
*चतुर्वेदी विला में आयोजित संगीतमयी श्रीमद भागवत कथा के सातवे दिन मंत्र मुग्ध हुए चतुर्वेदी परिवार*
*डॉक्टर उदय प्रताप चतुर्वेदी ने अयोध्या वासी कथावाचक पंडित ज्ञानचंद त्रिवेदी को फूल माला पहनकर लिया आशीर्वाद*
*पूर्व ब्लाक प्रमुख राकेश चतुर्वेदी ने कथा व्यास श्री ज्ञान चंद्र द्विवेदी से आशीर्वाद किया प्राप्त*
*श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन भी श्रद्धालुओं का लगा रहा ताता*
*संतकबीरनगर:*-पूर्वांचल के मालवीय कहे गए स्वर्गीय पंडित सूर्य नारायण चतुर्वेदी की स्मृति में 9 दिवसीय संगीतमयी श्रीमद भागवत कथा लगातार चल रही हैं आयोजन के सातवे दिन भी चतुर्वेदी बंधुओं के आवास पर संगीतमयी श्रीमद भागवत कथा में भक्तजन पूरी तरह लीन होकर भगवान की जयजयकार करते रहे मुख्य यजमान चंद्रावती देवी के साथ एमडी डॉ. उदय प्रताप चतुर्वेदी ने पूर्व ब्लाक प्रमुख छोटे भाई राकेश चतुर्वेदी के साथ भागवत भगवान की आरती करते हुए कथा की शुरुआत करी।
आपको बता दे कि पूर्वांचल के मालवीय कहे गए स्वर्गीय पंडित सूर्य नारायण चतुर्वेदी की स्मृति में 9 दिवसीय संगीतमयी श्रीमद भागवत कथा का आयोजन चतुर्वेदी बंधुओं के भिठहां स्थित आवास पर आयोजन हो रहा हैं जहां आज सतवें दिन भी कथावाचक ज्ञान चंद्र द्विवेदी की कथा में मुख्य यजमान चंद्रावती देवी के साथसूर्या ग्रुप के एमडी डॉक्टर उदय प्रताप चतुर्वेदी और पूर्व ब्लॉक प्रमुख राकेश चतुर्वेदी के साथ कथा की शुरुआत करी। इस दौरान कथा में भक्तों का जनसैलाब भगवान की कथा में लीन रहा। इस दौरान कथावाचक ज्ञान चंद्र द्विवेदी ने सातवें दिन श्रीमद भागवत कथा का सातवां दिन, भगवान कृष्ण और सुदामा की मित्रता का प्रसंग सुनाया श्रीमद् भागवत कथा नौ दिवसीय श्रीमद भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन कथा आचार्य ज्ञानचंद द्विवेदी ने विभिन्न प्रसंगों पर प्रवचन दिए। उन्होंने कहा कि सातवें दिन कृष्ण के अलग-अलग लीलाओं का वर्णन किया गया। मां देवकी के कहने पर छह पुत्रों को वापस लाकर मा देवकी को वापस देना सुभद्रा हरण का आख्यान कहना एवं सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कथा पंडित ज्ञानचंद द्विवेदी ने बताया कि मित्रता कैसे निभाई जाए यह भगवान श्री कृष्ण सुदामा जी से समझ सकते हैं । उन्होंने कहा कि सुदामा अपनी आग्रह पर अपने मित्र से सखा सुदामा मिलने के लिए द्वारिका पहुंचे। उन्होंने कहा कि सुदामा द्वारिकाधीश के महल का पता पूछा और महल की ओर बढ़ने लगे द्वार पर द्वारपालों ने सुदामा को भिक्षा मांगने वाला समझकर रोक दिया। तब उन्होंने कहा कि वह कृष्ण के मित्र हैं इस पर द्वारपाल महल में गए और प्रभु से कहा कि कोई उनसे मिलने आया है। अपना नाम सुदामा बता रहा है जैसे ही द्वारपाल के मुंह से उन्होंने सुदामा का नाम सुना प्रभु सुदामा सुदामा कहते हुए तेजी से द्वार की तरफ भागे सामने सुदामा सखा को देखकर उन्होंने उसे अपने सीने से लगा लिया। सुदामा ने भी कन्हैया कन्हैया कहकर उन्हें गले लगाया दोनों की ऐसी मित्रता देखकर सभा में बैठे सभी लोग अचंभित हो गए। कृष्ण सुदामा को अपने राज सिंहासन पर बैठाया हुआ। उन्हें कुबेर का धन देकर मालामाल कर दिया। जब जब भी भक्तों पर विपदा आ पड़ी है। प्रभु उनका तारण करने अवश्य आए हैं। इस मौके पर मुख्य यजमान चंद्रावती देवी,सूर्या ग्रुप की निदेशिका सविता चतुर्वेदी, राजन एकेडमी की निदेशिका शिखा चतुर्वेदी,राजन चतुर्वेदी, अंकित पाल, आलोक उपाध्याय, आनंद ओझा, सुशील पांडे सहित भारी संख्या में लोग मौजूद रहे।