पर कहा गया है कि गुरुजी ने खुद ही कोई समझौता ना होने का दावा किया था।
अब खरगे ने एक पत्र का हवाला देकर संघ पर प्रतिबंध लगाने की वकालत तो कर दी लेकिन पूरी सच्चाई वो शायद ना जानते हों या जानते हुए भी छिपाने की कोशिश कर रहे थे। वे ये भी भूल गए है कि ये वही स्वयंसेवक संघ है जिसके स्वयंसेवकों को जवाहरलाल नेहरू ने 1963 में गणतंत्र दिवस पर लाल किले की परेड में हिस्सा लेने के लिए बुलाया था।
क्योंकि इन स्वयंसेवकों ने 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध के दौरान सैनिकों के कंधे से कंधा मिलाकर काम किया था। यहाँ तक कि बंकरों में सैनिकों को मदद पहुँचाई। जिसे नेहरू तक प्रभावित हुए थे। देश में बाहरी हमलों के संकट से लेकर हर आपदा तक संघ के स्वयंसेवक राष्ट्र सेवा में जुटे रहते हैं और खरगे उन पर ही प्रतिबंध लगाना चाहते हैं।
गणतंत्र दिवस परेड में RSS के स्वयंसेवक (फोटो साभार: आर्गेनाइजर)
खरगे का ताजा बयान ना इतिहास की सच्चाई पर टिका है और न ही तथ्यों की बुनियाद पर। जिन पटेल का वो हवाला दे रहे हैं उनका खुद कॉन्ग्रेस ने कितना सम्मान किया था, ये अगर कोई खरगे को याद दिलाएगा तो उन्हें अपनी पार्टी की सच्चाई का पता चलेगा।
पहले भी संघ पर प्रतिबंध की कोशिशें की गईं लेकिन वे खुद आज हाशिए पर हैं जिन्होंने संघ को समाप्त करने की सोची थी। वहीं, संघ गर्व से अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है और देश सेवा के नए प्रण के साथ लोगों के बीच जा रहा है।







