
ज्ञान की देवी सरस्वती मां के चित्र,,, और पूर्वांचल के मालवीय स्व पं सूर्य नारायण चतुर्वेदी को याद करते पुष्प हार व पुष्प अर्पित किए
**S R International के M D राकेश चतुर्वेदी
**पुष्प अर्पित कर शिक्षा के मंदिर,मे मां सरस्वती की कृपा हो ***
असिस्टेंट डायरेक्टर मनोज पाडे,व हरिश्चंद्र यादव ने पुष्प अर्पित करते हुए विद्यालय परिवार पर असीम छाया बनी रहे
**S R ,MD ने बसंत पंचमी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा***
*चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण,*
*ता उपर सुल्तान है, चूको मत चौहान.*
*वसंत पंचमी का दिन हमें हिन्द शिरोमणि पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है. उन्होंने विदेशी आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए अफगानिस्तान ले जा कर वहाँ उनकी आंखें फोड़ दीं. पृथ्वीराज का राजकवि चन्द बरदाई पृथ्वीराज से मिलने के लिए काबुल पहुंचा. वहा चंद्रवरदाई ने गौरी को बताया इन्हें शब्दभेदी बाण अर्थात आवाज की दिशा में लक्ष्य को भेदना चलाने में पारंगत हैं, यदि आप चाहें तो इनके शब्दभेदी बाण से लोहे के सात तवे बेधने का प्रदर्शन आप स्वयं भी देख सकते है साम्राज्य के ओहदेदारों को इस कार्यक्रम को देखने हेतु आमंत्रित किया.*
निश्चित तिथि को दरबार लगा और गौरी एक ऊंचे स्थान पर अपने मंत्रियों के साथ बैठ गया. चंद्रवरदाई के निर्देशानुसार लोहे के सात बड़े-बड़े तवे निश्चित दिशा और दूरी पर लगवाए गए, चूँकि पृथ्वीराज अंधे थे, अतः उनको कैद एवं बेड़ियों से आजाद कर लाया गया और उनके हाथों में धनुष बाण दिया गया. इसके बाद चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज के वीर गाथाओं का गुणगान करते हुए बिरूदावली गाई
*चार बांस, चैबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण,*
*ता ऊपर सुल्तान है, चूको मत चौहान **
**इस संदेश से पृथ्वीराज को गौरी की वास्तविक स्थिति का आंकलन हो गया, चंद्रवरदाई ने गौरी से कहा कि पृथ्वीराज आपके बंदी हैं, आदेश दें, तब ही यह आपकी आज्ञा प्राप्त कर अपने शब्द भेदी बाण का प्रदर्शन करेंगे. इस पर ज्यों ही मु गौरी ने *पृथ्वीराज को प्रदर्शन का आदेश दिया, पृथ्वीराज को मु गौरी की दिशा मालूम हो गई और उन्होंने तुरन्त बिना एक पल की भी देरी किये अपने एक ही बाण से गौरी को भेंद. दिया गौरी ऊंचाई से नीचे गिरा और उसके प्राण उड़ निर्जीव हो गया,चारों ओर भगदड़ और हा-हाकार मच गया, इस बीच पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई एक-दूसरे को कटार मार कर अपने प्राण त्याग दिये.
आत्मबलिदान की यह घटना भी 1192 ई. वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी