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देश की सुरक्षा के लिए पेगासस का इस्तेमाल करना गलत नहीं: सुप्रीम कोर्ट, रिपोर्ट सार्वजनिक करने से इनकार; कहा- ऐसे मसलों पर सड़क पर नहीं होगी चर्चा

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (29 अप्रैल 2025) को पेगासस जासूसी मामले की सुनवाई के दौरान अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि देश की सुरक्षा के लिए जासूसी सॉफ्टवेयर (स्पाइवेयर) का इस्तेमाल करने में कोई गलती नहीं है, लेकिन इसका निजी व्यक्तियों के खिलाफ दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने इस मामले में कई याचिकाओं पर सुनवाई की, जिसमें आरोप लगाया गया है कि भारत सरकार ने पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल पत्रकारों, जजों, कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों की जासूसी के लिए किया।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान देश की मौजूदा सुरक्षा स्थिति का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसे कठिन समय में सावधानी बरतनी जरूरी है। एक वकील ने जब कहा कि अगर सरकार ने स्पाइवेयर खरीदा है तो उसे इस्तेमाल करने से कोई नहीं रोक सकता, तो जस्टिस सूर्यकांत ने जवाब दिया, “अगर देश इस स्पाइवेयर का इस्तेमाल खतरनाक तत्वों के खिलाफ कर रहा है तो इसमें क्या गलत है? स्पाइवेयर रखने में कोई गलती नहीं है… हम देश की सुरक्षा के साथ समझौता नहीं कर सकते। निजी नागरिक, जिन्हें निजता का अधिकार है, उनकी रक्षा संविधान के तहत होगी… उनकी शिकायतों को हमेशा देखा जा सकता है।”

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पेगासस के कथित दुरुपयोग की जाँच के लिए गठित विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि यह रिपोर्ट देश की सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ी है, इसलिए इसे सड़कों पर चर्चा का विषय नहीं बनाया जा सकता। हालाँकि कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रभावित व्यक्तियों को उनकी स्थिति के बारे में सूचित किया जा सकता है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “हाँ, व्यक्तिगत शंकाओं का समाधान होना चाहिए, लेकिन इसे सड़कों पर चर्चा का दस्तावेज नहीं बनाया जा सकता।”

यह मामला 2021 में उस समय सुर्खियों में आया था, जब न्यूज पोर्टल्स ने खुलासा किया था कि इजरायल की कंपनी एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल भारत में पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, वकीलों, अधिकारियों, एक पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज और अन्य लोगों के मोबाइल फोन में सेंधमारी के लिए किया गया। इन रिपोर्ट्स में एक लिस्ट का जिक्र था, जिसमें संभावित टारगेट्स के फोन नंबर शामिल थे। एमनेस्टी इंटरनेशनल की जाँच में कुछ फोन नंबरों में पेगासस की घुसपैठ के निशान मिले, जबकि कुछ में घुसपैठ की कोशिश के सबूत थे।

इस खुलासे के बाद सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएँ दाखिल हुईं, जिनमें वकील एमएल शर्मा, राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास, हिंदू ग्रुप के निदेशक एन. राम, एशियानेट के संस्थापक शशि कुमार, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, पत्रकार रूपेश कुमार सिंह, इप्सा शताक्षी, परंजॉय गुहा ठाकुरता, एसएनएम आबिदी और प्रेम शंकर झा शामिल हैं। इन याचिकाओं में पेगासस के कथित इस्तेमाल की स्वतंत्र जाँच की माँग की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में इस मामले की जाँच के लिए पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस आरवी रविंद्रन की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय विशेषज्ञ समिति गठित की थी। समिति ने जुलाई 2022 में अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी। रिपोर्ट में कहा गया कि जाँच किए गए 29 मोबाइल फोनों में पेगासस स्पाइवेयर नहीं मिला। हालाँकि 5 डिवाइस में कुछ मालवेयर पाए गए, लेकिन वे पेगासस नहीं थे। समिति ने यह भी बताया कि भारत सरकार ने जाँच में सहयोग नहीं किया।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि अमेरिका की एक जिला अदालत में व्हाट्सएप ने स्वीकार किया है कि पेगासस के जरिए हैकिंग हुई थी। सिब्बल ने कहा, “अब कोर्ट का सबूत है और व्हाट्सएप का सबूत है।” उन्होंने माँग की कि कम से कम समिति की जाँच रिपोर्ट याचिकाकर्ताओं को दी जाए। लेकिन कोर्ट ने कहा, “यह एक ऑब्जेक्टिव प्रश्न-उत्तर प्रकार का हो सकता है। आप पूछ सकते हैं कि क्या मैं इसमें शामिल हूँ। हम हाँ या ना में जवाब दे सकते हैं।”

वकील श्याम दीवान ने मामले की गंभीरता पर जोर देते हुए कहा, “राज्य ने अपने नागरिकों के खिलाफ स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया। यह और भी बुरा है।” उन्होंने कहा कि इसमें पत्रकारों और जजों के खिलाफ इस्तेमाल के सबूत हैं। जवाब में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ऐसी दलीलें किसी और मंशा के साथ दी जा रही हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि ये अभी सिर्फ आरोप हैं और व्यक्तियों को यह जानने का हक है कि क्या वे प्रभावित हैं, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाएगी।

कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 30 जुलाई 2025 को तय की है। सिब्बल को दो हफ्ते में अमेरिकी कोर्ट का फैसला और अन्य दस्तावेज जमा करने की इजाजत दी गई है।

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