
चीन के पास पृथ्वी के दुर्लभ चुंबकीय तत्वों का भंडार है। अमेरिका के साथ टैरिफ वार के बाद चीन ने इन दुर्लभ तत्वों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसका सबसे बड़ा नुकसान भारत को होने वाली है। भारत में स्थापित ऑटोमोबाइल, सेमीकंडक्टर और अन्य उपकरण निर्माण से जुड़े उद्योगों को इस प्रतिबंध से काफी नुकसान हो सकता है।
अप्रैल 2025 में चीन ने 7 मध्यम से भारी दुर्लभ तत्वों पर सुरक्षा और प्रसार संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद चीन ने निर्यातकों को लाइसेंस लेने की जरूरत बता दी। दुर्लभ मैग्नेट इलेक्ट्रिक और पेट्रोल वाहनों, रक्षा उपकरणों और स्वच्छ ऊर्जा प्रणाली में एक अहम भूमिका निभाते हैं। इनका उपयोग मोटर और स्टीयरिंग सिस्टम, ब्रेक, वाइपर और ऑडियो उपकरणों के निर्माण में किया जाता है।
चीन के प्रतिबंध के कदम ने दुनिया भर में आपूर्ति शृंखला को प्रभावित किया है। खासकर भारत की EV इंडस्ट्री की बात की जाए तो देश पूरी तरह से चीन पर ही पृथ्वी के दुर्लभ चुंबकीय तत्वों के लिए निर्भर करता है। चीन के द्वारा अनिवार्य की गई लाइसेंसिंग प्रक्रिया में महीनों का समय लग सकता है। ऐसे में इनकी आपूर्ति में देरी होगी और वैश्विक उत्पादन श्रृंखला प्रभावित हो सकती है।
क्या हैं दुर्लभ पृथ्वी चुंबक?
दुर्लभ पृथ्वी चुंबक स्थायी चुंबकों का एक प्रकार हैं।जो दुर्लभ पृथ्वी तत्वों जैसे कि नियोडिमियम (Neodymium) और समेरियम-कोबाल्ट (Samarium-Cobalt) के मिश्रधातु से बनाए जाने वाले दुर्लभ पृथ्वी तत्वों से ये बनाए जाते हैं। ये अब तक दुनिया में सबसे मजबूत और स्थायी चुंबक होते हैं और अन्य चुंबकों की तुलना में इनका चुंबकीय क्षेत्र काफी अधिक होता है।
दुर्लभ पृथ्वी चुंबक मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं- नियोडिमियम-आयरन-बोरॉन (NdFeB) और समेरियम-कोबाल्ट (SmCo)। अपनी अनोखी विशेषताओं के कारण इन मैग्नेट्स का उपयोग ऑटोमोबाइल, एयरोस्पेस और सेमीकंडक्टर उद्योग सहित कई क्षेत्रों में व्यापक तौर पर किया जाता है। इस लिहाज से इसकी आपूर्ति में कमी होने से पूरी उत्पादन चेन ब्रभावित हो सकती है।
इस सेक्टर में कैसे हावी है चीन?
दुनिया भर में चीन दुर्लभ पृथ्वी तत्वों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। ये वैश्विक दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की कुल आपूर्ति का 60% और दुर्लभ पृथ्वी चुंबकों की 90% आपूर्ति की हिस्सेदारी रखता है।
ऐसा नहीं है कि पृथ्वी पर कहीं और ये दुर्लभ तत्व नहीं हैं पर चीन के पास इन्हें निकालने के लिए काफी विकसित और विस्तृत क्षमता मौजूद है। इसलिए उसे इन तत्वों के उत्पादन और आपूर्ति में बढ़त मिलती है।
चीन इस क्षेत्र में इसलिए भी हावी है क्योंकि इसने दुर्लभ पृथ्वी तत्वों को निकालने की कठिन प्रक्रिया में महारत हासिल कर ली है। 1980 के दशक से अब तक चीन लगातार अपनी बेतरीन तकनीक से दुर्लभ पृथ्वी तत्वों को निकालने का काम करता आ रहा है। इसके अलावा, कम दरों पर श्रमिक मिलने और पर्यावरणीय नियामकों में ढील से चीन को कम लागत में अधिक मुनाफा कमाने का मौका मिलजाता है।
बिजनेस टाइकून एलन मस्क ने चीन के दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की आपूर्ति पर प्रतिबंध लगाने के फैसले पर कहा,”लोग सोचते हैं कि ‘दुर्लभ’ शब्द जोड़ देने भर से पृथ्वी के ये खनिज भंडार असल में दुर्लभ हैं लोकिन ये झूठ है। ये तत्व हर जगह हैं। लिथियम की तरह ही चीन के पास खनिजों के प्रसंस्करण का भारी उद्योग है, जो कि दूसरे देशों के पास नहीं है।”
China has suspended exports of certain rare earth minerals and magnets to the US and around the world. China is drafting a new regulatory approach to the minerals to prevent them reaching American companies pic.twitter.com/WX8Uh89gkO— unusual_whales (@unusual_whales) April 13, 2025
हाल के कुछ वर्षों से, चीन का दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के बाजार पर प्रभुत्व कम हो रहा है। 2010 में इसका बाजार हिस्सा 98% था, जो अब घटकर लगभग 70% रह गया है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि अन्य देश भी अपने क्षेत्रों में इन तत्वों को निकालने की तकनीक और क्षमता विकसित कर रहे हैं।
स्टैटिस्टा की रिपोर्ट
बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बीच अपनी स्थित को मजबूत बनाए रखने के लिहाज से चीन ने 2023 में दुर्लभ पृथ्वी तत्वों को निकालने की तकनीक के निर्यात पर ही प्रतिबंध लगा दिया।
1950 के दशक से ही अमेरिका दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के निकालने के लिए नई तकनीक विकसित कर रहा है लेकिन इस प्रक्रिया में रेडियोएक्टिव कचरा निकालने के कारणइसका व्यापक उपयोग नहीं कर पा रहा है।
चीन के प्रतिबंध ने भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए कैसे खड़ी की चुनौतियाँ
चीन के प्रतिबंध ने वैश्विक स्तर पर कई उद्योगों को प्रभावित किया है। इनमें ऑटोमोबाइल उद्योग भी शामिल है। जापान, दक्षिण कोरिया और यूरोप के कई प्रमुख निर्माता और डिप्लोमैट्स रुकी हुई निर्यात लाइसेंस प्रक्रिया को फिर से तेजी से पूरा करने के लिए चीन के अधिकारियों से मुलाकात की कोशिश कर रहे हैं।
भारत का ऑटोमोबाइल उद्योग दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा उद्योग है। हालाँकि ये भी चीन के प्रतिबंध के कारण प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर रहा है। बीते दो महीनों से भारत में दुर्लभ पृथ्वी चुंबकों का आयात बंद है। इसके अलावा, लाइसेंस प्रक्रिया के कारण आपूर्ति में भी देरी हो रही है जिसके कारण ऑटोमोबाइल के उत्पादन में परेशानी आ रही है। भारतीय ऑटोमोबाइल निर्माता उत्पादन को जारी रखने के लिए चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
भारत का उभरता हुआ EV सेक्टर चीन के प्रतिबंधों के कारण दुर्लभ पृथ्वी चुम्बकों की कमी से दो -चार हो रहा है। चुंबकों की कमी का सीधा असर इलेक्ट्रिक दोपहिया गाड़ियों के सेक्टर पर इसका सबसे अधिक असर पड़ सकता है।भारत के EV उद्योग में दुर्लभ पृथ्वी चुंबकों की अनुमानित वार्षिक मांग 6,000 से 7,500 टन है। इसके लिए भारत पूरी तरह से चीन पर निर्भर करता है।
इस स्थिति से निपटने के लिए भारत सरकार और ऑटोमोबाइल निर्माता चीनी अधिकारियों से संपर्क कर रहे हैं ताकि रुकी हुई आपूर्ति को एक बार फिर से शुरू करवाया जा सके।
रिपोर्ट्स के अनुसार, सोसाइटी ऑफ इंडिया ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) और ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ACMA) के प्रतिनिधि चीन के अधिकारियों से मिलने की योजना बना रहे हैं। भारत सरकार भी डिप्लोमैटिक चैनल्स के जरिए इस मुद्दे का हल निकालने की कोशिश कर रही है।
कॉन्टिनेंटल ऑटोमोटिव, हिताची एस्टेमो, महले इलेक्ट्रिक ड्राइव्स, वारोक इंजीनियरिंग और फ्लैश इलेक्ट्रॉनिक्स समेत 17 भारतीय ऑटोमोबाइल कंपोनेंट निर्माताओं ने पिछले महीने चीन को आयात के लिए अपने आवेदन भेजे थे।
हालाँकि चीनी वाणिज्य मंत्रालय की मंजूरी अब तक न मिलने के कारण आपूर्ति अभी भी ठप पड़ी है। इनमें से नौ आयात आवेदनों को चीनी दूतावास ने मंजूरी दी है।
इसके अलावा चीन के दुर्लभ पृथ्वी चुंबक उद्योग के लिए नए ट्रैकिंग सिस्टम की शुरुआत के कारण आपूर्ति प्रक्रिया में अभी और देरी होने का अनुमान है। इस प्रणाली को पिछले सप्ताह लागू किया गया था। इसके तहत,उत्पादकों को ट्रेडिंग वॉल्यूम और अपने ग्रहकों के नाम समेत अन्य जानकारी ऑनलाइन मुहैया करवानी पड़ेगी।
(मूल रूप से अंग्रेजी में अदिति द्वारा लिखी गई इस खबर का हिंदी अनुवाद रामांशी ने किया है)