
सुप्रीम कोर्ट में 20 मई 2025 से वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है। यह कानून 1995 के वक्फ अधिनियम में बदलाव करता है, जो वक्फ संपत्तियों (इस्लामिक कानून के तहत धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए समर्पित संपत्तियों) के प्रबंधन से संबंधित है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भेदभाव करता है और उनकी धार्मिक स्वतंत्रता में दखल देता है। दूसरी ओर केंद्र सरकार का दावा है कि यह संशोधन वक्फ प्रावधानों के दुरुपयोग को रोकने और निजी व सरकारी संपत्तियों पर अतिक्रमण को खत्म करने के लिए लाया गया है। सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह की बेंच ने याचिकाकर्ताओं, केंद्र सरकार और अन्य पक्षों के तर्क सुने।
सुनवाई के पहले दिन याचिकाकर्ताओं की ओर से दी गई दलील
सुप्रीम कोर्ट में मामले में पहले दिन की सुनवाई 20 मई 2025 को सुबह 11:41 बजे शुरू हुई। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने दलीलें दीं, जबकि याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, राजीव धवन, ए.एम. सिंघवी, सी.यू. सिंह और हुजेफा अहमदी ने तर्क रखे। कोर्ट ने पहले तीन मुद्दों पर सुनवाई तय की थी, लेकिन याचिकाकर्ताओं ने कई अन्य बिंदु भी उठाए।
कपिल सिब्बल ने दी ये दलीलें
कपिल सिब्बल ने कहा, “यह कानून वक्फ की सुरक्षा के लिए लाया गया है, लेकिन इसका असली मकसद वक्फ संपत्तियों को हड़पना है। यह कानून इस तरह बनाया गया है कि बिना किसी प्रक्रिया के वक्फ संपत्ति छीनी जा सकती है। कोई सरकारी अधिकारी फैसला करता है और संपत्ति तुरंत वक्फ नहीं रह जाती। कोई भी विवाद खड़ा कर सकता है।”
वक्फ-बाय-यूजर (लंबे समय तक उपयोग से बनी वक्फ संपत्ति) को खत्म करने पर उन्होंने कहा, “वक्फ-बाय-यूजर की अवधारणा को खत्म कर दिया गया है, जिसे बाबरी मस्जिद केस में मान्यता मिली थी। 1925 के कानून में पंजीकरण का प्रावधान था, लेकिन अगर पंजीकरण नहीं हुआ तो संपत्ति वक्फ नहीं रह जाती, यह नया है।”
प्राचीन स्मारकों पर सिब्बल ने तर्क दिया, “अगर कोई संपत्ति प्राचीन स्मारक घोषित हो जाती है, तो वह वक्फ नहीं रहती। इससे धार्मिक अधिकार छिन जाते हैं। यह संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है।”
धारा 3(सी) पर उन्होंने कहा, “धारा 3(सी) के तहत बिना जाँच के संपत्ति वक्फ नहीं रह जाती। कोई ज्यूडिशियल प्रक्रिया नहीं है। वक्फ बनाने वाले को कोर्ट जाना पड़ता है और तब तक संपत्ति का दर्जा बदल जाता है। यह अनुच्छेद 25, 26 और 27 का उल्लंघन है।”
5 साल तक इस्लाम का अभ्यास करने की शर्त पर सिब्बल ने तंज कसते हुए कहा, “मुझे यह साबित करना होगा कि मैं 5 साल से मुस्लिम हूँ। कौन तय करेगा कि मैं मुस्लिम हूँ? अगर मैं मरने से पहले वक्फ बनाना चाहूँ, तो क्या मुझे 5 साल इंतजार करना होगा? यह अपने आप में असंवैधानिक है।”
गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल करने पर सिब्बल ने कहा, “पहले वक्फ बोर्ड में सभी मुस्लिम थे, अब 12 में से 7 गैर-मुस्लिम हो सकते हैं। यह धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप है और अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन करता है।” सिब्बल ने धारा 3(डी) और 3(ई) पर सवाल उठाया, “ये धाराएँ मूल बिल में नहीं थीं और जेपीसी में इन पर चर्चा नहीं हुई। यह प्रक्रियात्मक रूप से गलत है।”
राजीव धवन की दलीलें
राजीव धवन ने कहा, “यह कानून धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है। ब्रिटिश काल में भी वक्फ की परिभाषा नहीं बदली गई। इस बड़े पैमाने पर वक्फ की अवधारणा को खत्म करने की क्या जरूरत थी? यह हर धर्म के लिए खतरा है।” उन्होंने जोड़ा, “यह कानून अनुच्छेद 25, 26 और 29 का उल्लंघन करता है। अनुच्छेद 29 संस्कृति संरक्षण का अधिकार देता है। इसे छीनने से धर्मनिरपेक्ष ढाँचा खत्म हो जाएगा।”
अभिषेक मनु सिंघवी की दलीलें
सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलील पेश करते हुए अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, “यह कानून मुस्लिमों को बार-बार दफ्तरों के चक्कर लगाने के लिए मजबूर करता है। यह आतंक पैदा करने की रेसिपी है।”
वक्फ-बाय-यूजर पर उन्होंने कहा, “वक्फ-बाय-यूजर ज्यादातर गैर-पंजीकृत होते हैं। इसे खत्म करना और 5 साल तक इस्लाम का अभ्यास साबित करने की शर्त केवल मुस्लिमों के लिए है। यह अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है।”
धारा 3(डी) पर सिंघवी ने तर्क दिया, “यह धारा प्राचीन स्मारक अधिनियम को वक्फ कानून पर हावी करती है, जिससे 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के तहत संरक्षित स्मारकों पर भी असर पड़ता है।”
सरकार के दावे का खंडन करते हुए उन्होंने कहा, “सरकार कहती है कि 2013 के बाद वक्फ संपत्तियों में 116% की वृद्धि हुई। यह वृद्धि नहीं, बल्कि डिजिटाइजेशन का नतीजा है।”
इस मामले में वकील चंदर उदय सिंह ने अपनी दलील में कहा, “पहले गैर-पंजीकरण की सजा सिर्फ मुतवल्ली पर जुर्माना था। अब 2025 के कानून में पूरी वक्फ संपत्ति ही खत्म हो जाती है।”
सीनियर एडवोकेट हुजेफा अहमदी की दलीलें
अहमदी ने कहा, “धारा 3(डी) का प्रभाव बहुत गंभीर है। यह पुरानी मस्जिदों को भी प्रभावित करता है। इसे तुरंत रोकना चाहिए।”
5 साल की शर्त पर उन्होंने पूछा, “क्या कोई मुझसे पूछेगा कि मैं 5 बार नमाज पढ़ता हूँ या शराब पीता हूँ? प्रैक्टिसिंग इस्लाम का कोई स्पष्ट सिद्धांत नहीं है।”
धारा 107 और 108 पर अहमदी ने कहा, “ये धाराएँ पुरानी वक्फ संपत्तियों को रेट्रोस्पेक्टिव रूप से खत्म करती हैं। यह अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है।”
केंद्र सरकार की तरह से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रखा पक्ष
तुषार मेहता ने कहा, “कोर्ट ने तीन मुद्दों पर सुनवाई तय की थी, लेकिन याचिकाकर्ता कई अन्य बिंदु उठा रहे हैं। मैं अनुरोध करता हूँ कि सुनवाई इन्हीं तीन मुद्दों तक सीमित रहे।”
उन्होंने जोड़ा, “यह कानून वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने और निजी व सरकारी संपत्तियों पर अतिक्रमण को खत्म करने के लिए है।” साथ ही उन्होंने जोड़ा कि वक्फ इस्लाम के पालन की आवश्यक शर्त नहीं है।
मेहता ने कहा, “17 अप्रैल को सरकार ने आश्वासन दिया था कि कुछ प्रमुख प्रावधान लागू नहीं किए जाएँगे। इसलिए कानून पर पूरी तरह रोक की जरूरत नहीं है।”
सुप्रीम कोर्ट ने की ये टिप्पणियाँ
सीजेआई गवई ने कहा, “किसी कानून को असंवैधानिक मानने के लिए बहुत मजबूत आधार चाहिए। कानून की संवैधानिकता की धारणा होती है।”
सिब्बल से पूछा, “पुराने कानून में पंजीकरण अनिवार्य था या स्वैच्छिक?” सिब्बल ने जवाब दिया, “1923 के कानून में ‘शैल’ शब्द था, लेकिन गैर-पंजीकरण की कोई सजा नहीं थी, सिवाय मुतवल्ली को हटाने के।”
प्राचीन स्मारकों पर सीजेआई ने कहा, “खजुराहो मंदिर में लोग प्रार्थना करते हैं, भले ही वह प्राचीन स्मारक है। क्या इससे प्रार्थना का अधिकार छिनता है?”
सुनवाई के दूसरे दिन केंद्र सरकार ने अपनी दलीलें विस्तार से रखीं
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ मामले की दूसरे दिन बुधवार (21 मई 2025) को सुनवाई सुबह 12:15 बजे शुरू हुई। इस दिन केंद्र सरकार ने अपनी दलीलें विस्तार से रखीं। जिसमें केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें पेश की।
मेहता ने कहा, “यह कानून 1923 से चली आ रही वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग की समस्या को खत्म करने के लिए है। जेपीसी ने 36 बैठकों में 96 लाख प्रतिनिधित्वों को सुना और व्यापक चर्चा के बाद यह कानून पारित हुआ।”
धारा 3(सी) पर उन्होंने कहा, “धारा 3(सी) के तहत राजस्व अधिकारी केवल राजस्व रिकॉर्ड ठीक करते हैं। यह अंतिम निर्णय नहीं है। वक्फकर्ता ट्रिब्यूनल, हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है।”
मेहता ने जोड़ा, “धारा 3(सी) का फैसला सिर्फ पेपर एंट्री है। सरकार को स्वामित्व लेने के लिए टाइटल सूट दायर करना होगा।”
वक्फ-बाय-यूजर पर मेहता ने कहा, “वक्फ-बाय-यूजर को खत्म करने का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि बिना पंजीकरण के कोई संपत्ति वक्फ न बने। इससे निजी और सरकारी संपत्तियों पर अतिक्रमण रुकेगा।”
मजहबी अधिकारों पर मेहता ने तर्क दिया, “वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। दान हर धर्म में होता है, लेकिन इसे अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं माना गया।”
गैर-मुस्लिमों को बोर्ड में शामिल करने का बचाव करते हुए उन्होंने कहा, “यह समावेशिता के लिए है। वक्फ संपत्ति, जैसे स्कूल या अनाथालय, गैर-मुस्लिमों के लिए भी हो सकती है।”
5 साल की शर्त पर मेहता ने कहा, “शरिया कानून में निकाह, तलाक या वसीयत के लिए भी खुद को मुस्लिम साबित करना होता है। इस कानून में बस 5 साल की समय सीमा तय की गई है।”
पंजीकरण पर मेहता ने सिब्बल की दलील का खंडन किया, “यह कहना गलत है कि 1923 में पंजीकरण नहीं था। बंगाल वक्फ अधिनियम में भी वक्फ-बाय-यूजर था और पंजीकरण जरूरी था।”
याचिकाकर्ताओं की दलीलें
एक याचिकाकर्ता के वकील ने कहा, “वक्फ-बाय-यूजर को खत्म करना और गैर-पंजीकृत वक्फ को अमान्य करना धार्मिक और संपत्ति के अधिकारों का हनन है।”
सिब्बल ने दोहराया, “धारा 3(डी) और 3(ई) को बिना जेपीसी चर्चा के शामिल किया गया, जो प्रक्रियात्मक रूप से गलत है।”
कोर्ट की अहम टिप्पणियाँ
सीजेआई ने मेहता से पूछा, “क्या धारा 3(सी) के तहत सरकार अपने ही दावे का फैसला करेगी?” मेहता ने जवाब दिया, “राजस्व अधिकारी केवल रिकॉर्ड ठीक करते हैं, टाइटल का फैसला नहीं।”
कोर्ट ने कहा, “धारा 3(सी) के तहत संपत्ति का कब्जा तब तक नहीं लिया जा सकता, जब तक धारा 83 की प्रक्रिया पूरी न हो।”
सिब्बल की दलील पर सीजेआई ने कहा, “मेहता तकनीकी रूप से सही हैं कि 1923 में भी पंजीकरण का प्रावधान था।”
सुनवाई के तीसरे दिन की अहम दलीलें
वक्फ कानून को लेकर सुनवाई तीसरे दिन भी चली। गुरुवार (22 मई 2025) को सुनवाई सुबह 12:06 बजे शुरू हुई। इस दिन केंद्र सरकार और अन्य पक्षों ने अपनी दलीलें पूरी कीं, और कोर्ट ने कुछ अहम टिप्पणियाँ कीं।
केंद्र सरकार का पक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रखा
मेहता ने अपनी दलील शुरू करते हुए कहा, “1923 के बाद से वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग की शिकायतें थीं। 1954 में एक और कानून आया। 1995 में नया वक्फ अधिनियम बना। लेकिन 2013 में धारा 40 ने वक्फ बोर्ड को असीमित अधिकार दे दिए, जिसके कारण निजी और सरकारी संपत्तियों पर अतिक्रमण बढ़ा।”
उन्होंने कहा, “लाखों की संख्या में शिकायतें थीं कि गांव के गांव वक्फ संपत्ति घोषित हो रहे हैं। निजी संपत्तियों को वक्फ बोर्ड हड़प रहा है। यह कानून उस दुरुपयोग को रोकने के लिए है।”
धारा 3(सी) पर मेहता ने दोहराया, “यह केवल राजस्व रिकॉर्ड को ठीक करने की प्रक्रिया है। अगर कोई विवाद है, तो कलेक्टर जांच करता है। यह अंतिम फैसला नहीं है। वक्फकर्ता ट्रिब्यूनल या कोर्ट जा सकता है।”
वक्फ-बाय-यूजर पर उन्होंने कहा, “वक्फ-बाय-यूजर की अवधारणा पुराने कानून में भी थी, लेकिन इसे और सख्त करना जरूरी था ताकि बिना दस्तावेज के संपत्तियां वक्फ न बनें।”
गैर-मुस्लिमों को बोर्ड में शामिल करने पर मेहता ने कहा, “वक्फ बोर्ड का काम धार्मिक नहीं, बल्कि धर्मनिरपेक्ष है। स्कूल, अस्पताल जैसी वक्फ संपत्तियां सभी के लिए होती हैं। गैर-मुस्लिमों को शामिल करना समावेशिता के लिए है।”
5 साल की शर्त का बचाव करते हुए उन्होंने कहा, “यह शरिया कानून के हिसाब से है। वक्फ बनाने के लिए व्यक्ति को मुस्लिम होना चाहिए, और यह सुनिश्चित करने के लिए 5 साल की शर्त रखी गई है।”
मेहता ने जोड़ा, “यह कानून जेपीसी की 36 बैठकों और 96 लाख प्रतिनिधित्वों के बाद बनाया गया है। यह एक सोचा-समझा कदम है।”
अन्य पक्षों की दलीलें-
वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे (1995 के वक्फ अधिनियम को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता की ओर से) कहा, “1995 के वक्फ अधिनियम के कई प्रावधान 2025 के संशोधन में भी हैं। सुप्रीम कोर्ट को दोनों कानूनों पर एक साथ विचार करना चाहिए। हाई कोर्ट की याचिकाओं को यहाँ लाने की जरूरत नहीं है।” उन्होंने जोड़ा, “अगर 100 साल पुरानी वक्फ संपत्तियाँ अब वक्फ नहीं रहेंगी, तो यह गंभीर समस्या है।”
के. परमेश्वर (याचिकाकर्ता की ओर से) ने कहा, “लिखित दलीलें पूरी याचिका की तरह हैं। हमें सभी मुद्दों पर बहस करने की इजाजत दी जानी चाहिए।” उन्होंने धारा 3(सी) पर कहा, “यह धारा संपत्ति का दर्जा बदल देती है बिना किसी ज्यूडिशियल प्रक्रिया के। यह गलत है।”
डॉ. जी. मोहन गोपाल (श्री नारायण मानव धर्मम ट्रस्ट की ओर से) ने कहा, “सभी पाँच मुख्य याचिकाएँ मुस्लिम पक्षों की हैं। इससे यह धारणा बनती है कि मामला ध्रुवीकृत है। गैर-मुस्लिम पक्षों को भी सुनना चाहिए।” उन्होंने जोड़ा, “यह कानून केवल मुस्लिमों के खिलाफ नहीं, बल्कि सभी धर्मों के लिए खतरा है।”
वरिष्ठ अधिवक्ता गुरु कृष्णकुमार (वक्फ बोर्ड) ने कहा, “धारा 32 कहती है, ‘वक्फ बोर्ड वक्फकर्ता (Waqif) की इच्छाओं के अनुसार काम करता है।’ धारा 96 और 97 भी इस पर चर्चा करती हैं, जो राज्य वक्फ बोर्ड और केंद्र सरकार के निर्देशों से जुड़ी हैं।”
वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण ने कहा, “280 एएसआई (ASI) स्मारकों पर वक्फ दावा किया गया है। धारा 25(2)(ए) राज्यों को आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर कानून बनाने की अनुमति देती है।” उन्होंने कहा, “न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) पर एक नौ-सदस्यीय पीठ (Nine-Judge Bench) विचार कर रही है। श्रीर मठ (Shrur Mutt) मामला अंतरिम आदेश (Interim Order) पर प्रासंगिक है।”
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “CEO (Chief Executive Officer) पहले मुस्लिम होना चाहिए था, लेकिन अब यह ‘Enabling Provision’ (सक्षम करने वाला प्रावधान) है। धारा 38 कहती है, ‘Executive Officer (Executive Officer) मुस्लिम होना चाहिए।’” उन्होंने कहा, “वक्फ बोर्ड संविधान के अनुच्छेद 12 (Article 12) के तहत ‘State’ (राज्य) है। इसमें ‘Community Restriction’ (समुदाय पाबंदी) नहीं है।”
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ
सीजेआई गवई ने कहा, “हमने पहले कहा था कि 1995 के वक्फ अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं को इस मामले में नहीं सुना जाएगा। हम केवल 2025 के संशोधन पर ध्यान देंगे।”
धारा 3(सी) पर सीजेआई ने पूछा, “क्या कलेक्टर अपने ही दावे का फैसला करेगा?” मेहता ने जवाब दिया, “यह भ्रामक और गलत तर्क है। कलेक्टर केवल रिकॉर्ड ठीक करता है, स्वामित्व का फैसला नहीं।”
वक्फ-बाय-यूजर पर कोर्ट ने कहा, “अगर जामा मस्जिद जैसे स्मारक को वक्फ-बाय-यूजर के तहत मान्यता मिली है, तो उसे कैसे खत्म किया जा सकता है?”
गैर-मुस्लिमों को बोर्ड में शामिल करने पर कोर्ट ने पूछा, “क्या हिंदू धार्मिक ट्रस्ट में मुस्लिमों को शामिल किया जा सकता है?” मेहता ने जवाब दिया, “यह समावेशिता का सवाल है। वक्फ बोर्ड का काम धर्मनिरपेक्ष है।”
सिब्बल की दलील पर सीजेआई ने टोका, “आप कहते हैं कि मस्जिदों में चढ़ावा नहीं चढ़ता। मैं दरगाह गया हूँ और मैंने देखा है कि वहाँ भी चढ़ावा चढ़ाया जाता है।”
तीनों दिनों की सुनवाई में याचिकाकर्ताओं ने धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति अधिकारों पर हमले की बात कही, जबकि सरकार ने इसे वक्फ मैनेजमेंट सुधारने का कदम बताया। कोर्ट ने अभी तक कोई अंतरिम आदेश नहीं दिया है और अगली सुनवाई 5 जून 2025 को होगी। यह मामला धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक पहलुओं से जुड़ा है, इसलिए सभी पक्षों की चिंताओं को संतुलित करना जरूरी है।