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कभी मुहम्मद गौरी, कभी सुल्तान महमूद और कभी औरंगजेब… मुगल आक्रांताओं ने कई बार गिराना चाहा विश्वनाथ धाम, हिंदू शासक कराते रहे जीर्णोद्धार:आज से सोने से चमकता है शिखर, चांदी शिवलिंग पर

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर आस्था, इतिहास और संस्कृति का अद्भुत संगम है। ये मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जिन्हें ‘विश्वनाथ’ या ‘विश्वेश्वर’ यानी संपूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी के रूप में पूजा जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी में स्थित एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जो भगवान शिव को समर्पित है। गंगा नदी के पावन तट पर बसे इस मंदिर को हिंदू धर्म के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक माना जाता है। मान्यता है कि मंदिर के दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मंदिर का इतिहास

काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास अनेक कहानियों से भरा पड़ा है। इतिहासकार के अनुसार, मंदिर को 11वीं से 15वीं शताब्दी तक कई बार नष्ट करने की कोशिश की गई। हर बार मंदिर का जीर्णोद्धार भारत के शासकों ने कराया। मुगलों और विदेशी आक्रमणकारियों ने मंदिर पर कई बार हमला करवाया।

1194 में मुहम्मद गौरी ने मंदिर को ध्वस्त कर दिया था जिसके बाद राजा हरीशचंद्र ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया, लेकिन वर्ष 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने मंदिर को दोबारा गिरा दिया। इसके बाद 16वीं शताब्दी में अकबर के वित्तमंत्री राजा टोडरमल ने इसका पुनर्निर्माण कराया। इसके बाद 1669 ईस्वी में मुगल आक्रांता औरंगज़ेब ने इसे फिर से गिरा दिया और उस जगह ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई।

वर्तमान मंदिर का निर्माण 1780 में मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया। आगे चलकर पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर के शिखर को शुद्ध सोने से मढ़वाया, जिससे इसकी भव्यता और भी अधिक बढ़ गई। हाल ही में साल 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर की शुरुआत की, जिससे यह मंदिर आधुनिक सुविधाओं के साथ और भी सुलभ और सुव्यवस्थित हो गया।

मंदिर की संरचना

काशी विश्वनाथ मंदिर की वास्तुकला बेहद आकर्षक और विशिष्ट है। मंदिर के गर्भगृह में एक प्राचीन शिवलिंग स्थापित है जो चांदी के आधार पर टिका हुआ है। यह शिवलिंग लगभग 60 सेंटीमीटर ऊँचा और 90 सेंटीमीटर परिधि वाला है। मंदिर का मुख्य शिखर करीब 15.5 मीटर ऊँचा है, जिसे महाराजा रणजीत सिंह द्वारा सोने से मढ़वाया गया है।

मंदिर के आसपास कई छोटे मंदिर भी हैं जो देवी पार्वती, भगवान गणेश, भगवान कार्तिकेय, काल भैरव और अन्य देवताओं को समर्पित हैं। गर्भगृह से पहले एक सभा मंडप है। जहाँ भक्तजन एकत्र होकर पूजा करते हैं।

मंदिर परिसर में ही मौजूदी ज्ञानवापी कुआँ ऐतिहासिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है। विद्वानों के अनुसार, औरंगज़ेब के आक्रमण के दौरान इसी कुएँ में शिवलिंग को छिपा दिया गया था। वर्तमान में काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर के माध्यम से गंगा नदी से मंदिर तक सीधा मार्ग बन चुका है, जिससे श्रद्धालुओं को सुविधाजनक दर्शन का अवसर मिलता है।

कैसे पहुँचे ?

वाराणसी रेलवे स्टेशन से काशी विश्वनाथ मंदिर तक पहुँचने का सबसे सुगम मार्ग है। स्टेशन से मंदिर की दूरी सिर्फ पाँच मिनट है। इसके अलावा दिल्ली से सीधी बस सेवाएँ वाराणसी के लिए उपलब्ध हैं। जबकि वाराणसी के लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डे से काशी विश्वनाथ मंदिर की दूरी लगभाग 20 किलोमीटर है। एयरपोर्ट से सीधे टैक्सी या निजी वाहन से मंदिर तक पहुँचा जा सकता है।

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