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सुप्रीम कोर्ट ने रोकी जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ जाँच, राज्यसभा से पत्र के बाद फैसला: ‘कठमुल्ला’ बयान देने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज पर राष्ट्रपति-संसद लेंगे निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यसभा की तरफ से मिले एक पत्र के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर कुमार यादव के खिलाफ जाँच को रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट को राज्यसभा सचिवालय से मिली एक चिट्ठी में कहा गया कि यह मामला अब संसद के अधीन है।

इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी जाँच रोक दी। दरअसल राज्यसभा द्वारा भेजे गए पत्र में यह कहा गया था कि इस तरह की किसी भी कार्यवाही के लिए राज्यसभा के सभापति के पास अधिकार है। इसलिए राष्ट्रपति और संसद को ही अब इस मामले में निर्णय लेने का विशेषाधिकार है।

फिर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर अपनी इन-हाउस जाँच रोक दी और कॉलेजियम को इसकी जानकारी दी। पूरा मामला 8 दिसम्बर, 2024 को विश्व हिन्दू परिषद् के विधि प्रकोष्ठ के द्वारा आयोजित कार्यक्रम का है जहाँ उन्होंने मुस्लिमों में कट्टरपंथ और रूढ़िवादिता को लेकर कुछ बातें कही थीं।

जस्टिस यादव ने यूनिफार्म सिविल कोड की वकालत करते हुए मुस्लिम समुदाय में मौज़ूद ट्रिपल तलाक और हलाला की आलोचना भी की। इतना ही नहीं उन्होंने बहुसंख्यक के अनुसार कानून बनाने की बात कही। उन्होंने कहा था, “हिंदुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यक के अनुसार ही देश चलेग। एक से ज्यादा पत्नी रखने, तीन तलाक और हलाला के लिए कोई बहाना नहीं है और अब ये प्रथाएं नहीं चलेंगी।”

विभिन्न राजनीतिक दलों, वरिष्ठ वकीलों, नागरिक संगठनों और कुछ पूर्व न्यायाधीशों ने इस बयान को न्यायिक गरिमा और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ बता दिया। कपिल सिब्बल के नेतृत्व में 55 विपक्षी सांसदों ने राज्यसभा में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव भी दायर किया।

सुप्रीम कोर्ट ने 10 दिसंबर 2024 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से रिपोर्ट माँगी। इसके बाद 17 दिसंबर को तत्कालीन चीफ जस्टिस संजय खन्ना और चार अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों की कॉलेजियम बैठक में जस्टिस यादव को बुलाया गया।

जस्टिस यादव ने अपने ऊपर उठे विवाद को लेकर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिख कर अपना जवाब दिया था। इस पत्र में जस्टिस यादव ने अपने संबोधन को नियमों के अनुसार बताया और इसे न्यायिक मर्यादा का उल्लंघन मानने से साफ इनकार कर दिया।

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