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अमेरिकी करें ईसाइयत की बात तो प्रोग्रेसिव, हिंदुओं का सनातन पर आवाज उठाना- इस्लामोफोब: जानिए कैसे सेकुलरों की दोगली दुनिया में अलग-अलग धर्म की परिभाषा

अंतरराष्ट्रीय राजनीति में धर्म और सुरक्षा का मुद्दा अक्सर संवेदनशील होता है, लेकिन यह देखना दिलचस्प है कि किस देश की धार्मिक चिंता को दुनिया किस नजरिए से देखती है। हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नाइजीरिया में ईसाइयों के खिलाफ हो रही हिंसा को लेकर ऐसा बयान दिया जो एक गंभीर चेतावनी थी, जिसे धर्म-सुरक्षा की लड़ाई के रूप में भी प्रस्तुत किया गया था।

ट्रंप ने नाइजीरिया को खुली धमकी दी कि अगर वे देश में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा नहीं रुकवाएगा तो अमेरिका सैन्य कार्रवाई पर उतर जाएगा। डोनाल्ड ट्रंप के इस बयान को धर्म-सुरक्षा की लड़ाई के रूप में देखा गया और उन्हें कई जगह प्रगतिशील धर्म-रक्षक के रूप में प्रस्तुत किया गया। इसके विपरीत जब भारत हिंदुओं की सुरक्षा और पड़ोसी देशों में उनके खिलाफ हिंसा के मामलों पर आवाज उठाता है तो उसे अक्सर इस्लामोफोबिक, हिंदुत्ववादी और सांप्रदायिक कह दिया जाता है।

नाइजीरिया में ईसाइयों पर हिंसा के बीच ट्रंप की चेतावनी

नाइजीरिया में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा पर ट्रंप ने चेतावनी देते हुए कहा, “अगर वे देश में ईसाइयों की हत्या रोकने में विफल रहे तो अमेरिका तुरंत नाइजीरिया को दिया जाने वाली सारी सहायता बंद कर देगा और जरूरत पड़ी तो सैन्य कार्रवाई भी कर सकता है।” उन्होंने कहा कि अमेरिका ‘गन्स-ए-ब्लेजिंग’ कर इस्लामी आतंकवादियों का खात्मा कर देगा, जो ईसाइयों को निशाना बना रहे हैं।

अब डाटा से समझते हैं कि क्या वाकई में नाइजीरिया में ईसाई खतरे में हैं? तो रिपोर्ट्स बताती हैं कि नाइजीरिया में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा वास्तव में गंभीर हैं। Open Doors की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2024 में नाइजीरिया में लगभग 3,100 ईसाई मारे गए और 2,830 को अगवा कर लिया गया।

साल 2023 में यह स्थिति और भी भयावह थी, जब 8000 ईसाइयों की नाइजीरिया में हत्या कर दी गई। यह कुछ चरमपंथी समूहों का करा-धरा था। इंटरसोसायटी ने इन मौतों के लिए विभिन्न चरमपंथी समूहों को जिम्मेदार ठहराया, जिनमें कट्टरपंथी फुलानी चरवाहे, बोको हराम और अन्य समूह शामिल है। साथ ही नाइजीरियाई सुरक्षा बलों की कार्रवाई के चलते भी बड़ी संख्या में ईसाई मारे गए।

अमेरिका में धार्मिक ध्रुवीकरण तेज

डोनाल्ड ट्रंप का यह बयान अमेरिका के भीतर राजनीतिक और धार्मिक ध्रुवीकरण को भी दर्शाता है। Pew Research Center के अनुसार, जहाँ अमेरिका में केवल ईसाई धर्म का प्रचार है, वहाँ अब भी केवल 62 प्रतिशत लोग ही खुद को ईसाई मानते हैं।

अमेरिका में धार्मिक पहचान और राजनीतिक झुकाव गहराई से जुड़े हैं। ईसाई धर्म को मानने वाले लोग रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक हैं जबकि कम धार्मिक या सेकुलर लोग डेमोक्रेट्स की ओर झुकते हैं। ईसाई धर्म अब अमेरिका में केवल निजी आस्था नहीं रहा बल्कि राजनीतिक पहचान का अहम हिस्सा बन चुका है। यही वजह रही कि उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने हाल ही में ईसाई वोटर्स को साधने के लिए अपनी हिंदू पत्नी उषा को ईसाई अपनाने का दबाव डालने की कोशिश की थी।

सोशल मीडिया पर ट्रंप के बयान को समर्थन

डोनाल्ड ट्रंप के बयान से यह भी साफ है कि अमेरिका एक सेकुलर देश होने के बावजूद अपने धर्म-गुटों के लिए वैश्विक रूप से भी आवाज उठा रहा है। सोशल मीडिया पर इस बयान को कई समीकरणों में स्वागत मिला है। यहाँ तक कि त्रिनिदादियन रैपर निकी मिनाज ने भी ट्रंप को ईसाइयों की आवाज बनने के लिए धन्यवाद दिया है।

Reading this made me feel a deep sense of gratitude. We live in a country where we can freely worship God. No group should ever be persecuted for practicing their religion. We don’t have to share the same beliefs in order for us to respect each other. Numerous countries all… pic.twitter.com/2M5sPiviQu— Nicki Minaj (@NICKIMINAJ) November 1, 2025

इससे देखा जा सकता है कि अमेरिका में ‘धर्म-रक्षा’ करने वाले नेता को समर्थन मिल रहा है। खासतौर पर उन बड़ी हस्तियों से, जिनके अमेरिका में धर्म-संवेदनशील मतदाताओं के बीच खास चर्चा है। इससे ये भी साफ है कि सेकुलर देश कहे जाने वाले अमेरिका के लिए अब धर्म सर्वोपरि है। सोशल मीडिया पर डोनाल्ड ट्रंप को प्रगतिशील नेता के तौर पर प्रस्तुत किया जा रहा है और अमेरिका को अपने धर्म के लिए लड़ाई लड़ने वाले देश के तौर पर।

भारत के लिए सबक: अमेरिका बना प्रगतिशील और हिंदुओं पर लगे आरोप

अब सवाल यह है कि जैसे डोनाल्ड ट्रंप ने खुलेआम ईसाइयों की हक की लड़ाई लड़ने का ऐलान किया है वैसे ही अगर भारत भी हिंदुओं की आवाज बन रहा है तो उसे भी सुना जाए। यहाँ अमेरिका जब धर्म हितों की बात करता है तो धर्म-रक्षक बन जाता है लेकिन भारत को इस्लामोफोबिक और धार्मिक स्वार्थी के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

सबसे पहले पश्चिमी मीडिया ही सामने आती हैं, जो भारत को एक सेकुलर देश के रूप में प्रस्तुत करने में लगी हुई हैं। अब तक पश्चिमी मीडिया ने भारत को इसके धर्म-संवेदनशील निर्णयों जैसे CAA, NRC और आर्टिकल 370 के निरस्त होने के मामलों में मुस्लिमों के खिलाफ कार्यवाही करने वाला दिखाती आई है।

वहीं पड़ोसी देशों बांग्लादेश और पाकिस्तान में हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा पर भी पश्चिमी मीडिया चुप्पी साधे है। भारत कई बार वैश्विक मंच पर आवाज उठा भी चुका है। कई बार पश्चिमी मीडिया में भारत में हुए मुस्लिम अपराधों में हस्तक्षेप कर मुस्लिम को पीड़ित पेश करने की कोशिश की है। यहाँ तक कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुए हमलों को विदेशी मीडिया ने ‘बदला लेने के लिए हमले‘ साबित करना भी चाहा है।

अब साफतौर पर भारत कहना चाहता है कि अगर अमेरिका अपने धर्म के हक की लड़ाई लड़ता है और प्रगतिशील कहलाता है तो वैसे ही भारत में भी हिंदुओं के खिलाफ हिंसा पर आवाज उठाता रहेगा लेकिन उसे सेकुलर देश के रूप में प्रस्तुत करने की नासमझी न की जाए क्योंकि भारतवासी भी धर्म-सुरक्षा की ही लड़ाई लड़ रहा है।

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