कर्नाटक की पूरी कॉन्ग्रेस सरकार किसी भी तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को बदनाम करने और उसकी गतिविधियों पर अंकुश लगाने की कोशिश में जुटी हुई है। कभी शाखाओं को रोका जा रहा है, कभी पथ संचलन की इजाजत नहीं मिल रही है तो कभी संघ को लेकर अर्नगल बनायबाजी की जा रही है। संघ को कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार के खिलाफ अदालत तक में लड़ाई लड़नी पड़ रही है।
अब कर्नाटक के एक और मंत्री ने RSS पर निशाना साधा है। इस बार राज्य के स्वास्थ्य मंत्री दिनेश गुंडू राव ने संघ को ‘सांप्रादयिक संगठन’ करार देते हुए कहा कि RSS कानून से ऊपर नहीं है। इससे पहले कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे और कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खरगे ने संघ पर बैन लगाने की बात कही थी। प्रियांक के क्षेत्र में 2 नवंबर को होने वाले पथ संचलन पर भी रोक लगी हुई है।
राव का यह बयान शनिवार (1 नवंबर 2025) को मीडिया से बातचीत के दौरान आया, जब उन्होंने संघ की गतिविधियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि RSS को भी कानून के दायरे में रहकर ही काम करना चाहिए।
दिनेश गुंडू राव ने कहा, “RSS को नियमों का पालन करना होगा। वे कानून से ऊपर नहीं हैं। सिर्फ RSS ही नहीं बल्कि SDPI को भी सार्वजनिक कार्यक्रम करने से पहले अनुमति लेनी चाहिए।”
मंत्री ने आगे कहा, “RSS बीजेपी के साथ जुड़ा हुआ है, इसलिए यह एक राजनीतिक और सांप्रादयिक संगठन बन चुका है। इसी कारण लोगों के मन में इसके कार्यकलापों को लेकर संदेह पैदा होना स्वाभाविक है।”
2 नवंबर के पथ संचलन को नहीं मिली इजाजत, प्रियांक ने की बैन की माँग
RSS लंबे वक्त से कर्नाटक की सरकार के निशाने पर निशाने पर रहा है। RSS अपने शताब्दी वर्ष को लेकर देश भर में कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है जिसमें पथ संचलन भी शामिल हैं। कर्नाटक में भी कई जगहों पर संघ पथ संचलन निकलने हैं लेकिन कॉन्ग्रेस की सरकार इन्हें अनुमित देने में कभी शर्तें लगा रही है तो कभी आना-कानी कर रही हैं।
प्रियांक खरगे के विधानसभा क्षेत्र चित्तपुर में भी रविवार (2 नवंबर 2025) को RSS को पथ संचलन निकालना था जिसकी अभी तक संघ को इजाजत नहीं मिली है। इसके लिए प्रशासन के साथ बीते 28 अक्टूबर को RSS के पदाधिकारियों की बैठक हुई थी। तब यह बैठक बेनतीजा रही। RSS ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट का में भी याचिका दी हुई है और कोर्ट ने अब आगामी 5 नवंबर को एक और बैठक कर इस ‘डेडलॉक’ की स्थिति को खत्म करने की बात कही है।
खुद प्रियांक खरगे मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को पत्र लिखकर सरकारी परिसर में RSS की गतिविधियों पर बैन लगाने की माँग कर चुके हैं। प्रियांक ने लिखा था कि RSS सरकारी स्कूलों, खेल के मैदानों और मंदिरों में शाखाओं का आयोजन कर बच्चों-युवाओं के बीच विभाजनकारी विचार फैला रहा है।
शिक्षकों को RSS के पथ संचलन में शामिल होने पर नोटिस
कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार RSS पर किसी भी तरह से प्रतिबंध लगाने को लेकर सरकारी कर्मियों तक को धमकाने पर उतर आई है। संघ विरोध में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग करते हुए बीदर जिले के औराद तालुक के 4 सरकारी स्कूल शिक्षकों को आरएसएस के पथसंचलन में भाग लेने के लिए नोटिस जारी किया गया है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, औराद तालुक के चार शिक्षकों महादेव, शालीवन, प्रकाश और सतीश ने 7 और 13 अक्टूबर को हुए आरएसएस के पथसंचलन में भाग लिया था। इन कार्यक्रमों के फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आने के बाद स्थानीय दलित सेना के नेताओं ने 27 अक्टूबर को औपचारिक शिकायत दर्ज कराई और शिक्षकों पर तुरंत कार्रवाई की मांग की।
शिकायत मिलते ही औराद के ब्लॉक एजुकेशन ऑफिसर (BEO) ने अगले ही दिन चारों शिक्षकों को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया। नोटिस में आरोप लगाया गया है कि सरकारी कर्मचारी होकर भी उन्होंने ‘राजनीतिक और धार्मिक गतिविधियों’ में हिस्सा लिया, जो कि कर्नाटक सिविल सर्विस (कंडक्ट) रूल्स का उल्लंघन है।
हाईकोर्ट से भी कर्नाटक सरकार को मिली है फटकार
RSS की गतिविधियों पर रोक लगाने की कोशिश कर रही कर्नाटक की कांग्रेस सरकार को हाईकोर्ट से भी झटका लग चुका है। कर्नाटक हाईकोर्ट की धारवाड़ पीठ ने उस सरकारी आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है, जिसके तहत सरकारी परिसरों में 10 से अधिक लोगों के जुटने पर पाबंदी लगाई गई थी। माना जा रहा था कि यह आदेश विशेष रूप से आरएसएस की शाखाओं और सभाओं को निशाना बनाकर जारी किया गया था।
RSS की ड्रेस पहनने पर सरकारी कर्मी सस्पेंड, KSAT ने लगाई रोक
कर्नाटक सरकार ने RSS के कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर सरकारी कर्मचारी प्रवीण कुमार को सस्पेंड भी कर दिया था। हालाँकि, कर्नाटक स्टेट एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (KSAT) ने उनके सस्पेंशन आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है।
प्रवीण कुमार लिंगासुगुर तालुक में पंचायत विकास अधिकारी हैं और भाजपा विधायक मनप्पा डी. वज्जल के निजी सहायक (PA) के रूप में भी कार्यरत हैं। आरोप है कि वे 12 अक्टूबर को RSS का गणवेश पहनकर संगठन के एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे। इसके बाद राज्य सरकार ने अनुशासनहीनता के आरोप में उन्हें निलंबित कर दिया था।
सरकारी कार्रवाई को चुनौती देते हुए प्रवीण कुमार ने ट्रिब्यूनल में अपील दायर की, जिस पर सुनवाई करते हुए ट्रिब्यूनल के न्यायिक सदस्य एस.वाई. वटवती की अध्यक्षता वाली पीठ ने गुरुवार को अंतरिम आदेश जारी किया। पीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह इस मामले पर अपनी आपत्तियाँ दर्ज करे। अब इस प्रकरण की अगली सुनवाई 14 नवंबर को होगी।
RSS और संघ परिवार से दूर रहना चाहिए: सिद्धारमैया
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया खुद भी RSS को लेकर अनर्गल बयानबाजी कर चुके हैं। बीते 18 अक्टूबर को मैसूर यूनिवर्सिटी के रजत जयंती समारोह में बोलते हुए उन्होंने RSS और सनातन परंपरा के खिलाफ बयानबाजी की थी। मुख्यमंत्री ने मंच से कहा कि लोगों को संघ परिवार और उन सनातनियों से दूर रहना चाहिए जो सामाजिक बदलाव का विरोध करते हैं।
कार्यक्रम के दौरान सिद्धारमैया ने कहा, “अपनी संगति सही रखिए। समाज के भले के लिए काम करने वालों के साथ रहिए, न कि उन सनातनियों के साथ जो समाज में सुधार के रास्ते में बाधा बनते हैं।” उन्होंने आगे RSS पर हमला बोलते हुए आरोप लगाया कि संघ के लोग अब भी डॉ. भीमराव अंबेडकर के संविधान का विरोध करते हैं और जनता को गुमराह कर रहे हैं। सिद्धारमैया ने संघ परिवार पर झूठ फैलाने का भी आरोप लगाया।
सिद्धारमैया के बेटे ने तालिबान से की RSS की तुलना
कर्नाटक में संघ विरोध सिद्धारमैया के बेटे यतींद्र सिद्धारमैया तक भी पहुँच गया है। वो अपने पिता से भी चार कदम आगे निकले हैं। यतींद्र सिद्धारमैया ने RSS की तुलना सीधे तालिबान से कर दी।
यतींद्र ने कहा, “RSS की मानसिकता तालिबान जैसी है। दोनों यह मानते हैं कि केवल एक ही मजहब या विचारधारा वाले लोग रह सकते हैं। तालिबान कहता है कि इस्लाम का सिर्फ एक ही फिरका रहेगा, महिलाओं को आजादी नहीं है। उसी तरह RSS कहता है कि सिर्फ हमारे तरीके से हिंदू धर्म मानने वाले ही रहेंगे।” उन्होंने आगे आरोप लगाया कि आरएसएस समाज में एकरूपता थोपना चाहता है और विभिन्न विचारों को दबाने की कोशिश करता है।
संघ के खिलाफ सुनियोजित साजिश के चेहरे कौन?
कर्नाटक में पिछले कुछ समय में जो कुछ होता दिख रहा है, वह सिर्फ RSS का विरोध नहीं बल्कि एक संगठित राजनीतिक एजेंडा का हिस्सा लग रहा है, जैसे एक विचारधारा के विरुद्ध सरकार की व्यवस्थित मुहिम हो। जब मुख्यमंत्री से लेकर उनके बेटे, राज्य के मंत्री और स्थानीय अफसर तक संघ को ‘खतरा’ बताने लगे हों, तो यह महज संयोग तो नहीं रह जाता है।
कांग्रेस सरकार जिस तरह सरकारी कर्मचारियों को डराने, शाखाओं पर रोक लगाने और पथ संचलन जैसी पारंपरिक गतिविधियों को रोकने में जुटी है, वह दिखाता है कि राज्य में असहिष्णुता चरम पर पहुँच चुकी है। कॉन्ग्रेस जैसा दल जो खुद को ‘धर्मनिरपेक्षता’ का सबसे बड़ा झंडाबरदार बताता है, वही संगठन को सिर्फ इसलिए दबाने में लगा है क्योंकि उसकी जड़ें राष्ट्रवाद और सनातन मूल्यों से जुड़ी हैं।
अब सवाल यही उठता है कि क्या यह सब महज राज्य सरकार की अपनी सोच है या फिर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व द्वारा एक संघ विरोधी सुनियोजित साजिश चलाई जा रही है? क्या शीर्ष नेतृत्व को खुश करने के लिए कर्नाटक की पूरी सरकार संघ विरोध में उतर आई है? ऐसे कई सवाल है जिनके उत्तर शायद अभी ना मिलें लेकिन अगर सभी कड़ियों को जोड़ा जाए तो जो तस्वीर बनकर सामने आती है, वो जाहिर तौर पर एक सुनियोजित साजिश ही नजर आती है।







