
ब्यूरो चीफ रिपोर्टर / अशोक सागर
गोंडा। नेपाल से तस्करी में नो रूट की बसें सारथी का काम कर रही हैं। देवीपाटन मंडल के दो जिलों से जुड़ी नेपाल की 150 किलोमीटर की खुली सीमा तस्करों के लिए मुफीद साबित हो रही है। इसी सीमा से निर्जन स्थान के रास्ते तस्करी का सामान पहले भारत के सीमावर्ती गांवों में लाकर छिपाते हैं। इसके बाद नो रूट की बसों के जरिए उन्हें गंतव्य तक पहुंचाते हैं। इसके लिए बस चालकों व परिचालकों को ही नहीं नो रूट की बसों के मालिकों को भी मुंहमांगी रकम मिलती है। इससे तस्करी का धंधा सीमा पार से फल-फूल रहा है। जाली परमिट के जरिये नेपाल में पर्यटकों को सैर कराने जाने वाली नो रूट की बसों का तस्कर अपने धंधे में सारथी की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। पहले नेपाल से डली, सुपारी, लौंग व इलायची की तस्करी होती रही है। कैरियर के जरिए नेपाल से इसे लाकर सीमावर्ती गांवों के एकत्र करने के बाद बसों से तय स्थानों पर पहुंचाकर कमाई करते थे। अब तस्करों ने धंधे को बढ़ाने के लिए सोना, नशीले द्रव्य जैसे चरस, स्मैक, हेराेइन के साथ ही मानव तस्करी का विस्तार किया है। कभी खुली सीमा से इसे कैरियर के जरिये पार कराते हैं तो कहीं नो रूट की बसों का इस्तेमाल करते हैं। थैलों व बोरी में छिपाकर बसों में रखते हैं नशीले पदार्थ
तस्कर नशीले पदार्थों को थैलों व प्लास्टिक की बोरी में छिपाकर बसों में किसी सीट के नीचे तो कहीं ड्राइविंग सीट के पास फेंक देते हैं। जिससे उस पर किसी की नजर न पड़े। चेकिंग के दौरान अक्सर जांच टीम भी उस पर ध्यान नहीं देती। इससे तस्करी का माल आसानी से तय स्थानों पर पहुंच जाता है।
अधिक मुनाफे के लिए जारी कराते स्पेशल परमिट
नो रूट की बसों में यह खेल काफी समय से चल रहा है। संचालक कम दिन के परमिट पर दोगुने समय तक बसों का संचालन करके तो मोटी कमाई करते ही हैं, साथ ही तस्करी से भी कमाई करते हैं।
मामले में होगी सख्त कार्रवाई
परिवहन राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार दयाशंकर सिंह ने बताया कि लोगों की सुविधा के लिए स्पेशल परमिट आटो अप्रूवल (ऑनलाइन) कर दिया गया था। नेपाल के लिए जाली परमिट जारी होने की जानकारी है। विभाग ने उसे पकड़ा भी है। जांच चल रही है, जो भी दोषी होगा उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।