अक्सर ऐसे मामले सामने आते हैं जहाँ स्कूलों में मुस्लिम शिक्षकों पर हिंदू छात्रों को योग की कक्षाओं के बहाने नमाज जैसी मुद्राएँ सिखाने के आरोप लगते हैं। अभिभावकों की शिकायत के बाद शिक्षक पकड़े जाते हैं, लेकिन हर बार बचाव में एक ही तर्क दिया जाता है, कि बच्चों से कराया जा रहा आसन तो केवल एक योगासन था।
हाल ही में ऐसा ही एक मामला सामने आया है। मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले के देवहारी गाँव के एक सरकारी स्कूल के शिक्षक जबूर अहमद पर हिंदू छात्रों को योग और सूर्य नमस्कार के दौरान नमाज के आसन सिखाने का गंभीर आरोप लगा। विवाद बढ़ने पर मुस्लिम टीचर को तुरंत सस्पेंड कर दिया गया और जाँच शुरू हो गई है।
आरोपित शिक्षक जबूर अहमद ने अपनी सफाई में कहा कि वह छात्रों को केवल ‘शशांकासन’ सिखा रहा था। उसका यह तर्क है कि इस आसन की मुद्रा नमाज जैसी दिख सकती है, पर यह शुद्ध रूप से योग है। आइए, जानते हैं कि आखिर नमाज और योग की मुद्राओं में क्या अंतर है और क्यों कुछ कट्टरपंथी लोग जानबूझकर इसी ‘भ्रम’ का सहारा लेते हैं?
शशांकासन और नमाज की मुद्रा में स्पष्ट अंतर
आरोपित शिक्षकों द्वारा बार-बार दिए जाने वाले ‘शशांकासन’ के तर्क की जाँच करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि नमाज की मुद्रा और इस योगासन की मुद्रा में कई बुनियादी अंतर हैं, जो किसी भी भ्रम की गुंजाइश को खत्म कर देते हैं। दोनों की प्रक्रिया और मुद्रा-विन्यास में स्पष्ट भिन्नता है।
नमाज की ‘सजदा’ मुद्रा
नमाज पढ़ने की प्रक्रिया में जो मुद्रा सबसे ज्यादा विवादित होती है, वह ‘सजदा’ है, जहाँ नमाजी अपना माथा जमीन पर टेकता है। इस मुद्रा में शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर जोर पड़ता है और उनका विशिष्ट स्थान निर्धारित होता है। सजदे के दौरान, शरीर का संतुलन मुख्य रूप से पाँच बिंदुओं पर बना होता है। दोनों पैर की उंगलियाँ, दोनों घुटने, दोनों हथेलियाँ और माथा।
नमाज अदा करने की मुद्रा
इस मुद्रा में कोहनियों को जमीन से ऊपर उठा हुआ और शरीर से दूर रखा जाता है, ताकि बाँहों का निचला हिस्सा जमीन से न छू सके। वहीं, पैरों की स्थिति भी निर्धारित होती है। पैर की उँगलियाँ मुड़ी हुई होती हैं और जमीन पर लगी रहती हैं, जबकि टखने मुड़े हुए होते हैं और एड़ियाँ जमीन से ऊपर उठी रहती हैं।
शशांकासन (खरगोश मुद्रा)
शशांकासन एक लाभदायक योगासन है। इसका नाम संस्कृत शब्द ‘शशांक’ से आया है, जिसका अर्थ है ‘खरगोश’, क्योंकि इस मुद्रा में शरीर खरगोश जैसी आकृति बना लेता है। यह आसन आंतों के लिए बहुत लाभकारी है और कब्ज को दूर करने में मदद करता है। इसके अलावा, यह अस्थमा-मधुमेह-हृदय रोग में भी फायदेमंद माना जाता है, क्योंकि यह नस-नाड़ियों को शांत करता है।
शशांकासन (खरगोश मुद्रा) की तस्वीर
इस आसन को करने के लिए सबसे पहले पद्मासन (या वज्रासन) में बैठकर रीढ़ की हड्डी को सीधा रखना होता है। फिर दोनों घुटनों को दूर-दूर फैलाया जाता है। इसके बाद, दोनों बाँहें सिर के ऊपर उठाकर, साँस छोड़ते हुए और बाँहें सीधी रखते हुए, कमर से आगे की ओर झुकना होता है। इस मुद्रा में ठोड़ी और बाँहें फर्श पर टिकी होनी चाहिए। कुछ देर रुकने के बाद, साँस लेते हुए धीरे-धीरे वापस शुरुआती अवस्था में आ जाते हैं। इस प्रक्रिया को 3 से 5 बार दोहराया जा सकता है। हाथ और कोहनी की यह स्थिति, नमाज में कोहनी को ऊपर उठाने की आवश्यकता से पूरी तरह अलग है।
पुरानी घटनाएँ भी देती हैं गवाही
यह पहला अवसर नहीं है जब मुस्लिम शिक्षकों या कार्यक्रम आयोजकों पर योग और सूर्य नमस्कार की आड़ में हिंदू छात्रों को नमाज की मुद्राएँ सिखाने के गंभीर आरोप लगे हों। यह पैटर्न बार-बार सामने आया है, जो बताता है कि यह केवल एक स्थानीय भ्रम का मामला नहीं हो सकता।
ऐसी ही एक बड़ी घटना अप्रैल 2025 गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी (GGU) के NSS कैंप में सामने आई थी। वहाँ 155 हिंदू छात्रों ने यूनिवर्सिटी के स्टाफ (7 शिक्षकों और एक छात्र लीडर) पर उन्हें जबरन नमाज पढ़ने के लिए मजबूर करने का गंभीर आरोप लगाया।
छात्रों ने खुलकर दावा किया था कि उन्हें सुबह की ‘योगा क्लास’ में नमाज की मुद्राएँ दोहराने का सीधा आदेश दिया गया था और विरोध करने पर उन्हें अनुशासनात्मक कार्रवाई की धमकी दी गई थी। इस मामले में पुलिस ने कठोरता दिखाते हुए 8 लोगों के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज किया था।
योग का बहाना नहीं, फिर भी स्कूलों में हिंदू छात्रों से जबरन नमाज पढ़वाई
कई मामले ऐसे भी हैं, जहाँ मुस्लिम शिक्षकों पर हिंदू छात्रों को नमाज पढ़ने के लिए मजबूर करने के आरोप लगे हैं, भले ही इसके लिए सीधे तौर पर योग का बहाना न लिया गया हो। एक मामला यूपी के हाथरस से सामने आया था। इस मामले में आरोप लगे थे कि स्कूल में हिंदू छात्रों को कड़क 40 डिग्री तापमान में खड़ा करके उनसे नमाज अदा करवाई गई और उनसे फातिहा (इस्लामी दुआ) पढ़वाई गई।
छात्रों को 40 डिग्री तापमान में खड़ा कर के स्कूल में नमाज़ अदा करवाई गई और फ़ातिहा पढ़वाई गयी।हिन्दू बच्चियों को बुर्का पहनाया गया , सभी से "अल्लाहु अकबर" के नारे लगवाए गए।हाथरस के BLS स्कूल का मामला। pic.twitter.com/MoSNhfHK8o— Panchjanya (@epanchjanya) April 20, 2023
इतना ही नहीं, हिंदू बच्चियों को कथित तौर पर बुर्का पहनाया गया और सभी छात्रों से जबरन ‘अल्ला-हु-अकबर’ के नारे भी लगवाए गए। इन गंभीर आरोपों के सामने आने के बाद इलाके में भारी विरोध प्रदर्शन हुआ था।
इसके अलावा, गुजरात के कर्णावती स्थित केलोरेक्स फ्यूचर स्कूल पर हिंदू अभिभावकों ने अपने बच्चों को नमाज पढ़ाने का आरोप लगाया था। मामला सामने आने पर हड़कंप मच गया और गुजरात सरकार ने तुरंत जाँच के आदेश दिए। सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए सख्त कदम उठाए कि किसी भी स्कूल में बच्चों पर जबरन कोई धार्मिक गतिविधि न थोपी जाए।
ये मामले बुरहानपुर के ‘शशांकासन’ विवाद से अलग हैं, लेकिन ये सभी इस बात को रेखांकित करते हैं कि स्कूलों में हिंदू छात्रों को इस्लामी तौर-तरीके सिखाने की शिकायतें अब एक पैटर्न बन चुकी हैं, जिस पर सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है।
‘गलतफहमी’ या बहाना?
शशांकासन और नमाज की मुद्रा की तुलना करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि दोनों में बुनियादी शारीरिक और प्रक्रियात्मक अंतर मौजूद हैं। खास तौर पर, शरीर के वजन का वितरण, कोहनी और हाथों की स्थिति में कोई समानता नहीं है। शशांकासन में वजन नितंबों पर होता है, जबकि नमाज में यह कई बिंदुओं (हथेली, घुटना, पैर की उंगलियाँ, माथा) पर बँटा होता है।
यह देखते हुए, आरोपित मुस्लिम शिक्षकों द्वारा बार-बार यह दावा करना कि छात्रों से कराई जा रही मुद्रा केवल एक योग ‘शशांकासन’ थी और यह ‘गलतफहमी’ का नतीजा है, पूरी तरह से संदेह के घेरे में आता है। दोनों मुद्राओं में इतना स्पष्ट अंतर होने के बावजूद, हर बार पकड़े जाने पर एक ही तर्क को दोहराना इस बात की ओर दृढ़ता से इशारा करता है कि यह किसी जानबूझकर दिए गए बहाने से कम नहीं है। यह लगता है कि यह तर्क आरोपों से बचने और अपने कृत्यों को योग जैसे सेक्युलर आवरण में छिपाने के लिए एक तैयार रणनीति का हिस्सा है।







