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‘ट्रेन के डिब्बे जैसा हो गया है हाल, जो पहले घुस गया दूसरे को घुसने नहीं देना चाहता’: सुप्रीम कोर्ट, जानिए क्यों आरक्षण को बताया ‘रेल यात्रा’ की तरह

देश में आजकल आरक्षण को लेकर ख़ूब बहस चल रही है। कोई आकर सामान्य वर्ग के ग़रीबों को मिल रहे EWS आरक्षण को ‘कैंसर’ बताकर चला जाता है तो कोई चुनावों के दौरान डर दिखाता है कि भाजपा जीत गई तो आरक्षण ख़त्म कर देगी। राजद-सपा जैसे दल और इसके चट्टे-बट्टे 90% आरक्षण की बातें करते हैं। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश सूर्यकांत ने आरक्षण पर दिलचस्प टिप्पणी करते हुए इसकी तुलना रेल यात्रा से की है। भारत में रेलवे यात्रा का सबसे सुगम माध्यम है और प्रतिदिन औसतन ढाई करोड़ लोग इससे यात्रा कर रहे होते हैं।

ट्रेनों में यात्रा करने के लिए टिकट कटाना होता है, अगर आप जनरल में सफर नहीं कर रहे हैं तो आपकी सीट पहले से तय होती है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आरक्षण उस रेल यात्रा की तरह हो गया है, जहाँ कम्पार्टमेंट में पहले से जमे लोग दूसरों को नहीं घुसने देना चाहते हैं। महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय के चुनावों में OBC को आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान उन्होंने ये टिप्पणी की। इस पीठ में जस्टिस NK सिंह भी शामिल थे।

वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने याचिकाकर्ता की तरफ से जिरह करते हुए कहा कि राज्य सरकार द्वारा गठित बाँठिया आयोग ने स्थानीय निकाय के चुनावों में OBC के लिए 27% आरक्षण की सिफारिश ये देखे बिना की थी कि वो राजनीतिक रूप से पिछड़े हैं। उन्होंने कहा कि राजनीतिक पिछड़ापन सामाजिक व शैक्षणिक पिछड़ापन से अलग है, और OBC वर्ग को स्वतः ही राजनीतिक रूप से पिछड़ा नहीं माना जा सकता। इसी पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, कि बात ये है कि हमारे देश में आरक्षण का कारोबार रेलवे की तरह हो गया है, जहाँ पहले से बोगी में जमे लोग किसी और को नहीं घुसने देना चाहते।

उन्होंने कहा कि पूरा खेल यही है और याचिकाकर्ताओं का खेल भी यही है। इसपर टिप्पणी करते हुए गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि बोगियाँ पीछे से भी जोड़ी जा रही हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने आगे कहा, “जब आप समावेशिता का सिद्धांत अपनाते हैं, तो राज्यों को ज़्यादा वर्गों को पहचानना ही पड़ेगा – सामाजिक रूप से पिछड़े, राजनीतिक रूप से पिछड़े, और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग। तो फिर फायदे से उन्हें वंचित क्यों रखा जाए? फायदा सिर्फ़ एक ही ख़ास परिवार या कुछ गिने-चुने समूहों तक ही क्यों सीमित रहे?”

Supreme Court Justice Surya Kant said the reservation system was becoming like a train compartment, where those who had already secured their seats did not want others to enter.#SC #SurajKant #Reservation https://t.co/R3lNoEUNqH— News18 (@CNNnews18) May 6, 2025

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस दौरान मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि महाराष्ट्र में लंबे समय से अटके स्थानीय निकाय के चुनावों को अब आगे सिर्फ़ इसीलिए नहीं टाला जा सकता क्योंकि OBC आरक्षण पर पेंच फँसा हुआ है। अब पीठ ने इस विषय में राज्य सरकार की राय माँगी है और तबतक के लिए सुनवाई स्थगित कर दी गई है। अगस्त 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था, तभी से चुनाव अटके पड़े हैं।

नए आदेश में चुनाव आयोग को 4 हफ्ते के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव को लेकर अधिसूचना जारी करने व OBC के लिए आरक्षण की व्यवस्था जैसे 2022 से पहले थी फ़िलहाल वैसी ही रखने के लिए कहा गया है। साथ ही ये प्रयास करने के लिए कहा गया है कि चुनाव की पूरी प्रक्रिया 4 महीने के भीतर पूर्ण हो जाए। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर वैसी कोई स्थिति बनती है तो इसे आगे बढ़ाने के लिए अनुमति ली जा सकती है।

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