पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान और कॉन्ग्रेस नेता मोहम्मद अजहरुद्दीन ने तेलंगाना सरकार में शुक्रवार (31 अक्टूबर 2025) को राजभवन में एक सादे समारोह में मंत्री पद की शपथ ले ली। राज्यपाल तमलिसाई सौंदरराजन ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। इस मौके पर मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी समेत कई बड़े नेता मौजूद थे। अजहरुद्दीन के शामिल होने से कैबिनेट की संख्या 16 हो गई है, जबकि दो पद अभी खाली हैं। तेलंगाना में कुल 18 मंत्री हो सकते हैं।
मोहम्मद अजहरुद्दीन ने शपथ ग्रहण के बाद कहा, “मैं बेहद खुश हूँ और पार्टी नेतृत्व तथा अपने समर्थकों का दिल से आभार व्यक्त करता हूँ।”
VIDEO | Hyderabad: Congress leader and former Indian cricket team captain Mohammad Azharuddin was sworn in as a minister in Telangana Chief Minister A. Revanth Reddy’s cabinet. Speaking to PTI, he says, “I feel great. My debut was on December 31, and on October 31 I became a… pic.twitter.com/IPqIVkusLi— Press Trust of India (@PTI_News) October 31, 2025
ये नियुक्ति कॉन्ग्रेस की एक बड़ी राजनीतिक चाल मानी जा रही है, खासकर जुबली हिल्स विधानसभा उपचुनाव से पहले। यहाँ एक लाख से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं, जो चुनाव का फैसला कर सकते हैं। लेकिन अजहरुद्दीन का ये नया रोल उनके पुराने विवादों को फिर से सुर्खियों में ला रहा है। मैच फिक्सिंग से लेकर देशद्रोह के आरोप तक, उनका सफर हमेशा से विवादों से भरा रहा है। क्या ये कॉन्ग्रेस का मुस्लिम तुष्टिकरण है?
अजहरुद्दीन का राजनीतिक सफर ज्यादा पुराना नहीं है, लेकिन क्रिकेट के मैदान से मैदान-ए-राजनीति तक उनका रुख तेज रहा। 2009 में उन्होंने कॉन्ग्रेस जॉइन की और उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से लोकसभा चुनाव लड़ा। वो वहाँ से सांसद भी बने। मुरादाबाद मुस्लिम बहुल इलाका है, और अजहरुद्दीन की लोकप्रियता ने कॉन्ग्रेस को वहाँ मजबूत वोटबैंक दिया। लेकिन 2014 में राजस्थान के टोंक-सवाई माधोपुर से चुनाव लड़ा, तो हार गए। फिर 2018 में तेलंगाना कॉन्ग्रेस के वर्किंग प्रेसिडेंट बने।
साल 2023 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव में जुबली हिल्स सीट से लड़े, लेकिन बीआरएस के उम्मीदवार से हार गए। अब उसी सीट पर उपचुनाव है, जो बीआरएस विधायक मगंती गोपीनाथ की जून में दिल का दौरा से मौत के बाद जरूरी हो गया।
कॉन्ग्रेस ने अजहरुद्दीन को अगस्त में राज्यपाल कोटे से विधान परिषद (एमएलसी) नामित किया, लेकिन राज्यपाल ने अभी मँजूरी नहीं दी। फिर भी उपचुनाव से पहले ही उन्हें मंत्री बना दिया गया। कॉन्ग्रेस सूत्र बताते हैं कि पार्टी हाईकमान ने ये फैसला लिया, क्योंकि कैबिनेट में कोई मुस्लिम या अल्पसंख्यक प्रतिनिधि नहीं था।
मुस्लिम वोटबैंक की पॉलिटिक्स कर रही कॉन्ग्रेस
कॉन्ग्रेस के इस कदम को कई लोग मुस्लिम तुष्टिकरण बता रहे हैं। बीजेपी ने तो इसे खुलकर ‘वोटबैंक पॉलिटिक्स‘ कहा है। केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी ने टिप्पणी की कि अजहरुद्दीन से जुड़े मामलों ने देश की इमेज को नुकसान पहुँचाया है। बीजेपी अध्यक्ष रामचंदर राव ने इसे ‘तुष्टिकरण’ कहा और बोले कि उपचुनाव के ठीक पहले ऐसा फैसला वोट खरीदने जैसा है। क्योंकि जुबली हिल्स में मुस्लिम वोटर निर्णायक हैं। कॉन्ग्रेस को लगता है कि अजहरुद्दीन की साख से अल्पसंख्यक नाराजगी दूर हो जाएगी।
कभी चमकदार था करियर, फिर फिक्सिंग ले डूबा
अब बात अजहरुद्दीन के कभी चमकदार रहे क्रिकेट करियर की, जिसे विवादों ने फीका कर दिया। साल 1984 में इंग्लैंड के खिलाफ डेब्यू टेस्ट में 110 रन बनाकर धमाल मचा दिया। अगले दो टेस्ट में भी शतक ठोके। 99 टेस्ट और 334 वनडे खेले, 22 टेस्ट शतक लगाए। कप्तान बने, 1990-91 और 1995 एशिया कप जिताया। लेकिन 2000 में मैच फिक्सिंग स्कैंडल ने सब बर्बाद कर दिया।
अजहरुद्दीन ने कराई थी बुकियों से मुलाकात
साउथ अफ्रीका के कप्तान हैंसी क्रॉन्जे ने खुलासा किया कि अजहरुद्दीन ने उन्हें बुकियों से मिलवाया। सीबीआई ने जाँच की, जिसमें अजहरुद्दीन का नाम आया। उन्होंने कथित तौर पर तीन वनडे फिक्स करने कबूला- 1996 में राजकोट में साउथ अफ्रीका के खिलाफ, 1997 में श्रीलंका और 1999 में पाकिस्तान के खिलाफ। बीसीसीआई ने नवंबर 2000 में उन्हें आजीवन बैन कर दिया। अजय जडेजा और मनोज प्रभाकर पर भी 5-5 साल का बैन लगा था।
इस स्कैंडल ने भारतीय क्रिकेट को हिला दिया। बुकियों से नेक्सस, पिच रिपोर्ट बेचना, मैच का रिजल्ट पहले बता देना – सब सामने आया। अजहरुद्दीन ने कोर्ट का रुख किया। हैदराबाद कोर्ट ने बैन बरकरार रखा, लेकिन आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने 2012 में फैसला उलट दिया। कोर्ट ने कहा कि बीसीसीआई ने बिना पुख्ता सबूत के बैन लगाया। अजहरुद्दीन बेदाग साबित हुए।
बरी होने के बाद भी तमाम विवादों से घिरे रहे अजहरुद्दीन
इसके बाद वो साल 2019 में हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन (एचसीए) के अध्यक्ष बने। लेकिन यहाँ भी विवादों से उनका नाता रहा। कभी बेटे के लिए फेवरिज्म के आरोप, तो कभी क्षेत्रवाद के। फिर साल 2023 में तेलंगाना चुनाव से पहले एचसीए में उन पर भ्रष्टाचार के चार केस दर्ज हुए थे। इसमें फंड मिसयूज, टेंडर घोटाले भी शामिल हैं। फंड मिसयूज का मामला 20 करोड़ का है, जिसमें बीते साल अजहरुद्दीन को ईडी ने पूछताछ बुलाया भी था।
अजहरुद्दीन की मंत्री बनने से तेलंगाना की राजनीति गर्म हो गई। कॉन्ग्रेस को लगता है कि ये अल्पसंख्यकों को मजबूत संदेश देगा। लेकिन विपक्ष इसे वोटबैंक गेम बता रहा। लेकिन सच्चाई ये है कि उपचुनाव नजदीक है और सत्ताधारी कॉन्ग्रेस के लिए मुस्लिम वोटरों का गुस्सा ठंडा करना जरूरी है। हालाँकि ये कितना सफल होता है, ये आने वाले समय में पता चल ही जाएगा।







