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वामपंथियों की तारीफ, BJP से सीखने की सलाह: शशि थरूर ने एक ही पॉडकास्ट में कॉन्ग्रेस पर किए कई वार, कहा- जो पार्टी को नहीं पसंद करते वे भी मुझे वोट करते हैं

कॉन्ग्रेस के सीनियर सांसद शशि थरूर (Shashi Tharoor) ने अपनी पार्टी को लेकर बड़ी बात कही है। उन्होंने कहा कि कॉन्ग्रेस (Congress) को सिर्फ अपने पुराने वोटरों के भरोसे नहीं रहना चाहिए, बल्कि नए लोगों को जोड़ना होगा। केरल में लेफ्ट सरकार की तारीफ करने पर पार्टी में उनकी आलोचना हुई थी, लेकिन थरूर ने साफ किया कि वो देश और राज्य के भले के लिए अपनी राय खुलकर रखते हैं। उनका कहना है कि तिरुवनंतपुरम से चार बार सांसद चुने जाने से पता चलता है कि लोग उनकी बात को पसंद करते हैं, भले ही वो कॉन्ग्रेस के खिलाफ वोट देने वाले हों।

शशि थरूर ने एक पॉडकास्ट में ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से बात करते हुए कहा कि कॉन्ग्रेस को 2026 के केरल विधानसभा चुनाव में जीत चाहिए, तो उसे अपनी पहुँच बढ़ानी होगी। थरुर का मानना है कि पार्टी का वोट सिर्फ 19% है, जो सत्ता में आने के लिए काफी नहीं। इसके लिए 26-27% अतिरिक्त वोट चाहिए। उन्होंने कहा, “मेरी बात का असर तिरुवनंतपुरम में दिखता है। यहाँ लोग मुझे वोट देते हैं, चाहे वो कॉन्ग्रेस को पसंद न करें। यही तरीका पार्टी को अपनाना चाहिए।” थरूर ने ये भी बताया कि केरल कॉन्ग्रेस में नेतृत्व की कमी है और कई कार्यकर्ता उनकी बात से सहमत हैं।

कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में से एक शशि थरूर ने कहा कि अगर पार्टी उनकी लोकप्रियता का फायदा उठाना चाहे, तो वो तैयार हैं। लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ, तो उनके पास किताबें लिखने, भाषण देने जैसे दूसरे रास्ते भी हैं। थरूर ने बताया कि सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह जैसे बड़े नेताओं के कहने पर ही वो यूएन की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए थे। वो हमेशा बेबाकी से बोलते हैं, चाहे नरेंद्र मोदी की तारीफ हो या पिनराई विजयन की। उनका कहना है कि अच्छे काम की तारीफ करनी चाहिए, भले ही वो विरोधी पार्टी का हो।

हालाँकि, पार्टी में कुछ लोग इसे पसंद नहीं करते। थरूर ने कहा कि आम लोग उनकी इस सोच को समझते हैं, लेकिन पार्टी के भीतर सवाल उठते हैं। उन्होंने ये भी साफ किया कि वो पार्टी नहीं छोड़ेंगे, पर जरूरत पड़ी तो निर्दलीय रह सकते हैं। साथ ही, कॉन्ग्रेस की संगठन व्यवस्था को मजबूत करने की बात कही, जिसमें बीजेपी उनसे आगे है। कॉन्ग्रेस वर्किंग कमेटी में शामिल होने के बाद भी उन्हें लगता है कि वहाँ फैसले लेने की ताकत कम है।

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