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गली-गली घूम रहे लव जिहादी, शहर दर शहर पसर रहे ‘मुस्लिम गैंग’: अजमेर से ब्यावर तक हिंदू बच्चियों के शिकार का मॉडल वही, कब जागेंगी एजेंसियाँ

साल 1992 का अजमेर सेक्स स्कैंडल और 2025 में ब्यावर में लड़कियाँ फँसाने पर बवाल। दोनों घटनाओं के बीच 33 साल का वक्त बीता है लेकिन इतने लंबे अंतराल के बावजूद अपराध करने के तरीके में कुछ नहीं बदला है। तब भी, एक समुदाय के निशाने पर हिंदू लड़कियाँ थीं और आज भी वहीं हुआ है। फर्क बस इतना है कि तब मामला खुलने में,अपराधी पकड़ने में समय लगा था, मगर इस बार कार्रवाई भी तेज है और लोग भी इसके प्रति जागरूक है

ब्यावर में हिंदू लड़कियों को फँसाने में 15 लड़के शामिल थे। इन्होंने इंस्टाग्राम के जरिए एक के बाद एक करके 5 स्कूली लड़कियों को अपने निशाने पर ले लिया था। सारी छात्राएँ 10वीं की थीं। इस गिरोह ने उन बच्चियों को पहले झाँसे में फँसाया, फिर होटल बुलाकर उनकी तस्वीरें निकालीं, उनका यौन शोषण किया और बाद में उन्हें धमकाने, उनसे पैसे वसूलने का और धर्मांतरण के लिए मजबूर करने का सिलसिला शुरू हुआ।

अगर एक लड़की अपने घर से पैसे चुराते हुए नहीं पकड़ी जाती और सवाल-जवाब होने पर वो सारी सच्चाई नहीं बताती तो शायद 5 लड़कियों की संख्या बढ़कर 50 होती और फिर 500।

ये आँकड़े बढ़ा-चढ़ाकर या कल्पना करके नहीं कहे जा रहे। अजमेर कांड की पीड़िताओं की गिनती ही इस संख्या तक पहुँचने का आधार हैं। अजमेर कांड के वक्त 100 से ज्यादा लड़कियों का रेप हुआ था और 250 तो ऐसी थीं जिनकी नग्न तस्वीरें जगह-जगह वायरल हुई थी। उस गिरोह में भी एक समुदाय के लोगों की सक्रियता ज्यादा पाई गई थी। पीड़ितों के परिजनों की हालत ये हो गई थी कि परिवार रातोंरात गायब हो रहे थे।

ब्रिटेन में फैला ग्रूमिंग गैंग का कारोबार भी इसी विचारधारा का प्रमाण था। उस गैंग ने तो चुन-चुनकर गैर-इस्लामी लड़कियों को निशाना बनाया था और उन्हें कचरा कहते हुए उनके साथ ऐसी वीभत्सता की थी जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।

ब्यावर में भी शायद स्थिति ऐसी हो जाती अगर समय रहते ये मामला नहीं खुलता और पुलिस तक बात नहीं पहुँचती।

दरअसल छोटी उम्र की लड़कियों को लालच देकर फँसाना हमेशा से ऐसे गिरोहों के लिए आसान रहा है। कारण कई होते हैं। छोटे उम्र में लड़कियाँ नहीं समझ पातीं कि ऐसी स्थिति में फँसने पर उन्हें डील कैसे करना है।

एक बार झाँसे में आने बाद वो उस दलदल में इसलिए और अंदर धँसती जाती हैं क्योंकि उन्हें समाज में बदनामी और परिवार की प्रतिक्रिया दोनों का डर होता है। वे सामाजिक दबाव के कारण, अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पातीं और अकेलेपन का सामना करती हैं। इसी मनोस्थिति का फायदा ये गिरोह उठाता है और लड़कियों को धमकाने, ब्लैकमेल करने, उनका यौन शोषण करना जारी रखता है। बातें अगर खुलती भी हैं तो भी कई बार कई मामलों को लोक-लाज का सोचकर दबाने का काम होता है। मगर इसका असर उन पीड़िताओं पर क्या पड़ता है इस पर कोई विचार नहीं करता।

आज सरकारें ऐसे दरिंदों को सजा देने के लिए कई कानून ला चुकी हैं। धर्मांतरण विरोधी कानून से लेकर लव जिहाद के खिलाफ तक कानून आ चुका है, लेकिन सवाल फिर वही है कि जब ऐसी घृणित मानसिकता के लोग गली-गली में बसे हैं तब इनसे कैसे लड़ा जाएगा। इनका ठिकाना सिर्फ राजस्थान के ब्यावर नहीं, अजमेर से लेकर ब्रिटेन का रॉदरहैम तक है। अजीब बात ये है कि एक तरफ इनका पैटर्न जानने के बावजूद भी लड़कियाँ सचेत नहीं हो रहीं और दूसरी तरफ ये अपना घिनौना खेल सोशल मीडिया के माध्यम से भी खेलने लगे हैं। इनकी बढ़ती रफ्तार देख जरूरत है अब जाँच एजेंसियाँ जागें और समय से पहले इनपर शिकंजा कसा जाए।

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